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सीमा पर सन्नाटा, दिलों में आक्रोश; सब कुछ गवां कर भी दुश्मन से बदला लेना चाहते हैं सीमांतवासी

जीरो लाइन में कोरोटाना खुर्द की कुंती का कहना है कि बच्चों को बड़याल ब्राह्मणा गांव में रिश्तेदारों के यहां भेज दिया है। दोपहर को वे पर बसे गांव में मवेशियों को चारा-पानी देने आते हैं।

By Edited By: Published: Fri, 01 Mar 2019 02:23 AM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2019 12:14 PM (IST)
सीमा पर सन्नाटा, दिलों में आक्रोश; सब कुछ गवां कर भी दुश्मन से बदला लेना चाहते हैं सीमांतवासी
सीमा पर सन्नाटा, दिलों में आक्रोश; सब कुछ गवां कर भी दुश्मन से बदला लेना चाहते हैं सीमांतवासी

अवधेश चौहान, (जीरो लाइन) सुचतेगढ़/कोरोटाना।  अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे सैकड़ों गांवों में सन्नाटा पसरा है। लोग गांवों में ही डटे हैं। उनके के दिल में कुछ न कुछ कसक जरूर है। किसी में पुलवामा हमले का आक्रोश है तो कोई सब कुछ गवां कर भी दुश्मन से बदला लेना चाहता है। सभी यही कहते हैं कि भारत के पास आखिरी यही मौका है कि कोई बड़ा फैसला ले जिससे कि तिल-तिल मरने से बेहतर है कि एक बार स्थिति साफ हो जाए। यही सवाल अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे गांव सुचेतगढ़, कोरोटाना बस्ती, कोरोटाना खुर्द, अब्दुलियां, खोजपुर आदि कई गांवों में रहने वाले लोगों के दिमाग में कौंध रहा है।

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गौरतलब है कि जब भी हालात खराब होते हैं पाक रेंजर्स इन गांवों में भारी गोलाबारी करते हैं। जीरो लाइन में कोरोटाना खुर्द की कुंती का कहना है कि बच्चों को बड़याल ब्राह्मणा गांव में रिश्तेदारों के यहां भेज दिया है। दोपहर को वे पर बसे गांव में मवेशियों को चारा-पानी देने आते हैं। शाम होते ही घर के सदस्य सुरक्षित स्थानों पर अपने रिश्तेदारों के घर चले जाते हैं। गांव में केवल एक या दो व्यक्ति ही रह जाते हैं। रवि कुमार का कहना है कि रात को सीमावर्ती क्षेत्रों में अंधेरा पसरा होता है क्योंकि प्रशासन ने रोशनी की मनाही की है। दुश्मन कहीं रोशनी का टारगेट लेकर फायरिंग न कर दे। हालात ऐसे हैं कि एक भी धमाका हुआ तो अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे 450 गांव गोलाबारी के जद में आ जाएंगे।

वह नहीं चाहते कि गोलाबारी हो क्योंकि सीमा पर रबी की फसल खड़ी है। कोरोटाना खुर्द के निवासी बचन लाल का कहना है कि साल में उन्हें दो बार बार्डर पर फाय¨रग के कारण पलायन करना पड़ता है जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। उनकी रोजी-रोटी खेतीबाड़ी पर निर्भर है जिसे वे छोड़ नहीं सकते। बेहतर हो कि एक बार ही आर-पार हो जाए तो हालात इतने बदतर नहीं होंगे जैसे कि हर तीन महीने बाद सीमा पर देखने को मिलते हैं। विद्यार्थी वर्ग परेशान रोहित और अजय का 12वीं का पेपर है, लेकिन सीमा पर उपजे हालात के चलते पेपर स्थगित कर दिया गया। बार्डर पर संचार सेवाएं ठप हैं। कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल रही कि अब अगला पेपर कब, कहां और कैसे होगा। मोबाइल काम नहीं कर रहे। नेटवर्क जीरो है जिससे बार्डर के लोग शहरों से कट चुके हैं।


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