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Coronavirus: कश्मीर के अस्पतालों में प्रोनिंग तकनीक से इलाज से स्वस्थ हो रहे मरीज

प्रोनिंग तकनीक से खून में आक्सीजन के स्तर को संतुलित किया जाता है। कोरोना संक्रमण से मरीज के फेफड़े सिकुड़ जाते हैं। इससे खून में आक्सीजन का स्तर कम हो जाता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 09:37 AM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 04:35 PM (IST)
Coronavirus: कश्मीर के अस्पतालों में प्रोनिंग तकनीक से इलाज से स्वस्थ हो रहे मरीज
Coronavirus: कश्मीर के अस्पतालों में प्रोनिंग तकनीक से इलाज से स्वस्थ हो रहे मरीज

श्रीनगर, रजिया नूर: कश्मीर में कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए प्रोनिंग तकनीक संजीवनी बनकर उभरी है। यहां तक कि सांस लेने की दिक्कत दूर हुई। वेंटीलेटर तक जरूरत नहीं पड़ी। ऐसे मरीजों को पेट के बल या करवट बदलकर लिटाया जाता है। इस तकनीक को  प्रोनिंग कहा जाता है। कश्मीर में इस तकनीक के बेहतर परिणाम सामने आ रहे हैं।

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श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल श्रीनगर में कोरोना मरीजों पर प्रोनिंग तकनीक संजीवनी सिद्ध हो रही है। मरीजों के स्वस्थ होने की दर बढ़ी है। इससे वेंटिलेटरों पर दबाव कम हो गया है। अस्पताल के वार्ड एक से सात तक कम गंभीर मरीजों के लिए है। वार्ड 17 में गंभीर होते हैं। उन्हें वेंटीलेटर पर रखा जाता है। वार्ड 17 को छोड़ बाकी वार्डों में सांस लेने में दिक्कत की शिकायत वाले रोगियों की प्रोनिंग की जाती है।

डॉक्टर्स एसोसिएशन कश्मीर के अध्यक्ष डॉ. निसार उल हसन ने कहा कि पहले जिन मरीजों में संक्रमण के कारण खून में आक्सीजन का लेवल कम होता था को वेंटिलेटर पर रखना पड़ता था। जबसे प्रोङ्क्षनग तकनीक शुरू की है तबसे बहुत मरीजों को ही वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी है। एक्सीडेंट इमरजेंसी मेडिसन नामक पत्रिका में प्रोङ्क्षनग के हवाले से शोध की रिपोर्ट के अनुसार कोरोनाग्रस्त 50 ऐसे रोगियोंं जिनका आक्सीजन लेवल खतरनाक हद तक कम हो गया, उनकी  प्रोनिंग कराई गई। इस दौरान महज पांच मिनट में ही उनका आक्सीजन लेवल स्थिर हो गया।

क्या होती है  प्रोनिंग:  प्रोनिंग तकनीक से खून में आक्सीजन के स्तर को संतुलित किया जाता है। कोरोना संक्रमण से मरीज के फेफड़े सिकुड़ जाते हैं। इससे खून में आक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। ऐसे मरीजों को पेट या करवट के बल लिटाया जाता है। इससे उनके फेफड़े फैल जाते हैं और सांस लेने में दिक्कत नहीं होती। विशेषज्ञों के अनुसार पीठ के बल सोने से इंसान के फेफड़े सिकुड़े रहते हैं। छाती के संक्रमण से पीडि़त मरीजों के लिए इस तरह लेटना और भी हानिकारक होता है क्योंकि संक्रमण से फेफड़े पहले ही प्रभावित हो चुके होते हैं।

नई नहीं है  प्रोनिंग तकनीक:  प्रोनिंग कोई नई तकनीक नहीं है। चिकित्सा क्षेत्र में इसका प्रचलन पहले भी था। चिकित्सक छाती के संक्रमण से ग्रस्त रोगियों की प्रोङ्क्षनग कराते थे। वर्ष 2013 में इस तकनीक पर शोध हुआ। इसमें पता चला कि छाती के संक्रमण की गंभीर समस्या से ग्रस्त मरीजों को  प्रोनिंग से बड़ा लाभ मिला। पीठ के बल लेटने वालों की तुलना में इस तकनीक से मरीज जल्दी ठीक हुए। 


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