पौष अमावस 5 जनवरी को, धार्मिक-आध्यात्मिक चिंतन-मनन के लिए है श्रेष्ठ
पितरों की शांति के लिए इस दिन उपवास रखने से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पशु-पक्षी समेत भूत-प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं।
जम्मू, जेएनएन। अमावस्या माह में एक बार ही आती है। अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव है। इस बार पौष अमावस्या तिथि 5 जनवरी शनिवार को है। धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन-मनन के लिए पौष माह श्रेष्ठ होता है। पितरों की शांति के लिए इस दिन उपवास रखने से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पशु-पक्षी समेत भूत-प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं। पौष मास में होने वाले मौसम परिवर्तन के आधार पर ही आने वाले साल में बारिश के होने का अनुमान लगाया जा सकता है।
श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया कि अमावस्या के दिन सूर्योदय काल में पवित्र नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा सामाथर्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं। पुण्य की प्राप्ति होती है।
पितरों की शांति के लिए ऐसे करे पूजा
अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करें। ध्यान के साथ पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें। उसके बाद पितृसूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है। अमावस्या के दिन सूर्य देव को ताम्बे के बर्तन में लाल चंदन, गंगा जल और शुद्ध जल मिलाकर 3 बार अघर्य दें। अमावस्या पर नीलकंठ स्तोत्र का पाठ, सर्पसूक्त पाठ, श्रीनारायण कवच का पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को अपनी सामथर्य के अनुसार दिवंगत की पसंदीदा मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए।
इन बातों का खास ख्याल रखें
अमावस्या के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्राह्मचार्य का पालन करना चाहिए। शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। व्रत रखने वालों को इस दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए। व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए। काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।