कश्मीर की बदली सियासी फिजा में रुदाली के लिए आसान नहीं सवालों के जवाब
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने 434 दिनों की कैद के बाद बुधवार सुबह अपने घर के किवाड़ खोले तो जम्मू कश्मीर की सियासत व्यवस्था और मौसम उनके लिए पूरी तरह जुदा था। जब वह हिरासत में ली गई
नवीन नवाज, श्रीनगर । पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने 434 दिनों की कैद के बाद बुधवार सुबह अपने घर के किवाड़ खोले तो जम्मू कश्मीर की सियासत, व्यवस्था और मौसम उनके लिए पूरी तरह जुदा था। जब वह हिरासत में ली गई तो उस समय गर्मियां थी और जब रिहा हुई तो कश्मीर में पतझड़ दस्तक दे रहा था। कश्मीर में आए बदलाव ने रुदाली और आयरन लेडी के दो परस्पर विरोधी विश्लेषण लेकर चलने वाली महबूबा मुफ्ती के लिए सियासी डगर कठिन कर दी है। उन्हें अब सवाल पूछने या केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने में जितनी सुविधा होगी, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल उन्हें कश्मीरियां के सवालों का जवाब देने और आम कश्मीरी का सामना करने में होगी।
महबूबा के लिए चुनौती से कम नहीं है कार्यकर्ताओं को जोड़ना और पार्टी के ध्वस्त ढांचे को फिर खड़ा करना
करीब एक साल बाद वह बुधवार को पार्टी नेताओं से मिली और इस दौरान उन्होंने एक बार फिर हरा अबैया (एक तरह का चोला) ओढ़ रखा था। एक समय यह उनकी पहचान बन चुका था। वर्ष 1996 से 2002 तक वह अकसर हरे रंग का अबैया पहन कर ही आम लोगों में उठती बैठती थीं। महबूबा ने मंगलवार रात अपनी रिहाई के चंद ही मिनटों के बाद एक ऑडियो संदेश में अपने पुराने एजेंडे की ओर जाने का संकेत दिया। साथ ही केंद्र के 370 पर फैसले के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का एलान किया। उन्होंने गुपकार घोषणा को सियासी एजेंडा बनाने व इसके लिए नेशनल कांफ्रेंस समेत विभिन्न दलों के साथ मिलकर आगे बढ़ने की भी बात की है। सब जानते हैं कि पीडीपी विशेषकर महबूबा मुफ्ती की सियासत ही केंद्र सरकार और केंद्रीय एजेंसियों के खिलाफ भावनाओं के शोषण से चमकी है। वह खुद भी इस सच्चाई को अच्छी तरह समझती हैं। इसीलिए इस्लाम और कश्मीर के नाम पर सियासत निरंतर जारी रहने वाली है और परेाक्ष रुप से अलगाववादी एजेंडे का सहारा लेने से नहीं चूकेंगी।
वर्ष 1996 में जम्मू कश्मीर की सियासत में कदम रखने वाली महबूबा ने वर्ष 2002 तक घाटी में कोई ऐसा गांव या मोहल्ला नहीं छोड़ा था,जहां वह किसी आतंकी के जनाजे में शामिल होने या फिर सुरक्षाबलों के खिलाफ भावनाओं हों उबाल देने न पहुंची हों। आतंकियों के जनाजों में अकसर उन्हें शामिल होर विलाप का आडंबर करते देख आम कश्मीरियों ने उन्हें कश्मीर की रुदाली का उपनाम दे दिया था। इसके जवाब में सुरक्षाबलों से उलझने और विरोधियों के साथ हमेशा दो-दो हाथ करने के मूड में रहने की उनकी आदत पर उनके समर्थकों ने उन्हें आयरन लेडी नाम दे दिया। उनके सियासी सफर को देखकर साफ है कि वह पीडीपी को एकजुट रखने व सत्ता को अपने हाथ बनाए रखने की मजबूरी में भाजपा के साथ जुड़ गईं थी। वह इस बात को परोक्ष तौर पर स्वीकार भी कर चुकी हैं।
खैर, अब जम्मू कश्मीर अब पहले वाला जम्मू कश्मीर नहीं रहा है। जम्मू कश्मीर का अलग संविधान, अलग निशान समाप्त हो चुका है। सभी केंद्रीय कानूनी लागू हो चुके हैं। इसलिए वह वह अब जम्मू कश्मीर की पांच अगस्त 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति की बहाली को अपना एजेंडा बता रही हैं। मतलब यह कि सेल्फ रुल और पांच अगस्त की संवैधानिक स्थिति उनके एजेंडे में होगी लेकिन जोर नयी सियासी जमीन तैयार करने पर रहेगा। नेशनल कांफ्रेंस के साथ चलना अब उनकी मजबूरी है,क्योंकि अब पीडीपी के सभी पुराने सिपहसालार अपना नया घर तलाशने के साथ नए दोस्तों के साथ कदमताल कर रहे हैं।
इतना साफ है कि महबूबा अगले चंद दिनों में कश्मीर के गली-मोहल्लों में बैठकें करती नजर आएंगी। पर पहले अपने कैडर को जमा करना और फिर उसे एक लंबी सियासी लड़ाई के लिए लामबंद करना दुश्वर कार्य है। पार्टी के भीतर जारी अंतर्कलह को रोकना और अपने कैडर को फिर से सक्रिया बनाना भी चुनौती से कम नहीं है। पीडीपी को छोड़ अन्य दलों में अपना ठिकाना बना चुके अपने पुराने सिपहसालारों से पार पाना उनके लिए दुष्कर साबित होगा। कभी फारूक अब्दुल्ला को कश्मीर परिवार की हर समस्या की जड़ बताने वाली बताने वाली महबूबा के लिए नेशनल कांफ्रेंस से कदमताल कर आगे बढ़ना भी आसान नहीं है। वह भाजपा पर निशाना साधने से नहीं चूकने वाली पर उन्हें भाजपा के साथ गठजोड़ पर आम कश्मीरियों के कई सवालों के जवाब पहले खोजने होंगे। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प रहेगा कि वह रुदाली बन कश्मीरियों की भावनाओं से जोड़ने का प्रयास करती हैं या फिर कश्मीरी अवाम के तीखे सवाल उनकी आंखों से नीर निकाल देंगे।