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जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनते ही नेकां व पीडीपी के एजेंडे भी हुए समाप्त

जम्मू-कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू कश्मीर में विभाजित होने के बाद कश्मीर केंद्रित सियासी दल एक नया मंच खड़ा कर सकते हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 08 Aug 2019 10:58 AM (IST)Updated: Thu, 08 Aug 2019 10:58 AM (IST)
जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनते ही नेकां व पीडीपी के एजेंडे भी हुए समाप्त
जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनते ही नेकां व पीडीपी के एजेंडे भी हुए समाप्त

जम्मू, सतनाम सिंह। जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होते ही नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के एजेंडे दफन होकर रह गए। अनुच्छेद 370 से मिले विशेष अधिकारों के कारण कश्मीर में राज करने वाली नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को जरूरत से ज्यादा आजादी तो नहीं मिली, लेकिन जो विशेष अधिकार थे वह भी हाथ से निकल गए।

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कश्मीर केंद्रित पार्टियां खुद मुख्तियारी के नाम पर राज्य के अधिकारों में बढ़ोतरी के लिए केंद्र पर दबाव बनाती रही। नेकां ने स्वायत्तता का मुद्दा छेड़कर शुरुआत की। 26 जून 2000 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला के समय जम्मू कश्मीर को स्वायत्तता देने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित कर केंद्र को भेजा गया। नेकां ने चुनाव में इसे मुद्दा बनाया, लेकिन केंद्र ने कभी इस पर गौर नहीं किया। इस बार भी नेकां ने वायदा किया था कि अगर वह सत्ता में आई तो स्वायत्तता को लागू करेगी।

पीडीपी ने अक्टूबर 2008 में स्वायत्तता के मुद्दे से एक कदम आगे बढ़कर स्वशासन का मुद्दा उठाया। पार्टी के मुख्य संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 25 अक्टूबर 2008 में महबूबा मुफ्ती की उपस्थिति में श्रीनगर में स्वशासन का दस्तावेज जारी किया। विधानसभा चुनाव से पहले यह दस्तावेज जारी करते हुए पीडीपी ने इसे मुद्दे बनाया।

स्वशासन में यह भी था कि अनुच्छेद 356 को जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जाए। राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास यह अधिकार नहीं होने चाहिए कि वे सरकार या विधानसभा को भंग कर सकें। पीडीपी ने चुनाव में इस मुद्दे को भुनाया। पीडीपी ने वर्ष 2002 से 2008 तक कांग्रेस के साथ सरकार चलाई। वर्ष 2008 में नेकां ने कांग्रेस के साथ सरकार चलाई। वर्ष 2015 में पीडीपी ने भाजपा के साथ सरकार बनाई। चूंकि मिलीजुली सरकारें थी इसलिए स्वायत्तता व स्वशासन के मुद्दों को छोडऩा पड़ा, लेकिन कश्मीर केंद्रित पार्टियों ने जमकर राजनीति की।

नए मंच पर एकजुट हो सकते हैं कश्मीरी दल

जम्मू-कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू कश्मीर में विभाजित होने के बाद कश्मीर केंद्रित सियासी दल एक नया मंच खड़ा कर सकते हैं। इस मंच के बैनर तले कश्मीर के सभी राजनीतिक, सामाजिक और मजहबी संगठनों के साथ व्यापारिक संगठन भी जमा हो सकते हैं। इसके लिए कश्मीर में तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक वर्ग और महाज ए रायशुमारी से जुड़े रहे कुछ पुराने सियासतदां सक्रिय हो चुके हैं। पाकिस्तान से भी ऐसे मंच को कूटनीतिक, राजनीतिक और वित्तीय मदद मिल सकती है। कश्मीर के वरिष्ठ साहित्यकार और राजनीतिक मामलों के जानकार हसरत गड्डा कहते हैं कि आज की परिस्थितियां अलग हैं।

मगर जिस तरह से कश्मीर केंद्रित दलों की सियासत और एजेंडा खत्म हुआ है, उसके बाद उनके पास एक मंच पर जमा होने के अलावा कोई विकल्प नहीं हैं। वरिष्ठ पत्रकार रशीद राही कहते हैं कि बीते दो दिन से वादी के विभिन्न हिस्सों से खबरें मिली हैं, उनके आधार पर कहा जा सकता है कि नेकां, पीडीपी सहित कश्मीर केंद्रित दलों से जुड़े लोग और कुछ बुद्धिजीवियों ने रायशुमारी फ्रंट से जुड़े रहे पुराने लोगों के साथ संपर्क साधा है। मौजूदा परिस्थितियों में नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक समेत विभिन्न राजनीतिक दल अगर कोई प्लेबीसाइट फ्रंट की तर्ज पर कोई नया मोर्चा बनाते हैं तो हुॢरयत समेत विभिन्न अलगाववादी संगठनों का कैडर भी उसके साथ जुड़ेगा।

1955 में गठित हुआ महाज-ए-रायशुमारी : पहले भी प्लेबिसाइट फ्रंट जिसे महाज-ए-रायशुमारी कहा जाता है का गठन हुआ था। 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु द्वारा जेल में डाले जाने के बाद, शेख के करीबी मिर्जा अफजल बेग ने 1955 में महाज-ए-रायशुमारी गठित किया था। इस फ्रंट से शेख अब्दुल्ला ने खुद को औपचारिक तौर पर नहीं जोड़ा, लेकिन गठन उनके ही इशारे पर हुआ था और नेशनल कांफ्रेंस का तत्कालीन कैडर ही इसका हिस्सा था।

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून बिना सोचे समझे पारित किया

  • पैंथर्स पार्टी के मुख्य संरक्षक एवं सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के वरिष्ठ कार्यकारी सदस्य प्रो. भीम सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार ने संसद में जम्मू-कश्मीर के दर्जे के संबंध में नवीनतम अधिनियम को बिना सोचे-समङो लाया। संसद के नए अधिनियम जिसे जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के रूप में वर्णित किया है, पूरी तरह से भ्रामक है। भारतीय संविधान से 35-ए को लेकर संसद व जम्मू-कश्मीर द्वारा बनाए नए कानून का पहला हिस्सा उचित है, क्योंकि 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी कर अनुच्छेद 35 में जोड़ा था, जो छह महीने के लिए वैध था। 35ए ने सभी भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों को अपने नियंत्रण में ले लिया था।

कश्मीर की गलतियों की सजा जम्मू क्यों भुगते: हर्ष देव

  • पैंथर्स पार्टी के चेयरमैन हर्षदेव सिंह ने जम्मू कश्मीर को दो भागों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने के केंद्र सरकार के फैसले की निंदा की है। उन्होंने कहा कि दो सौ साल पुराने राज्य को पीछे धकेल दिया गया है। कश्मीर की गलतियों की सजा जम्मू क्यों भुगते। अपने आवास पर हर्षदेव ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं कि कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक होते ही जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा, लेकिन इसके लिए जम्मू क्यों पिस रहा है। कश्मीर की तरह जम्मू को भी केंद्र शासित प्रदेश के दायरे में खड़ा कर दिया गया है। राज्य का बंटवारा जिस तरह किया गया है, उससे जम्मू के डोगरों की पहचान खत्म हो जाएगी।

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