Sankalp Diwas : मीरपुर में बांध बनाने से हमारी जमीन जलमग्न हुई और रोशन पाकिस्तान हो रहा है
जमीन हमारी जलमग्न हुई और रोशन पाकिस्तान हो रहा है। पाकिस्तान ने मीरपुर में बंगला बांध का निर्माण किया जिसमें पूरा मीरपुर शहर डूब गया। वहां बिजली तैयार कर पाकिस्तान अपने शहरों को रोशन कर रहा है। अब गिलगित-बाल्टिस्तान में भी पाकिस्तान बांध तैयार करने जा रहा है।
जम्मू, जागरण संवाददाता : न्यू दिल्ली स्कूल आफ मैनेजमेंट के सहायक प्रोफेसर कैप्टन आलोक बंसल ने संकल्प दिवस पर कहा कि जमीन हमारी जलमग्न हुई और रोशन पाकिस्तान हो रहा है। पाकिस्तान ने मीरपुर में बंगला बांध का निर्माण किया, जिसमें पूरा मीरपुर शहर डूब गया। वहां बिजली तैयार कर पाकिस्तान अपने शहरों को रोशन कर रहा है। इतना ही नहीं, अब गिलगित-बाल्टिस्तान में भी पाकिस्तान बांध का निर्माण कर वहां बिजली तैयार करने जा रहा है। वहीं गुलाम जम्मू कश्मीर में अलग से प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति बनाने पर कैप्टन बंसल का कहना था वह सिर्फ दिखावा है। कई बार वहां ऐसा भी हुआ है कि राष्ट्रपति को सीधे जेल में डाल दूसरा राष्ट्रपति पाकिस्तान खड़ा देता है। साेमवार को जम्मू यूनिवर्सिटी के सभागार में संकल्प दिवस कार्यक्रम को कैप्टन आलोक बंसल संबोधित कर रहे थे।
वहीं गिलगित-बाल्टिस्तान के महत्व को लेकर कैप्टन आलोक बंसल ने कहा कि यह इलाका जम्मू कश्मीर का सामरिक क्षेत्र है। अगर आज इस पर पाकिस्तान कब्जा नहीं करता तो वह चीन के साथ कभी नहीं जुड़ पाता। यह इलाका खनिजों के लिए भी बहुत स्मृद्ध है। जहां नदियों से सोना तक निकलता है। पाकिस्तान का अस्सी प्रतिशत पर्यटक यहीं पर आता है। इस मौके पर कैप्टन बंसल ने गिलगित-बाल्टिस्तान के इतिहास पर भी प्रकाश डाला जो यह दर्शाता है कि यह इलाको मौर्य साम्राज्य का भाग था जो कुशान साम्राज्य्र उसके बाद कश्मीर के सम्राट ललितादित्य, शाहजहां, मुगल शासकों से अफगान और उसके बाद राजा रंजीत सिंह से होते हुए महाराजा गुलाब सिंह तक पहुंचा।
उन्होंने बताया कि महाराजा गुलाब सिंह के जनरल रहे जोरावर सिंह ने भी 1840 में गिलगित-बाल्टिस्तान पर जीत हासिल की थी। 28 मार्च, 1935 को अंग्रेजों ने इस महाराजा से लीज पर लिया था और उन्होंने 1947 में वापस महाराजा को सौंप दिया था। यहां पर पहली अगस्त, 1947 को ब्रिगेडियर गंसारा सिंह गर्वनर थे, जिन्हें पहली नबंवर को गिरफ्तार कर मेजर ब्राउन ने चार नवंबर को पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया था। इसके बाद स्कुर्दों ने वहां फरवरी 1948 में हमला किया था लेकिन छह महीने बाद उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा।