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शहद के छत्ते जैसा दिखता है फुकताल मठ, 2500 साल पुराना है इतिहास

गुफाओं में छिपे इस मठ का इतिहास 2500 साल पुराना है। समुद्रतल से 4800 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित इस मठ में करीब 200 बौद्ध भिक्षु रहते हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 05:32 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 05:32 PM (IST)
शहद के छत्ते जैसा दिखता है फुकताल मठ, 2500 साल पुराना है इतिहास
शहद के छत्ते जैसा दिखता है फुकताल मठ, 2500 साल पुराना है इतिहास

राहुल शर्मा, जम्मू। बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख की दुर्गम पहाड़ियों में स्थित फुकताल मठ की संरचना शहद के छत्ते जैसी दिखती है। गुफाओं में छिपे इस मठ का इतिहास 2500 साल पुराना है। समुद्रतल से 4800 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित इस मठ में करीब 200 बौद्ध भिक्षु रहते हैं। स्मारक के अलावा यहां मठ के कमरे और लायब्रेरी भी है। यहां पहुंचना कितना मुश्किल है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक गहरी सुनसान गुफा में बने इस मठ के ठीक सामने काफी गहरी खाई है। ऐसे में यहां पहुंचने वाले लोगों को नदी पर बने सस्पेंशन पुल का इस्तेमाल कर पहुंचना पड़ता है। इस मठ तक पहुंचने के लिए करीबी कस्बे पादुम से तीन दिन ट्रैक करके पहुंचना पड़ता है। यहां जाने के लिए सबसे बेहतर समय जुलाई से सितंबर तक का है।

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दक्षिण-पूर्वी जांस्कर में रिमोट लंगनाक घाटी में स्थित फुगताल गोम्पा एकमात्र बौद्ध मठों में से एक है जहां भी अभी पैदल ही पहुंचा जा सकता है। मठ तक खाद्य सामग्री या फिर अन्य आवश्यक सामान घोड़ों, गधों या याक पर लाद कर लाई जाती है। मठ के लिए एक सड़क निर्माण की योजना है परंतु यह भी पैदल मार्ग ही होगा। सुविधा यह रहेगी कि तीन दिन का सफर कम होकर मात्र एक दिन का रह जाएगा। गुफाओं में बसे इस मठ का अपना ही आकर्षण है। 12वीं शताब्दी की शुरूआत में गंगासन शेप सैम्पो ने इसकी स्थापना की थी। यहां के अधिकांश कमरे मिट्टी और लकड़ी के बने हैं। माना जाता है कि यहां का पानी लोगों की बीमारियां ठीक कर सकता है। अगर आप शांतिप्रिय व्यक्ति हैं तो यह आपके लिए एक बेहतर जगह हो सकती है।

कई रहस्यों को सहेजे हैं यह मठ

फुकताल मठ या फुगताल गोम्पा शांतिपूर्ण निवास के रूप में जाना जाता है। मठ में कई विद्वान और शिक्षक बौद्ध धर्म की उत्कृष्ट विरासत व रहस्य को सहेजे हुए हैं। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि गुफा के अंदर चट्टान में एक रहस्यमय खोखला है जिससे पानी हमेशा निकलता रहता है। इसका बहाव न तो अधिक होता है और न ही कम। कहा जाता है कि इस पानी में हर बीमारी के उपचार की शक्तियां हैं।

यहां शांति की तलाश में आते हैं लोग

फुक का मतलब है ‘गुफा' और ताल का अर्थ अवकाश है। लद्दाख निवासी इस मठ को फुकथार भी कहते हैं। जहां थार का अर्थ है ‘मुक्ति'। इसलिए गुफा को ‘अवकाश की गुफा' या ‘मुक्ति की गुफा' भी कहा जाता है। मठ में एक पुस्तकालय और कई प्रार्थना कक्ष हैं। जहां प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन किया जाता है। यहां स्थित मंदिर, मूल गुफा और पवित्र बसंत भी देखने लायक हैं। यहां पत्थर का एक टैबलेट भी मौजूद है जो अलेक्जेंडर कोसोमा डी कोरोस के ठहरने का प्रतीक है। मठ की रंगीन और अद्वितीय वास्तुकला की प्रतीक दीवारें आपको अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

बौद्ध मंठ संस्कृति से ओतप्रोत है लद्दाख

बौद्ध धर्म के लामा सोनम टुंडुप ने बताया कि लद्दाख में लगभग 33 मठ हैं। लामायुरु मठ, थिक्से मठ, हेमिस गोम्पा, टैबो मठ, नाको गोम्पा, रंगदाम गोम्पा लद्दाख के प्रमुख मठ हैं जहां शांति की तलाश में विश्व के कोने-कोने से पर्यटक पहुंचते हैं। लामयुरु भारत में सबसे मशहूर बौद्ध मठों में से एक है। कारगिल से लेह के रास्ते पर पड़ने वाला इस मठ में 400 के करीब भिक्षु रहते हैं जो मिलनसार और बातचीत करना पसंद करते है। लामयुरु अपने आप में एक अनुभव है। यहां का थिक्से मठ मध्य लद्दाख में सबसे बड़ा मठ है। लेह से यह खूबसूरत मठ दिखाई देता है। हेमिस गोम्पा यहां का सबसे बड़ा और सबसे अमीर मठ है। लेह से कुछ किलोमीटर दूर बंजर पहाड़ी के पीछे स्थित इस मठ तक पहुंचने के लिए सड़क भी है। भारत में यह मठ अपनी प्रसिद्ध वार्षिक त्योहार के लिए जाना जाता है जहां जीवंत नृत्य और बौद्ध अनुष्ठान किए जाते हैं। इसी तरह हरेक मठ की अपनी संस्कृति व इतिहास है।  


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