Jammu Kashmir Land Law: नए भूमि कानून से पीडीपी, नेकां को बदलने पड़ेंगे अपने सियासत ब्लैकमेलिंग के सुर
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ बताते हैं कि निश्चित तौर पर नए लोगों के बसने से देश की आवाज कश्मीर में मजबूती से सुनाई देगी। यह न इन सियासी दलों के अलगाववादी एजेंडे के बहकावे में आएंगे और न ही इन्हें स्वायतता और अलग संविधान के मुद्दे प्रभावित कर सकते हैं।
श्रीनगर, नवीन नवाज: जम्मू-कश्मीर में सभी भारतीय नागरिकों को जमीन खरीदने की आजादी मिलने पर पूरा देश एक स्वर में खुशी जता रहा है। कोई भी देश का नागरिक जम्मू-कश्मीर में बस सकता है, व्यापार कर सकता है। आम नागरिक इसे नई उम्मीद के तौर पर देख रहा हैं पर कश्मीर के कुछ सियासी दल प्रलाप कर रहे हैं कि कश्मीर को बिक्री पर लगा दिया गया है। स्थानीय भावनाओं के शोषण की सियासत के बहाने अपनी सत्ता के महल खड़े करने वाले दलों के लिए निश्चित तौर पर झटके से कम नहीं है। चूंकि यह फैसला उनकी तमाम रिवायतों को बदल देगा और उन्हें सियासत का तौर-तरीका भी बदलना पड़ेगा।
जम्मू-कश्मीर खासतौर पर कश्मीर में प्रतिवर्ष 10 लाख के करीब लोग यहां रोजगार के लिए आते हैं। वहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुके हैं। अभी स्थानीय भावनाओं के यह लोग द्वितीय श्रेणी के ही नागरिक बनकर रहे। वादी में बर्फबारी के बाद वापस लौटना पड़ता था। इसके अलावा केंद्र सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी और निजी उद्यमों में कार्यरत लोग भी कभी राज्य में नागरिक हक नहीं पा सके। इनकी भावनाएं और इनके मूल अधिकार कभी जम्मू-कश्मीर की सियासत में जगह नहीं बना सके। इस आबादी का एक हिस्सा भी कश्मीर में रहना आरंभ कर देते हैं तो फिर अलगाववाद की सियासत के सहारे देश को ब्लैकमेल कर सत्ता भोगने वाले नेताओं को नई राह टटोलनी होगी।
यही वजह है कि अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के अलावा अल्ताफ बुखारी समेत सभी कश्मीर केंद्रित नेता इस फैसले से आहत महसूस कर रहे हैं, उतना वह पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने पर भी नहीं थे। उन्हें उम्मीद थी कि 370 को सियासी मुद्दा बनाकर वह कश्मीरी भावनाओं को उकसाकर केंद्र सरकार को फिर ब्लैकमेल कर सत्ता की सीढ़ी पर कदम बढ़ा पाएंगे। इस तरह उनकी सियासत चलती रहेगी। इस्लाम और कश्मीर की पहचान का हवाला देकर ध्रुवीकरण की सियासत चलती रहेगी। इसी सोच के मद्देनजर वह पीपुल्स एलायंस के मंच पर एकजुट हुए लेकिन केंद्र के इस बड़े फैसले ने उनके हवाई किलों को ढहा दिया है। पीपुल्स एलायंस के गठन को एक पखवाड़ा भी नहीं हुआ कि जम्मू कश्मीर राज्य के भूमि स्वामित्व से संबधित सभी कानूनों को निरस्त कर केंद्रीय कानून लागे कर दिए। जम्मू कश्मीर में जमीन के मालिकाना हक के लिए जम्मू कश्मीर का स्थायी नागरिक की बाध्यता को समाप्त कर दिया गया।
आपको जानकारी हो कि पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के उपप्रधान उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रधान महबूबा मुफ्ती ने केंद्र का फैसला आने के बाद अपने ट्वीट हैंडपल पर इस नए कानून को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने आखिरकार जम्मू-कश्मीर को बेचना शुरू कर दिया। उन्होंने नए कानून को केंद्र सरकार का नापाक मंसूबा करार देते हुए कहा कि इसका मकसद जम्मू-कश्मीर के लोगों को अधिकारवहीन करना है। उन्होंने लिखा कि असंवैधानिक तरीके से अनुच्छेद 370 हटाने से लेकर जम्मू-कश्मीर के प्राकृतिक स्रोतों की लूट और अब जम्मू-कश्मीर की जमीन को बेचना सब केंद्र सरकार की साजिश है। जम्मू-कश्मीर में जमीन की खरीददारी को लेकर जो कानून में बदलाव किया गया है, वह स्वीकार करने के योग्य नहीं है।
दो से तीन लाख परिवारों को तुरंत चाहिए आशियाना: मतलब यह कि जम्मू कश्मीर में गोरखा, वाल्मिकी समुदाय और पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों के अलावा देश के विभिन्न भागों से आकर अस्थायी तौर पर बसे करीब दो से तीन लाख परिवार अब स्थायी तौर पर यहां बस जाएंगे। किराये का मकान छोड़ अपना घर बनाएंगे। आने वाले समय में अवसर बढ़ने से यहां भविष्य में रोजगार के लिए आने वाले लोग स्थायी आशियाना तलाशेंगे। यह लोग सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों की बात भी करेंगे।
कश्मीर में मजबूती से सुनाई देगी देश की आवाज: कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ बताते हैं कि निश्चित तौर पर नए लोगों के बसने से देश की आवाज कश्मीर में मजबूती से सुनाई देगी। यह न इन सियासी दलों के अलगाववादी एजेंडे के बहकावे में आएंगे और न ही इन्हें स्वायतता और अलग संविधान के मुद्दे प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही केंद्रीय दलों और विभिन्न राज्यों में सक्रिय स्थानीय दलों की भी जम्मू कश्मीर में सक्रियता दिख सकती है। उनके लिए अपने नागरिक और सांस्कृतिक अधिकार बड़ा मुद्दा बनेंगे। रोजगार और शिक्षा के मसलों पर बात बढ़ेगी।
राजनीतिक और सामाजिक स्थिति बदलेगी: भूृमि स्वामित्व संबंधी कानूनों में बदलाव का जम्मू कश्मीर की सियासत पर दीर्घकालिक असर होगा ही यहां की पूरी राजनीतिक,सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था बदलेगी। बीते 73 सालों में पहली बार जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय मुददों और देश के अन्य भागाें की सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था के साथ चलने के मुद्दों पर वोट मांगने का रास्ता तैयार हुआ है। इसलिए केंद्र द्वारा लागू जायज कानूनों पर उमर-महबूबा एंड पार्टी का रोना आंरभ हो चुका है।