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जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार, महिला व जवाबदेही आयोग दोबारा शुरू करने संबंधी याचिका खारिज

निखिल ने दावा किया था कि वह मानवाधिकार कार्यकर्ता है। उसका कहना था कि इन आयोगाें के समक्ष 765 मामले चल रहे थे जिनमें 267 सेना व अर्ध सैनिक बलों के खिलाफ थे।अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ये तीनों आयोग बंद है जबकि मामले लंबित पड़े हैं।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Mon, 20 Sep 2021 08:22 PM (IST)Updated: Mon, 20 Sep 2021 08:22 PM (IST)
जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार, महिला व जवाबदेही आयोग दोबारा शुरू करने संबंधी याचिका खारिज
चीफ जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस रजनीश ओसवाल कर रहे थे, ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल खड़े किए।

जम्मू, जेएनएफ । जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने के बाद बंद किए गए मानवाधिकार, महिला व जवाबदेही आयोग को दाेबारा शुरू करने संबंधी तनहित याचिका को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया है।

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इस याचिका को खुद को कानून का छात्र बताने वाले निखिल पाधा ने दायर किया था। निखिल ने दावा किया था कि वह मानवाधिकार कार्यकर्ता है। उसका कहना था कि इन आयोगाें के समक्ष 765 मामले चल रहे थे जिनमें 267 सेना व अर्ध सैनिक बलों के खिलाफ थे। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ये तीनों आयोग बंद है जबकि मामले लंबित पड़े हैं।

उधर इस याचिका पर गौर करने के बाद जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस रजनीश ओसवाल कर रहे थे, ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल खड़े किए। बेंच का कहना था कि एक कानून का छात्र जो अभी हाल ही में पास आउट हुआ हो, खुद को मानवाधिकार कार्यकर्ता बता सकता है।

याचिकाकर्ता ने खुद के दावे को सही ठहराने के लिए कोई सबूत भी पेश नहीं किया जिससे पता चल सके कि उसने कभी मानवाधिकार की रक्षा की है। ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता खुद की नहीं बल्कि किसी अन्य की मुख्तारी कर रहा है। बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता की दलीलों से लगता है कि वह इन तीनों आयोग को शुरू करवाने में कोई रूचि नहीं रखता बल्कि सरकार को बदनाम करने का प्रयास कर रहा है।

वह अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद प्रदेश में सेना पर बर्बरता, कठोर कानून लागू करने के आरोप सरकार पर लगा रहा है। याचिकाकर्ता ने याचिका में डीडीसी चुनाव में गुपकार एलायंस की बड़ी जीत का भी उल्लेख किया है। याचिका को देखकर ऐसा लगता है कि यह किसी कानूनी नहीं बल्कि राजनीतिक मंच पर पेश की गई हो। बेंच ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति की याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती। कोर्ट में याचिकाकर्ता खुद पेश हुआ था जबकि प्रदेश की ओर से एडवोकेट जनरल डीसी रैना ने पक्ष रखा। कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए दस हजार रुपये रजिस्ट्रार जूडिश्यिल के पास जमा करवाने के निर्देश भी दिए। 


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