बेसहारों को सम्मान दिलाना ही मकसद, दिव्यांगों का यहां होता इलाज
जिंदगी में कभी ऐसा मोड़ भी आता है कि एक स्वस्थ व्यक्ति दूसरों की दया पर निर्भर हो जाता है, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके जुनून को कोई भी हादसा कम नहीं होने देता।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। जिंदगी में कभी ऐसा मोड़ भी आता है कि एक स्वस्थ व्यक्ति दूसरों की दया पर निर्भर हो जाता है, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके जुनून को कोई भी हादसा कम नहीं होने देता। वे खुद भी सम्मान के साथ जिंदगी जीना चाहते हैं और दूसरों को भी इसी तरह जिंदगी जीने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे ही दो युवा पुरुषोत्तम कुमार और नरेश कुमार हैं। दोनों की दास्तां और हौसले एक जैसे हैं।
अलग-अलग हादसों में दोनों दिव्यांग हो गए। नरेश पेड़ से नीचे गिरने के कारण दिव्यांग हो गया, जबकि पुरुषोत्तम पहाड़ी से नीचे गिर गया। अस्पताल में जब दोनों युवा पहुंचे तो उनकी रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर था। दोनों चल फिर भी नहीं सकते थे। ऊधमपुर जिले के बसंतगढ़ और पंचैरी क्षेत्रों के रहने वाले इन युवाओं को अस्पताल में इलाज करवाने में काफी परेशानी हुई। उन्हें समय पर दवाइयां नहीं मिल पाई। इलाज के दौरान कुछ लोगों ने उन पर दया दिखाई, मगर वे दया नहीं सम्मान चाहते थे।
दोनों की फिजियोथेरेपी नहीं हो पाई। उस समय उन्होंने मन में ठान लिया कि जो उनके साथ हुआ वह किसी और के साथ नहीं होने देंगे। ऐसा काम करेंगे कि दिव्यांग होने वाले बेसहारा लोगों को हर कोई सम्मान से देखें। शायद नियति को भी यही मंजूर था। दोनों की एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई और उन्होंने अपने दर्द को सांझा किया तो उन्हें लगा कि उनकी तरह राज्य में और भी कई युवा होंगे, जो इसी तरह हादसों के कारण दिव्यांग होते होंगे। उन्हें इलाज करवाने में परेशानी होती होगी।
उन्होंने मिलकर एक ऐसा आश्रम स्थापित करने का फैसला किया, जिसमें ऐसे युवाओं का वे इलाज करवा सकें। उन्होंने इसके लिए पहले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ संपर्क किया, लेकिन उन्हें हर जगह मुंह की खानी पड़ी फिर भी उनके हौसले कम नहीं हुए।
उन्होंने जिले के संपन्न लोगों से संपर्क करना शुरू किया। उन्हें एक व्यक्ति ने देविका किनारे जगह दी। उन्होंने वहां पर दिव्यांग सेवा आश्रम की स्थापना की। इसमें उन्होंने 10 बेड लगाए हैं। इसमें उन युवाओं को वे भर्ती करते हैं, जो किसी हादसे के कारण अपना इलाज नहीं करवा पाते हैं। ऐसे युवाओं के इलाज और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए वे ड्राई फ्रूट की पैकिंग करवाते हैं। स्वयं भी यही काम करते हैं। स्वास्थ्य सहायता के लिए जिला अस्पताल ऊधमपुर के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट से सहयोग लेते हैं।
दोनों का कहना है कि उनका मकसद इस आश्रम को सर्व सुविधा संपन्न बनाना है ताकि किसी भी दिव्यांग को इलाज में कोई परेशानी न हो। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि उन्हें कोई भी दया से न देखे। उन्हें सभी सम्मान से देखें और उनके साथ भी वही व्यवहार हो जो अन्य के साथ होता है।
उन्होंने कहा कि उनमें से कोई भी चल नहीं सकता है। ऐसे में पैकिंग करके वे अपना गुजारा कर रहे हैं। उनका प्रयास है कि सरकार उन्हें आश्रम बनाने के लिए भूमि दे, जिसमें बेसहारा दिव्यांगों को रखें। इसके लिए उनके प्रयास जारी हैं।