जम्मू-कश्मीर: सीमावर्ती क्षेत्रों को आरक्षण के खिलाफ याचिका पर केंद्र व राज्य को नोटिस
सीमावर्ती क्षेत्रों को आरक्षण के खिलाफ याचिका पर केंद्र व राज्य को नोटिस। एनसी नेता ने याचिका में बताया है अनुच्छेद 370 का उल्लंघन
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों को आरक्षण देने संबंधी जम्मू कश्मीर संविधान संशोधन अध्याधेश के खिलाफ नेशनल कांफ्रेंस नेता की याचिका पर जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली 2 जुलाई को होगी। नेकां नेता अली मोहम्मद सागर के अनुसार यह अध्यादेश धारा 370 की मूल भावना के प्रतिकूल है।
गौरतलब है कि इसी साल राज्य में सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लागों को आरक्षण का लाभ देने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले पर मुहर लगाते हुए जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन अध्यादेश, 2019 और संविधान जम्मू कश्मीर संशोधन आदेश 2019 जारी किया गया था। नेकां नेता ने इसे गैर संवैधानिक करार देने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर हाई कोर्ट ने राज्य व केंद्र सरकार को 2 जुलाई या उससे पहले अपना पक्ष रखने का नोटिस जारी किया है।
राज्य उच्च न्यायालय के जस्टिस ताशी राबस्तान ने केंद्रीय गृहमंत्रालय के जरिए केंद्र सरकार, कैबिनेट सचिव के माध्यम से कानून एवं न्याय मंत्रालय व केंद्रीय कैबिनेट और जम्मू कश्मीर सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ता ने मामले का निपटान होने तक इन संशोधनों को लागू न करने संबधित प्रशासन को निर्देश देने की मांग की है।
नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव और पूर्व विधायक अली मोहम्मद सागर ने एडवोकेट एजाज अहमद चिश्ती के माध्यम से दायर अपनी याचिका में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य सरकार की सभी गतिविधियां और अधिकार राष्ट्रपति के अधीन हो जाते हैं। इसके साथ ही राज्य में कानून बनाने या किसी कानून में संशोधन संबंधी सभी अधिकार संसद के पास चले जाते हैं। राष्ट्रपति शासन के समय सिर्फ संसद ही कानून बना सकती है या उनमें संशोधन कर सकती है। इसलिए राष्ट्रपति नहीं, बल्कि संसद ही राज्य के कानून में संशोधन कर सकती है।
याचिका में आगे कहा गया है कि अनुच्छेद 357 उस व्यवस्था का वर्णन करता है जिसके तहत संसद अपने कई अधिकार और शक्तियां राष्ट्रपति को सौंप सकती है। इसके लिए भी संसद को अधिनियम पारित करना होता है और संसद द्वारा संबधित अधिनियम को पारित किए जाने के बाद ही राष्ट्रपति राज्य कानून में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। नेकां नेता की याचिका में कहा गया है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 आपात प्रावधानों और परिस्थितियों से संबधित है।
याचिका में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 एक राज्य कानून है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत अध्यादेश जारी कर राष्ट्रपति जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 में संशोधन के लिए जम्मू कश्मीर संविधान क अनुचछेद 9,1 के तहत प्राप्त अधिकारों के तहत कोई आदेश जारी नहीं कर सकते। इसमें कहा गया है कि वर्ष 1992 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था।
उस समय संसद ने जम्मू कश्मीर राज्य विधानमंडल अधिकारों का विकेंद्रीकरण अधिनियम 1992 पारित किया था। इसके तहत ही राष्ट्रपति ने जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम में संशोधन किया था। इसलिए आग्रह किया जाता है कि जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम अध्यादेश 2019 और संविधान जम्मू कश्मीर में लागू करने के संदर्भ में संशोधन आदेश 2019 को असंवैधानिक घोषित करते हुए खारिज कर दिया जाए।
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