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जब पीएचडी वालों को भी नेट या सेट के बराबर ही सुविधाएं मिलेंगी तो पीएचडी का क्या फायदा

पीएचडी एक रिसर्च आधारित डिग्री है जिसमें चार-पांच साल का समय लगता है। युवाओं का कहना है कि अगर सेट या नेट के बराबर ही अंक कम मिलेंगे तो पीएचडी करने का क्या फायदा। छात्र संगठन इसे मुद्दा बना रहे हैं।

By satnam singhEdited By: Lokesh Chandra MishraPublished: Sun, 02 Oct 2022 06:35 PM (IST)Updated: Sun, 02 Oct 2022 06:35 PM (IST)
जब पीएचडी वालों को भी नेट या सेट के बराबर ही सुविधाएं मिलेंगी तो पीएचडी का क्या फायदा
लिखित परीक्षा को स्क्रीनिंग के तौर पर लिया जाना चाहिए। इससे रिसर्च को धक्का लगेगा।

जम्मू, राज्य ब्यूरो : पीएचडी डिग्री करने वाले युवाओं के लिए उच्च शिक्षा में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए लिखित परीक्षा अनिवार्य करने व मूल्यांकन में नेट या सेट के बराबर पीएचडी के मूल्यांकन करने का प्रावधान रखे जाने से रिसर्च को धक्का लगेगा। युवा उच्च शिक्षा विभाग के इस आदेश का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। पीएचडी एक रिसर्च आधारित डिग्री है, जिसमें चार-पांच साल का समय लगता है। युवाओं का कहना है कि अगर सेट या नेट के बराबर ही अंक कम मिलेंगे तो पीएचडी करने का क्या फायदा। छात्र संगठन इसे मुद्दा बना रहे हैं।

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इस पर आंदोलन तेज करने की तैयारी हो गई है। केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू में मैनेजमेंट में पीएचडी कर रहे मुकेश मन्हास का कहना है कि लिखित परीक्षा का मूल्यांकन 75 प्रतिशत कर दिया गया है। इसमें साक्षात्कार का मूल्यांकन 15 प्रतिशत है और अकादमिक का दस प्रतिशत है। अकादमिक में पीएचडी व नेट को दो-दो अंक दिए गए हैं। ऐसे में पीएचडी डिग्री की कीमत ही क्या रह गई है। हम लिखित परीक्षा का विरोध नहीं करते है लेकिन पीएचडी डिग्री धारक विद्यार्थियों की रिसर्च की डिग्री का फायदा ही क्या हो रहा है।

लिखित परीक्षा को स्क्रीनिंग के तौर पर लिया जाना चाहिए। इससे रिसर्च को धक्का लगेगा। पहले वाले सिस्टम में अकादमिक को प्राथमिकता दी गई थी। उच्च शिक्षा विभाग का यह आदेश युवा विरोधी है। इतना नहीं उच्च शिक्षा विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए पहले निकाले गए दो सौ से अधिक पदों के लिए प्रक्रिया पूरी होने वाली थी लेकिन उसको भी रोक दिया है। अब नए तरीके पर नियुक्तियां होगी। संस्कृत में पीएचडी कर रहे रमणीक शर्मा का कहना है कि विश्वविद्यालयों में हजारों युवा पीएचडी करते हैं।

रिसर्च में पांच छह साल का समय लग जाता है। जब नेट या सेट के बराबर ही पीएचडी वाले युवाओं को सुविधाएं मिलेगी तो फिर पीएचडी का क्या फायदा। सरकार को अपने फैसले की समीक्षा करनी चाहिए। इकोनाॅमिक्स में पीएचडी करने वाले भूषण का कहना है कि असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए आवेदन प्रक्रिया को ज्यादा ही जटिल बनाया जा रहा है। वहीं छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और नेशनल स्टूडेंट यूनियन आफ इंडिया ने मामले पर आंदोलन तेज करने की बात कही है।


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