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Independence Day 2019: 72 साल बाद दिखा नया कश्मीर, सही मायनों में कश्मीर में पहली बार मनाई आजादी

आजादी के 72 साल बाद पहली बार 15 अगस्त 2019 को कश्मीर घाटी में पंच-सरपंच अपने-अपने इलाकों में ध्वजारोहण के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 15 Aug 2019 07:27 AM (IST)Updated: Thu, 15 Aug 2019 12:32 PM (IST)
Independence Day 2019: 72 साल बाद दिखा नया कश्मीर, सही मायनों में कश्मीर में पहली बार मनाई आजादी
Independence Day 2019: 72 साल बाद दिखा नया कश्मीर, सही मायनों में कश्मीर में पहली बार मनाई आजादी

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। आजादी के 72 साल बाद पहली बार 15 अगस्त 2019 को कश्मीर घाटी में पंच-सरपंच अपने-अपने इलाकों में ध्वजारोहण के लिए पूरी तरह तैयार हैं। सभी ने अपने-अपने स्तर पर तैयारी भी कर ली है। हालांकि सरकारी स्तर पर पंच-सरपंचों के लिए ध्वजारोहन की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, लेकिन राज्यपाल द्वारा सभी पंचायत प्रतिनिधियों को ध्वजारोहण के लिए कहे जाने के बाद सभी सक्रिय हो चुके हैं। उत्साहित पंच-सरपंच कह रहे हैं कि पहली बार कश्मीर में सही मायनों में यौम-ए-आजादी मनाई जाएगी। जहां किसी ने कभी नहीं सोचा होगा, वहां भी इस बार तिरंगा नजर आएगा।

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हबीबुल्ला शेख ने कहा, 72 साल बाद मिली असली आजादी :

उत्तरी कश्मीर में हंदवाड़ा के साथ सटे कुलगाम के सरपंच 70 वर्षीय हबीबुल्ला शेख ने कहा कि पहली बार यहां हम बेखौफ होकर यौम-ए-आजादी मनाएंगे। हम भी झंडा लहराएंगे। हमने तैयारी कर ली है। पुलिस और सेना के अधिकारियों ने भी हमें सुरक्षा का यकीन दिलाया है, लेकिन मैंने कहा कि हमें सुरक्षा नहीं चाहिए, क्योंकि जो खलल डाल सकते थे, उनकी दुकान पिछले सप्ताह पांच अगस्त को बंद हो गई है। अब वह नहीं आएंगे। हबीबुल्ला शेख ने कहा कि बीते 40 सालों में जो हमने देखा और सहा है, उससे आजादी का जश्न का दिन है 15 अगस्त। कहने को तो हमें 15 अगस्त को आजादी मिली थी, लेकिन हमें जिस सियासत और नारे से आजादी चाहिए थी, वह 72 साल बाद मिली है।

अल्ताफ शेख बोले, पहली बार आजादी का अहसास हो रहा :

करालपोरा के अल्ताफ शेख ने कहा कि हमने तिंरगा लेकर रखा है। यह शुरू से ही हमारे दिल में बसता रहा है, लेकिन यहां जिहाद और आजादी का नारा देने वालों व उनके एजेंटों के डर से हम खुलकर इसे निकाल नहीं पाते थे। इस बार न सिर्फ हम इसे निकालेंगे बल्कि लहराएंगे भी। हमें तो पहली बार आजादी का अहसास हो रहा है। हम तो यहां विशेषाधिकार के नाम पर आटोनामी, सेल्फ रूल के गुलाम थे। अब हम इनसे आजाद हो गए हैं। अगर सरपंच नहीं भी होता तो भी मैं अपने गांव में लोगों को जमा कर पहले राष्ट्रध्वज लहराता और पूरे इलाके में मार्च करता। उन्होंने कहा कि अब हम जम्हूरियत के नाम पर हमें गुलाम बनाने वालों से भी हिसाब लेंगे। आरटीआइ के जरिए इनका पूरा कच्चा चिट्ठा निकालेंगे। हमें कहते थे कि शिकार मत करो, अपनी कोठियों में शेर चीतों की खाले टांगे बैठे हैं।

गांव में सेना के अधिकारियों को बुलाकर फहराएंगे तिरंगा :

श्रीनगर में लालचौक से करीब 15 किलोमीटर दूर छत्तरगाम निवासी गुलाम मोहम्मद ने कहा कि इस बार हम सेना के शिविर में नहीं जा रहे हैं। हम सेना के अधिकारियों और जवानों को यहां गांव के मैदान में बुला रहे हैं। अगर बारिश थम गई तो यहीं इसी मैदान में हम तिरंगा लहराएंगे। अन्यथा, हम वहां एक फैक्टरी के परिसर में बने शेड में समारोह आयोजित करेंगे। पहली बार आजादी की सांस लेते हुए बिना किसी डर के यहां हम भी 15 अगस्त मनांएगे। हमें रोकने वाला कोई नहीं होगा।

प्रशासन व पुलिस की तरह से मिलेगा पूरा सहयोग :

राज्यपाल के प्रमुख सचिव और वित्तायुक्त रोहित कंसल ने कहा कि हालांकि हमारे पास पंचायत स्तर पर अधिकारिक स्तर पर ध्वजारोहण समारोह आयोजित किए जाने की कोई सूचना या आदेश नहीं है, लेकिन कई जगह पंच-सरपंच ध्वजारोहण करेंगे। उनके लिए प्रशासन की तरफ से जो भी सहयोग अपेक्षित होगा, किया जाएगा। एडीजीपी सिक्योरिटी मुनीर अहमद खान ने कहा कि हमने स्वतंत्रता दिवस के मद्देनजर सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त किया है। शांति और काननू व्यवस्था बनाए रखने के लिए जो भी जरूरी है, सभी आवश्यक कदम उठाए गए हैं।

स्वतंत्रता दिवस समारोह में चार पूर्व सीएम नहीं होंगे 

एकीकृत जम्मू कश्मीर में अंतिम स्वतंत्रता दिवस समारोह में 15 अगस्त वीरवार सुबह जब राज्यपाल सत्यपाल मलिक ध्वजारोहण करेंगे तो राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्री समारोह से दूर होंगे। इनमें मुख्यमंत्री व श्रीनगर के सांसद डॉ. फारूक अब्दुल्ला नजरबंद हैं। उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती हिरासत में और गुलाम नबी आजाद को राज्य में आने की इजाजत नहीं है।

अलबत्ता, प्रशासन का कहना है कि मेहनमानों की सूची में इनका नाम है। जम्मू कश्मीर के लिए यह स्वतंत्रता दिवस समारोह बहुत खास और अहम है। यह एकीकृत जम्मू कश्मीर में मनाया जाने वाला अंतिम समारोह है। 31 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर दो केंद्र शासित राज्यों जम्मू कश्मीर व लद्दाख में विभाजित हो जाएगा। वीरवार को शेर-ए-कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम में स्वतंत्रता दिवस पर नया इतिहास बन रहा होगा जब उस समय राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों में से एक भी मुख्य सरकारी समारोह में नहीं होगा। आजाद इस समय दिल्ली में हैं। उन्होंने कश्मीर की मौजूदा कानून व्यवस्था की स्थिति में श्रीनगर एयरपोर्ट तक भी नहीं आने दिया जाएगा यह पूरी तरह तय है। इसका संकेत बीते दिनों उस समय मिला था जब वह दिल्ली से श्रीनगर पहुंचे। एयरपोर्ट पर ही पुलिस ने उन्हें रोक लिया और उसी दोपहर जहाज में जबरन बैठा दिल्ली भेज दिया था।

डॉ. फारूक, उमर और महबूबा कश्मीर में ही हैं। डॉ. फारूक चार अगस्त से अपने घर में नजरबंद हैं। उमर पुलिस हिरासत में हैं। उन्हें चश्मा शाही स्थित वन विभाग के गेस्ट हाउस, महबूबा को हरि निवास में रखा गया है। फारूक और महबूबा समारोहस्थल से करीब एक किलोमीटर से चार किलोमीटर के दायरे में, जबकि उमर करीब आठ किलोमीटर दूर हैं। प्रशासन ने राज्य का विशेषाधिकार समाप्त करने के बाद कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनपर कार्रवाई की है।

राज्यपाल के प्रमुख सचिव रोहित कंसल ने मुख्य समारोह में राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी की संभावना के बारे में कहा कि मेहमानों की सूची मंडलायुक्त कश्मीर ही तैयार कर रहे हैं। हमारे मुताबिक, चारों मुख्यमंत्री बुलाए जा रहे हैं। किसी भी जगह कानून व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने के आधार पर संबंधित जिला प्रशासन और पुलिस तय करती है कि कौन समारोह में आएगा और कौन नहीं। मंडलायुक्त कश्मीर के कार्यालय में स्थित वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने बताया कि चारों मुख्यमंत्रियों के नाम मेहमानों की सूची में शामिल किए हैं। हम उन्हें निमंत्रण भेजेंगे। अब यह पुलिस पर निर्भर करेगा कि वह यह न्योता संबंधित महानुभावों तक पहुंचाती है या नहीं। उन्हें समारोह में आने की इजाजत देगी या नहीं,यह पुलिस पर निर्भर करेगा। 

राज्य में निर्वाचित सरकार नहीं 

जून 2018 से दिसंबर तक जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शाासन लागू रहा है। उसके बाद से राष्ट्रपति शासन लागू है। निर्वाचित सरकार होने की स्थिति में मुख्यमंत्री ही मुख्य स्वतंत्रता दिवस समारोह में ध्वजारोहण करते हैं, लेकिन निर्वाचित सरकार न होने की स्थिति में राज्यपाल ध्वजारोहण करेंगे।

 कश्मीर से लेकर सीमा तक अलर्ट 

स्वतंत्रता दिवस पर शरारती तत्वों और आतंकियों द्वारा किसी भी गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने वादी समेत पूरे राज्य में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। पाकिस्तान की तरफ से संघर्ष विराम के उल्लंघन की किसी भी कोशिश का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा और एलओसी पर बीएसएफ व सेना को पूरी तरह अलर्ट पर रहने के लिए कहा गया है। सभी संवेदनशील इलाकों में अर्धसैनिकबलों की तैनाती बढ़ा दी गई है और आसमान पर ड्रोन उड़ाकर नजर रखी जा रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल अधिकारियों से फीडबैक लेकर खुद भी विभिन्न इलाकों में जाकर सुरक्षा हालात का जायजा ले रहे हैं। उन्होंने चिनार कोर मुख्यालय में सुरक्षा एजेंसियों के आलाधिकारियों के साथ बैठक भी की। 

 राज्यपाल के प्रमुख सचिव रोहित कंसल ने कहा कि स्वतंत्रता दिवस के लिए सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। स्थिति शांतिपूर्ण और नियंत्रण में है। निषेधाज्ञा में हालाकि लगातार ढील दी जा रही है, लेकिन वीरवार को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शांति और सुरक्षा का माहौल बनाए रखने पर हम वादी में निषेधाज्ञा को जारी रखेंगे। 

संबंधित अधिकारियों ने बताया कि श्रीनगर के शेरे कश्मीर क्रिकेट स्टेडयिम जहां राज्यपाल ने ध्वजारोहण करना है, उस पूरे क्षेत्र को चारों तरफ से सील कर दिया गया है। इसके अलावा सभी जिला मुख्यालयों में जहां भी स्वतंत्रता दिवस समारोह आयोजित होंगे, वहां की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। जम्मू में राज्यपाल के सलाहकार ध्वजारोहण करेंगे। उन्होंने बताया कि कई जगहों पर शरारती तत्वों की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। इसके अलावा सभी चिन्हित स्थानों पर किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए पुलिस, सेना और सीआरपीएफ के जवानों के संयुक्त दल तैनात किए गए हैं। एहितयात के तौर पर श्रीनगर, पुलवामा, सोपोर, बारामुला, अनंतनाग, कुलगाम में आने-जाने के कई रास्तों को भी एहतियातन बंद रखा जाएगा। जम्मू प्रांत में भी सुरक्षा का पूरा बंदोबस्त किया गया है। हाईवे से गुजरने वाले वाहनों की लगातार निगरानी की जा रही है। विभिन्न जगहों पर विशेष नाके भी लगाए गए हैं।

  14 अगस्त का मतलब राष्ट्रविरोधी हिंसक प्रदर्शनों का दिन होता था

 वादी में जब सुबह ने अंगड़ाई ली तो दूर-दूर तक न हिंसक प्रदर्शनों का शोर था और न प्रदर्शनकारियों को खदेडऩे के लिए आंसूगैस के गोलों से निकलने वाली गंध का अहसास। वैसे तो 14 अगस्त का मतलब राष्ट्रविरोधी हिंसक प्रदर्शनों का दिन होता था। आजादी के नाम पर आम जिंदगी की गुलामी का दिन, लेकिन 72 साल बाद माहौल बिल्कुल शांत नजर आया।

आसमान से बरसते बादलों के बीच सामान्य जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने का संकेत दे रही थी। जहांगीर चौक में लोग आ-जा रहे थे, मैसूमा में भी लोग घरों से निकल कर जरूरी काम निपटाते नजर आए। हालांकि उनके चेहरों पर तनाव साफ नजर आता था, लेकिन सभी राहत महसूस कर रहे थे कि अभी तक कोई नागरिक मौत नहीं हुई है।

गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर का विशेषाधिकार समाप्त करने से पहले ही चार अगस्त से वादी में प्रशासनिक पाबंदियां लागू हैं। मौजूदा हालात के मद्देनजर प्रशासन ने बुधवार को कश्मीर में सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए थे। लोग भी किसी बड़े हंगामे की आशंका से डरे हुए थे। किसी को उम्मीद नहीं थी कि लोगों को घरों से बाहर निकलने दिया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अधिकांश दुकानें बंद थीं, लेकिन कई जगह दुकानें खुली भी हुई थीं। सड़कों पर वाहनों की आवाजाही भी बीते दिनों से कुछ ज्यादा थी।

शहर में न कर्फ्यू  और न हड़ताल 

श्रीनगर की गाजा पट्टी कहलाने वाले मैसूमा में अपने घर से बाहर निकल रहे मोहम्मद अल्ताफ खान से जब उसका हालचाल पूछा तो जवाब मिला कि मेरी उम्र 50 साल हो चुकी है। मेरे लिए 14 अगस्त का मतलब शहर में कफ्र्यू और हड़ताल के बीच पथराव होता था। पाकिस्तानी झंडे लहराने का मौका होता था, लेकिन आज ऐसा कुछ नहीं है। यह उन लोगों के लिए जवाब है, जो कहते हैं कि कश्मीरियों को आजादी का नारा और अनुच्छेद 370 से बहुत प्यार है।

एक सप्ताह से यहां कोई हिंसक प्रदर्शन नहीं हुआ

मैसूमा से करीब 200 मीटर दूर जहांगीर चौक में एक ठेले पर सब्जी ले रहे बशारत हुसैन ने कहा कि सच पूछो तो पहली बार आजादी का अहसास हो रहा है। पहली बार यहां कोई हंगामा नहीं हो रहा है। किसी जगह पाकिस्तानी झंडा नहीं लहराया गया है। यहां सभी इससे छुटकारा चाहते हैं, तभी तो बीते एक सप्ताह से यहां कोई हिंसक प्रदर्शन नहीं हुआ है। लोग आपको वर्ष 2016 की तरह सड़क पर आजादी के नारे लगाते नजर नहीं आएंगे। इससे बड़ी बात क्या होगी कि बीते एक सप्ताह में आजादी के नाम पर नारे लगाते हुए सुरक्षाबलों की फायरिंग में किसी की मौत नहीं हुई है। 

कुछ लोगों को जेल में रखा जाए, यह अमन कभी खत्म नहीं होगा 

श्री महाराजा हरि सिंह (एसएमएचस) अस्पताल के सामने दवा दुकान पर अपने पिता के लिए दवाएं ले रही जासमीन खान नामक युवती ने कहा कि यहां कोई नारे लगाने घर से नहीं निकलने वाला। यहां जो कुछ हुआ, पहले होना चाहिए था। यहां लोग अमन और तरक्की चाहते हैं। अगर कश्मीरियों को आजादी चाहिए होती तो आपको क्या लगता कि यहां आज ऐसा माहौल होता। चारों तरफ आंसूगैस के गोले, पथराव और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे गूंज रहे होते। लोग तो आजाद हुए हैं, इसलिए यहां अमन का माहौल है। हां, कुछ लोगों को जेल में रखा जाए तो यह अमन कभी खत्म नहीं होगा। अब सरकार को यहां फोन और इंटरनेट सेवा शुरू करनी चाहिए। 

शांति व्यवस्था बनाए रखने में पूरा सहयोग कर रहे लोग : एडीजीपी 

कश्मीर में अमन बहाली के बारे में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) सिक्योरिटी मुनीर अहमद खान ने कहा कि स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। लोग शांति व्यवस्था बनाए रखने में पूरा सहयोग कर रहे हैं। हमारा पूरा प्रयास है किसी भी जगह नागरिक क्षति न हो। वर्ष 2016 का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आठ जुलाई को आतंकी बुरहान की मौत के बाद पहले 10 दिनों में ही तीन दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। उससे पूर्व वर्ष 2010 में हिंसक प्रदर्शनों में करीब 100 लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2008 में करीब पांच दर्जन लोग मारे गए थे। खुदा का शुक्र है अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। 


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