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गुलाम कश्मीर से आयी दुल्हन बनी बीडीसी चेयरमैन, कहा-सही मायनों में हिंदोस्तान में ही जम्हूरियत और आजादी है

आसिफा तबुस्सम ने उत्तरी कश्मीर में एलओसी के साथ सटे उड़ी सेक्टर में स्थित परनपीला ब्लाक विकास परिषद के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 25 Oct 2019 04:28 PM (IST)Updated: Fri, 25 Oct 2019 06:03 PM (IST)
गुलाम कश्मीर से आयी दुल्हन बनी बीडीसी चेयरमैन, कहा-सही मायनों में हिंदोस्तान में ही जम्हूरियत और आजादी है
गुलाम कश्मीर से आयी दुल्हन बनी बीडीसी चेयरमैन, कहा-सही मायनों में हिंदोस्तान में ही जम्हूरियत और आजादी है

श्रीनगर, नवीन नवाज। पाकिस्तान दुनियाभर में भले कश्मीरियों पर जुल्म के झूठे दावे करे पर उसके इन सभी दावों को अासिफा तबुस्सम की जीत ने झुठला दिया है। वह खुद कहती है कि उसे जिस तरह से यहां लोगों ने अपनाया, उसे अपना रहनुमा चुना, वह पाकिस्तान में कभी भी मुमकिन नहीं था। वहां किसी दूसरे मुल्क या फिर हिंदोस्तान से बयाही गई कोई औरत चुनाव लड़े, यह सोचना भी मुश्किल है। उसने कहा कि यहां सही मायनों में जम्हूरियत और आजादी है जिसे मैने देखा है। मैं महसूस करती हूं। मेरी जीत इसकी तस्दीक करती है।

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उड़ी के परनपीला ब्लाक से चेयरमैन का पद जीती है आसिफा

आसिफा तबुस्सम ने उत्तरी कश्मीर में एलओसी के साथ सटे उड़ी सेक्टर में स्थित परनपीला ब्लाक विकास परिषद के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता है। तबुस्सम का गांव एलओसी पर स्थित कंडी बरजाला है। वह इसी गांव की बहु है जहां वह दुल्हन बनकर करीब 14 साल पहले आयी थी। उसका मायका एलओसी पार गुलाम कश्मीर में है। वहीं जिहादियों के भी ट्रेनिंग कैंप है। उसका पति मंजूर अहमद 1990 के दशक की शुरुआत में जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था, कई बार गुलाम कश्मीर गया था। मुजफ्फराबाद के पास स्थित चिनारी गांव में ही दोनों के बीच मुलाकात हुई और दोनों ने शादी कर ली। मंजूर ने बंदूक नहीं उठायी थी। मंजूर अहमद अपनी दुल्हन को कश्मीर लाने के लिए बेताव था। वह वापस कश्मीर में बसना चाहता था। उसने इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग से संपर्क किया। वह अपनी पत्नी को लेकर वर्ष 2005 में उड़ी में कुंडी बरजाला पंचायत के अंतर्गत परनपीला गांव में अपने घर पहुंच गया। उड़ी आने के बाद मंजूर ने दर्जी की दुकान शुरु की। आसिफा ने गृहस्थी संभाली। दोनों के छह बच्चे हैं। आसिफा का वोटर कार्ड, आधार कार्ड व अन्य सभी दस्तावेज भी हैं जो एक स्थानीय नागरिक के लिए जरुरी हैं।

कई बुनियादी सुविधाओं से वंचित है कंडी बरजाला

आासिफा ने कहा कि मेरी ससुराल कंडी बरजाला और उसके साथ सटे इलाकों में कई बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। स्कूलों का स्तर बेहतर चाहिए, बिजली-पानी और सड़क की सुविधाओं का विकास चाहिए। रोजगार चाहिए। मैं अब पूरे ब्लाक के लिए काम करुंगी और जो यहां पंच-सरपंचों ने मुझमें यकीन दिखाया है, मैं उस पर पूरा उतरने का प्रयास करुंगी। उसने कहा कि मेरा सियासत में आने का कोई इरादा नहीं था। इसके अलावा मैं इस बात को लेकर भी आशंकित थी कि मैं गुलाम कश्मीर से यहां आयी हूं, शायद यहां प्रशासन मुझे इलैक्शन में खड़ा होने से रोके और स्थानीय लोग भी मेरा साथ नहीं दें। यह सब वहम थे जो दूर हो गए। पिछले साल जब पंचायत का इलैक्शन था तो हमारे गांव में लोगों ने मेरा नाम तय किया, क्योंकि हमारी पंचायत महिलाओं के लिए आरक्षित थी। मैं चुनाव भी जीत गई। अब स्थानीय लोगों ने ही मुझे बीडीसी चेयरमैन का चुनाव लड़ने के लिए और मैने निर्दलीय निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरा था।

आसिफा ने कहा हिंदोस्तान ही मेरा वतन है

भारत-पाक के रिश्तों पर सवालों से बचते हुए आसिफा ने कहा आज मेरा यही वतन है। हिंदोस्तान ही मेरा मुल्क है और मैं अपने वतन से उतनी ही मुहब्बत करती हूं,जितनी एक शहरी को अपने घर से,अपने परिवार और मुल्क से होतीहै। जो मेरे शौहर का वतन है हिंदुस्तान, वही मेरा वतन है। वतन से मुहब्बत करना एक इबादत है और मैं अपने वतन हिदुस्तान से मुहब्बत करती हूं। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने पर चुप रहने वाली आसिफा के पति मंजूर ने कहा कि हिंदुस्तान ने यह एक अच्छा काम किया है। इससे हम लोगों केा बहुत नुक्सान हो रहा था,कुछ लोगों का ही बोलबाला हो चुका था। हमें अब बेहतरी की दुआ करनी चाहिए। 


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