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कांग्रेस, एनसी व पीडीपी के बाहर कश्मीर की सियासत में उभरने लगे नए चेहरे और नए समीकरण

अलगाववाद की सियासत के दिन छंटने के बाद बन रहे हैं उम्मीदों के कई मोर्चे कांग्रेस एनसी और पीडीपी के बाहर अन्य अन्य विकल्प खोज रहे उनके कार्यकर्ता

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 08:42 AM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2019 09:00 AM (IST)
कांग्रेस, एनसी व पीडीपी के बाहर कश्मीर की सियासत में उभरने लगे नए चेहरे और नए समीकरण
कांग्रेस, एनसी व पीडीपी के बाहर कश्मीर की सियासत में उभरने लगे नए चेहरे और नए समीकरण

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। जम्मू कश्मीर में पाबंदियों के बाद से थमी नजर आ रही रियासत की सियासत में फिर से हलचल एकाएक तेज हो चली है। नित नए चेहरे और नए समीकरण बन रहे हैं। यह संगठन परंपरागत सियासत को दरकिनार कर जम्मू कश्मीर को हिंसामुक्त एवं खुशहाल बनाने के लिए आम कश्मीरियों के साथ संपर्क साध रहे हैं। पहली बार राज्य में सामाजिक न्याय, विकास और रोजगार के मुद्दों पर सियासत हो रही है। अलगाववाद की सियासत के दिन छंटने के बाद नेशनल कांफ्रेंस (एनसी), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और कांग्रेस से जुड़े कई नेता भी नई सियासी जमीन तलाश रहे हैं।

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गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन बिल पास होने के बाद तमाम अलगाववादी एजेंडे और उनसे जुड़ी सियासत पर विराम लग गया। हालात सामान्य बनाए रखने के लिए सभी सियासी दलों के करीब 1200 नेताओं और कार्यकर्ताओं को प्रशासन ने एहतियातन हिरासत में लिया है। इसके साथ एनसी, पीडीपी, कांग्रेस, माकपा, पीपुल्स कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट समेत कश्मीर केंद्रित सियासत करने वाले दलों के पास अब कोई मुद्दा ही नहीं बचा है।

यह संगठन विशेष दर्जे, रायशुमारी और अलगाववादियों को भाने वाले मसले पर सियासत करते रहे। ज्यों ज्यों हालात सामान्य हो रहे हैं सियासी मंच पर नए चेहरे भी नजर आने लगे हैं। इनमें कई बुद्धिजीवी, पत्रकार, समाजसेवी और कुछ पुराने सियासतदां व नौकरशाह शामिल हैं।

दो दिन पूर्व जम्मू कश्मीर पोलिटकल मूवमेंट नामक संगठन सामने आया। इसकी अगुआई पूर्व पत्रकार शाहिद खान कर रहे हैं और आतंकवाद को गुडबाय कह मुख्यधारा में शामिल मुश्ताक तांत्रे उनके साथ हैं। शाहिद खान ने कहा कि हमें आगे बढ़ना है। अनुच्छेद 370 के नाम पर जम्मू कश्मीर के लोग बहुत कुछ भुगत चुके हैं। कश्मीरियों को मूर्ख बनाने वाली सियासत और सियासतदानों के दिन पूरे हो चुके हैं।

सूफीवाद के प्रचारक एक पूर्व नौकरशाह भी कश्मीर की सिविल सोसाइटी के साथ मिलकर एक नया संगठन बना रहे हैं। वह पहले भी चुनावी सियासत का हिस्सा बन चुके हैं, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में वह अपने संगठन की स्वीकार्यता को लेकर कहीं अधिक आशान्वित हैं।

उन्होंने कहा कि अब कोई आजादी, ऑटोनामी जैसे नारे पर वोट नहीं मांगेगा। जो जाएगा विकास और रोजगार की बात करेगा। ऐसे में हमारे लिए जम्मू कश्मीर की सियासत में लोगों को एक मजबूत आवाज देने का पूरा मौका है।

वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों में जडीबल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके समाज सेवी सलीम रेशी ने कहा कि बहुत से लोग जो कल तक मेरे सियासत में आने के खिलाफ थे, अब चाहते हैं कि हम मिलकर एक नया संगठन बनाएं और आवाम की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े मुद्दों पर काम करें।

उन्होंने कहा कि यहां लोगों को परंपरागत सियासी नारों और सियासतदानों से मुक्ति मिल पा रही है। हम जम्मू कश्मीर को जल्द पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए काम करेंगे और इसके लिए रविवार को बैठक भी बुलाई है। इसमें व्यापारी और छात्र वर्ग के प्रतिनिधि भी शामिल हो रहे हैं।

अब लकीर पीटने का फायदा नहीं

पीडीपी के पूर्व नेता फारूक डार ने कहा कि अब लकीर पीटने का कोई फायदा नहीं हैं। हमें आगे बढ़ना है और जम्मू कश्मीर की आवाम की बेहतरी के लिए काम करना है। मैं अपने समर्थकों के अलावा कांग्रेस और नेकां के कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ भी संपर्क में हूं और वह सब चाहते हैं कि जम्मू कश्मीर में एक नई सियासत शुरू हो। हम लोगों के बीच बातचीत चल रही है।

जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने वाली नहीं बल्कि मुख्यधारा में पूरी तरह विलीन करने वाली सियासत की जरुरत है। लोगों को अनुच्छेद 370 नहीं रोजगार, विकास और खुशहाली चाहिए। आप देखना जैसे ही यहां हालात सामान्य होते हैं, सियासी गतिविधियां जोर पकड़ेंगी। नेकां और पीडीपी जैसे परंपरागत सियासी दल भी पूरी तरह मुख्यधारा की सियासत करेंगे या फिर अपनी दुकान बंद करेंगे। यहां नए चेहरे अब सियासी मंच पर आने के लिए तैयार हैं। 


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