केंद्र सरकार के हाथ जम्मू कश्मीर की डोर, सभी प्रमुख नीतिगत फैसले अब केंद्र लेगी
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य से जुड़े सभी प्रमुख नीतिगत फैसले अब संसद लेगी।
जम्मू, नवीन नवाज। जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के साथ ही राज्य में हालात सामान्य बनाने से लेकर सभी संबंधित पक्षों से बातचीत का माहौल तैयार करना, आतंकरोधी अभियान चलाना और राज्य के सभी वर्गो की उम्मीदों को पूरा करने की सीधी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो गई है।
अब केंद्र न राज्य प्रशासन पर असहयोग का आरोप लगा सकेगा और न राज्य के संतुलित राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक विकास पर अपने कदम पीछे हटा सकेगा। अलबत्ता, केंद्र के हर कदम से रियासत की सियासत में हलचल होना तय है और सभी की नजरें धारा 249 के प्रयोग पर भी रहेंगी।
लद्दाखियों को केंद्र शासित दर्जे की उम्मीद बढ़ी :
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य से जुड़े सभी प्रमुख नीतिगत फैसले अब संसद लेगी। इसलिए लद्दाखियों को अपने लिए केंद्र शासित दर्जे की मांग पूरी होने की उम्मीद है। केंद्र सरकार अब यह बहाना नहीं लगा सकेगी कि यह राज्य सरकार को करना है। लद्दाखियों की उम्मीद को बेमानी इसलिए भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद भी राष्ट्रपति शासन के दौरान ही मिली थी। केंद्र शासित राज्य का दर्जा लद्दाख प्रांत का सबसे बड़ा मुद्दा है। इसी मांग के लिए हाल ही में भाजपा के सांसद थुपस्तान छवांग ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
जम्मू संभाग का कश्मीर के बराबर विधानसभा क्षेत्र करने का होगा दबाव :
विधानसभा क्षेत्रों का पुणर्निधारण भी अब केंद्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। हालांकि वर्ष 1996 में सत्तासीन हुई नेशनल कांफ्रेंस की सरकार द्वारा पारित एक कानून के तहत वर्ष 2026 तक राज्य में नए विधानसभा क्षेत्र नहीं बन सकते और न मौजूदा विधानसभा क्षेत्रों की सीमा बदली जा सकती है। आरक्षित सीटों में बदलाव भी नहीं हो सकता, लेकिन भाजपा जो हमेशा राज्य में राजनीतिक संतुलन का नारा देती रही है, अक्सर जम्मू संभाग में कश्मीर के बराबर विधानसभा क्षेत्र करने और आरक्षित सीटों के क्रम में बदलाव पर जोर देती रही है। अब स्थानीय भाजपा नेताओं पर दबाव रहेगा कि वे केंद्र में सत्तासीन भाजपानीत राजग सरकार के जरिए जम्मू के साथ राजनीतिक भेदभाव को दूर करे।
आतंकियों व अलगाववादियों पर और बना सकते हैं दबाव :
राज्य में शांति बहाली और कश्मीर समस्या के समाधान पर भी अब केंद्र को स्पष्ट नीति अपनानी होगी। अफस्पा हटाने या सुरक्षाबलों का कश्मीर में फुट¨प्रट घटाने के लिए उस पर दबाव बनाने की स्थिति में न पीडीपी है और न नेशनल कांफ्रेंस। अलबत्ता, अब केंद्र चाहे तो सुरक्षाबलों को आतंकियों के खिलाफ राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त अभियान चलाने की ठोस व्यवस्था करने के साथ अलगाववादियों, पत्थरबाजों और आतंकियों के संरक्षकों के खिलाफ स्पष्ट व कठोर नीति भी लागू कर सकता है।
केंद्र इन 62 विषयों पर भी ले सकता है फैसले :
अदालतें, राज्य पुलिस, जिला अस्पताल, सफाई, पशु, सिंचाई, कृषि, सड़क, वन, रेलवे पुलिस, वन समेत 62 विषयों पर आधारित राज्य सूची पर केंद्र सरकार चाहे तो अपने फैसले दे सकती है, क्योंकि भारतीय संविधान की धारा 249 को राज्य में वर्ष 1986 के दौरान तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन सिंह ने राष्ट्रपति शासन के रहते हुए विस्तार दिया था। इसके तहत केंद्र ने कई कानून भी बनाए थे। अलबत्ता, नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता अब्दुल रहीम राथर व मोहम्मद शफी उड़ी ने राज्य उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ एक याचिका भी दायर की थी।
केंद्र इच्छानुसार लागू कर सकता है कई कानून :
संविधान विशेषज्ञ और पूर्व शिक्षा मंत्री हर्ष देव सिंह ने कहा कि केंद्र अब राज्य में अपनी इच्छानुसार कई कानून लागू कर सकता है, बशर्ते संसद उन्हें पारित करे। अब देखना यह है कि क्या केंद्र सरकार राज्य संविधान और राज्य सूची में अतिक्रमण करती है या नहीं और संवैधानिक मुद्दों पर क्या रुख अपनाती है।