Jammu Kashmir: इंजीनियरों के सेल्फ हेल्प ग्रुप बंद करने के मुद्दे को तूल देने में जुटा विपक्ष
सरकार ने इंजीनियरिंग के विभिन्न विंगों को एक दिसंबर 2020 से समाप्त करके एक विंग बनाने का आदेश भी दिया है।
जम्मू, राज्य ब्यूरो: जम्मू-कश्मीर में इंजीनियरों के सेल्फ हेल्प ग्रुप बंद किए जाने का मुद्दा तूल पकड़ने लगा है। विपक्षी पार्टियों इस मुद्दा बनाकर सरकार और भाजपा को घेरने की तैयारी में जुट गई है। पैंथर्स पार्टी के बाद अब कांग्रेस भी इसको तूल देने की कोशिश में है। पार्टियां इसे रोजगार के साथ जोड़ कर कह रही है कि सरकार ने आदेश जारी करके पंद्रह इंजीनियरों को बेरोजगार कर दिया है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता रविंद्र शर्मा ने मंगलवार पत्रकार वार्ता में पूछा कि सरकार रोजगार दे रही है या छीन रही है।
जम्मू कश्मीर में बढ़ती बेरोजगारी के बीच पंद्रह हजार इंजीनियरों से रोजगार छीनना ठीक नहीं है। पार्टी इस पर चुप नहीं बैठेगी। उन्होंने उपराज्यपाल से आग्रह किया कि वे इस फैसले को वापिस लें। इससे पहले पैंथर्स पार्टी ने भी सरकार और भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा था कि सेल्फ हेल्प ग्रुपों के जरिए इंजीनियर अपना गुजर बसर कर रहे थे। यह भी छीन लिया गया है। पार्टी के चेयरमैन हर्षदेव सिंह ने कहा कि युवा विरोधी नीतियों पर पार्टी चुप नहीं बैठेगी।
बताते चले कि लोक निर्माण विभाग, प्रधानमंत्री सड़क ग्राम योजना, जल शक्ति, बिजली विकास विभाग में कार्य का तीस प्रतिशत काम सेल्फ हेल्प ग्रुपों से जुड़े इंजीनियरों को दिया जाता था। सरकार ने दस अगस्त को आदेश जारी करके सेल्फ हेल्प ग्रुपों का तीस प्रतिशत कोटा समाप्त कर दिया है। सरकार ने इंजीनियरिंग के विभिन्न विंगों को एक दिसंबर 2020 से समाप्त करके एक विंग बनाने का आदेश भी दिया है। इसके लिए लोक निर्माण विभाग के सचिव की देखरेख में कमेटियों का गठन भी किया गया है।
जम्मू-कश्मीर में इंजीनियरों की बढ़ती बेरोजगारी को देखते हुए साल 2004 में स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व वाली पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार ने इंजीनियरों के सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर रोजगार दिया था। इन सेल्फ हेल्प ग्रुपों को निर्माण कार्यों में 20 से 30 प्रतिशत के आरक्षण के आधार पर ठेके प्रदान किए जाते थे। अब यह व्यवस्था बंद कर दी गई है।
इंजीनियर पंकज गुप्ता का कहना है कि इस दौर में इंजीनियरों के महत्व को किसी भी हाल में नकारा नहीं जा सकता है। अगर रहबर-ए-तालीम, रहबर-ए-सेहत, रहबर-ए-खेल जैसी योजनाओं के तहत विभिन्न क्षेत्रों के युवाओं को रोजगार दिया जा सकता है तो बेरोजगार इंजीनियरों के लिए ऐसी कोई योजना क्यों नहीं बना दी जाती।