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J&K: अब मरीजों को टेस्ट करवाने के लिए नहीं होना पड़ेगा दरबदर, मेडिकल उपकरणों की देखभाल करेगी निजी कंपनी

करीब 30 हजार उपकरणों की जांच हुई तो पता चला कि 4500 करोड़ रुपयों के उपकरण ऐसे ही पड़े हुए हैं। 30 से 60 फीसद उपकरण काम नहीं करते हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 11:46 AM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 06:51 PM (IST)
J&K: अब मरीजों को टेस्ट करवाने के लिए नहीं होना पड़ेगा दरबदर, मेडिकल उपकरणों की देखभाल करेगी निजी कंपनी
J&K: अब मरीजों को टेस्ट करवाने के लिए नहीं होना पड़ेगा दरबदर, मेडिकल उपकरणों की देखभाल करेगी निजी कंपनी

जम्मू, रोहित जंडियाल। जम्मू कश्मीर के अस्पताल बाहर से देखने में तो बड़े शहरों का मुकाबला करते हैं, लेकिन भीतर मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। अस्पतालों में इस समय 30 फीसद से अधिक उपकरण खराब पड़े हैं। इनमें ब्लड प्रेशर की जांच करने वाले उपकरणों से लेकर एक्स-रे मशीनें तक हैं। विडंबना यह है कि इन्हें ठीक करने के लिए पूर्व सरकारों व अस्पताल प्रबंधन ने कभी गंभीरता नहीं दिखाई। कई उपकरण ऐसे थे जो मात्र सौ या हजार रुपये खर्च करके ठीक हो सकते थे, लेकिन उसकी जगह नई मशीनें खरीदने को प्राथमिकता दी गई या फिर स्टोर में फेंक दिया गया। इसका खामियाजा भुगत कौन रहा है वह मरीज जो आते तो सरकारी अस्पताल में, लेकिन जांच के लिए जाते बाहरी क्लीनिकों में। यहां महंगे दाम पर वे टेस्ट कराने को मजबूर हैं।

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कंपनी ने उपकरणों की मैपिंग की : इस समय जम्मू-कश्मीर में हैदराबाद की एक कंपनी को अस्पतालों में उपकरणों की देखभाल करने का जिम्मा सौंपा है। कंपनी की टीम ने उपकरणों की मैङ्क्षपग की है। अभी तक जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 15,237 उपकरणों की मैपिंग की गई है। इसमें से चार हजार से अधिक उपकरण खराब पड़े हुए हैं। इन उपकरणों में ब्लड प्रेशर की जांच करने वाली मशीनें, सक्शन मशीनें, एक्स-रे मशीनें, अल्ट्रासाउंड मशीनें, आटोक्लेब, ब्लड बैंकों के रेफ्रीजरेटर, डायलिसेस के लिए इस्तेमाल होने वाली आरओ प्लांट, आपरेशन टेबल, आपरेशन टेबल लाइटें, कलर डाप्लर, वेंटीलेटर शामिल हैं। अन्य कई मशीनें ऐसी हैं जो कि कई वर्षो से अस्पतालों में खराब पड़ी हुई हैं। विशेषकर एक्स-रे मशीनें। कुछ मशीनें तो मात्र कुछ महीने इस्तेमाल होने के बाद खराब हो गई थी। इन्हें सप्लाई करने वाली कंपनियों ने कभी ठीक करने का प्राथमिकता नहीं दी। इन कंपनियों के खिलाफ कभी अस्पताल प्रबंधन या फिर स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारियों ने भी कोई कार्रवाई नहीं की। इससे यह कंपनियां लगातार अस्पतालों में करोड़ों के उपकरण सप्लाई करती रहीं।

अन्य जिलों में भी बुरा हाल : इस समय जम्मू कश्मीर में बारामुला, डोडा, किश्तवाड़, राजौरी में सिटी स्कैन मशीनें खराब पड़ी हुई हैं। इन्हें भी ठीक नहीं करवाया गया। इस कारण यहां के मरीज जम्मू या फिर श्रीनगर में इलाज के लिए आने को विवश हैं। 

माना नहीं हैं इंजीनियर: स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के वित्त आयुक्त अटल ढुल्लु ने भी माना कि जम्मू-कश्मीर में बायो मेडिकल इंजीनियर नहीं हैं।

नहीं होते थे मरम्मत कांट्रेक्ट: अस्पतालों में उपकरण ठीक नहीं होने का एक कारण अधिकांश मशीनों का वार्षिक मरम्मत कांट्रेक्ट नहीं होना भी था। अस्पताल प्रबंधन करोड़ों रुपयों की मशीनरी तो खरीद लेता था। वारंटी खत्म होने के बाद इनकी मरम्मत के लिए कोई भी कांट्रेक्ट नहीं होता था। यही नहीं कई बार तो वारंटी मशीनों को लगाए बिना ही खत्म हो जाती थी। कुछ जिलों में करोड़ों रुपयों की लागत से खरीदी गई सिटी स्कैन मशीनें भी खरीददारी के एक साल बाद ही लगाई गई थी। मशीनों का वारंटी पीरियड भी एक से दो साल के बीच ही होता है।

जीएमसी व सहायक अस्पताल अभी भी दूर: स्वास्थ्य विभाग में तो उपकरणों की देखभाल का जिम्मा निजी कंपनी को सौंप दिया है। मेडिकल कालेजों व उनके सहायक अस्पतालों में बायो मेडिकल उपकरणों की देखभाल का जिम्मा किसी के पास नहीं है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन करीब बीस प्रमुख अस्पताल आते हैं। इनमें जीएमसी जम्मू, श्रीनगर, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, चेस्ट डिजिजेस अस्पताल, बोन एंड ज्वाइंट अस्पताल, मनोरोग व डेंटल अस्पताल प्रमुख हैं।

निजी कंपनी को सौंपा जाएगा उपकरणों की देखभाल का जिम्मा 

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर व लद्दाख के अस्पतालों में बायो मेडिकल उपकरणों की देखभाल का जिम्मा निजी कंपनी को सौंपा गया है। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों से लेकर जिला अस्पतालों तक बायो मेडिकल उपकरणों की देखभाल हैदराबाद की कंपनी मेडिसिटी हेल्थ केयर को सौंपी है। कंपनी ने सोमवार से काम करना शुरू कर दिया है। कंपनी चार महीनों के भीतर सभी उपकरणों की मरम्मत कर उन्हें ठीक कर देगी। अगर कोई उपकरण खराब होगा तो कंपनी को उसे अधिकतम सात दिनों के भीतर ठीक करना होगा। ऐसा न करने पर कंपनी को जुर्माना करने का प्रावधान है।

कार्यक्रम का आगाज स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के वित्तीय आयुक्त अटल ढुल्लु ने किया। उन्होंने कहा कि विभाग के पास बायो मेडिकल इंजीनियरों की कमी है। अस्पतालों में करोड़ों रुपयों के उपकरणों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। वार्षिक मरम्मत कांट्रेक्ट करने की भी विभाग के पास क्षमता नहीं है। अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टर तो हैं, लेकिन उपकरणों को सही तरीके से चलाने का अनुभव उनके पास भी नहीं है। ढुल्लु ने कहा कि यह समस्या जम्मू कश्मीर में ही नहीं बल्कि पूरे देश में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुछ वर्ष पहले कहा था कि अस्पतालों में पड़े उपकरणों का सही इस्तेमाल नहीं होता या फिर इनकी सही देखभाल नहीं होती। इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रलय ने अस्पतालों का सर्वे करवाया।

4500 करोड़ के उपकरण ऐसे ही पड़े हुए हैं

करीब 30 हजार उपकरणों की जांच हुई तो पता चला कि 4500 करोड़ रुपयों के उपकरण ऐसे ही पड़े हुए हैं। 30 से 60 फीसद उपकरण काम नहीं करते हैं। इसके बाद उपकरणों की देखभाल करने का जिम्मा निजी कंपनियों को दिया गया। इसमें केंद्र सरकार के अलावा राज्य भी हिस्सा देते हैं। 20 राज्यों ने इस कार्यक्रम को लागू किया है। जिला अस्पतालों में 95 फीसद, उप जिला अस्पतालों में 90 फीसद और प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में 80 फीसद उपकरणों को हर समय ठीक रखना है। कंपनी उपकरण ठीक करती है तभी भुगतान होगा।

80 फीसद की मैपिंग हुई

वित्त सचिव ने कहा कि अभी तक 80 फीसद उपकरणों की मैङ्क्षपग हो गई है। खराब उपकरणों की मरम्मत चार महीने में होगी। यह कांट्रेक्ट कंपनी को पांच साल के लिए दिया गया है। जब भी किसी उपकरण के खराब होने की जानकारी मिलेगी तो सात दिनों के भीतर इसे ठीक करना होगा। अगर यह ठीक नहीं हुआ तो कंपनी को जुर्माना होगा। इसके लिए कंपनी ने अपने काल सेंटर भी बनाए हैं। अगर किसी उपकरण का पहले से वार्षिक मरम्मत कांट्रेक्ट हुआ है तो इसकी मियाद खत्म होने के बाद इसे रिन्यू नहीं किया जाएगा। आगे से किसी भी अन्य कंपनी को मरम्मत कांट्रेक्ट नहीं होगा। पांच साल यही कंपनी मरम्मत करेगी।

कंपनी ने जिला अस्पतालों में तैनात किए बायोमेडिकल इंजीनियर

कंपनी ने जिला अस्पतालों में अब बायोमेडिकल इंजीनियर तैनात कर दिए हैं। यह इंजीनियर ही उपकरणों की देखभाल करेंगे। सरकार ने अपने स्तर पर किसी भी अस्पताल में एक भी बायोमेडिकल इंजीनियर का पद सृजित नहीं किया। उपकरणों की सूची बन गई है। कॉल सेंटर बन गए हैं। कोई उपकरण खराब न हो, इसलिए यह किया गया है। इससे पूर्व नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) के नोडल अधिकारी मसर्रत ने स्वागत भाषण पढ़ा। एनएचएम निदेशक भूपेंद्र कुमार ने इस पूरे प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से जानकारी दी। वहीं, डिवीजनल नोडल अधिकारी एनएचएम डॉ. हरजीत राय ने धन्यवाद प्रस्ताव पढ़ा। स्वास्थ्य निदेशक जम्मू डॉ. रेनू शर्मा, परिवार कल्याण विभाग के निदेशक डॉ. अरुण शर्मा, इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसीन के डायरेक्टर डॉ. मोहन सिंह सहित मुख्य चिकित्सा अधिकारी और ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी इस अवसर पर मौजूद थे।

बेहतर होंगी स्वास्थ्य सुविधाएं

  • उपकरणों की मरम्मत करना देश भर में चुनौती रहता है। लेकिन अब जम्मू कश्मीर में बायो मेडिकल उपकरणों की देखभाल का प्रोजेक्ट शुरू होने से स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी। अस्पताला में मरीजों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। हमने हैदराबाद की कंपनी को केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों ही जगहों पर उपकरणों की देखभाल का जिम्मा सौंपा है। - भूपेंद्र कुमार, मिशन निदेशक एनएचएम

समय पर उपकरण ठीक न होने पर जुर्माने का प्रावधान भी

  • अस्पतालों में उपकरण ठीक करने का जिम्मा हमें मिला है। हमारा प्रयास है कि तय समय सीमा से पहले हम अस्पतालों में खराब होने वाली किसी भी मशीन को ठीक कर दें। इसमें खराब मशीन समय पर ठीक न करने पर जुर्माने का प्रावधान भी है। कंपनी का पूरा प्रयास होगा कि मशीन खराब होने से किसी को कोई परेशानी न हो। - निगम गुप्ता 

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