Jammu Kashmir : बिखराव की ओर नेशनल कांफ्रेंस का कुनबा, राणा के प्रधान पद सहित सभी जिम्मेदारियों से इस्तीफा देने की चर्चाएं
वर्ष 2019 के बाद पीडीपी में गुटबाजी हावी होने के कारण कई बड़े नेता अलग हुए। नेकां में स्थिति ठीक रही। हालांकि नेकां कई नेता पार्टी नेतृत्व की नीतियों से नाराज हैं। संगठन छोडऩे वालों में सिर्फ दो प्रमुख चेहरे कमल अरोड़ा और बशारत बुखारी रहे।
श्रीनगर, नवीन नवाज : जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद कश्मीर केंद्रित पार्टियां बिखरने लगी हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के बाद अब नेशनल कांफ्रेंस का कुनबा भी बिखरता नजर आने लगा है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के करीबी और विश्वस्त कहते जाने वाले देवेंद्र सिंह राणा के पार्टी के संभागीय प्रधान पद समेत अन्य सभी जिम्मेदारियों से इस्तीफा देने की चर्चाएं हैं।
पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से वह अगले एक सप्ताह के दौरान मुक्ति पा सकते हैं। सिर्फ राणा ही नहीं, तीन और नेता भी नेकां छोड़ने की तैयारी में है। वहीं, सियासी गलियारों में चर्चाएं हैं कि राणा या तो अन्य राजनीतिक दल बनाएंगे या उनकी भाजपा में एंट्री होगी, क्योंकि उनके बड़े भाई डा जितेंद्र सिंह मौजूदा समय में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री और ऊधमपुर-कठुआ सीट से भाजपा सांसद भी हैं। खुद राणा इस मामले में रहस्यमय अंदाज में कहते हैं कि मैंने अभी पार्टी नहीं छोड़ी है।
दो साल में जम्मू कश्मीर में हुए राजनीतिक बदलाव के बीच अगर नेशनल कांफ्रेंस की सियासत का अध्ययन करें तो राणा पार्टी छोड़ते हैं तो जम्मू संभाग में नेकांध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला और उनके पुत्र उमर के लिए यह बड़ा झटका होगा। वर्ष 2019 के बाद पीडीपी में गुटबाजी हावी होने के कारण कई बड़े नेता अलग हुए। नेकां में स्थिति ठीक रही। हालांकि, नेकां कई नेता पार्टी नेतृत्व की नीतियों से नाराज हैं। संगठन छोडऩे वालों में सिर्फ दो प्रमुख चेहरे कमल अरोड़ा और बशारत बुखारी रहे। आगा रुहैल्ला मेहदी ने नेकां नेतृत्व के खिलाफ बगावत का झंडा उठा रखा है, लेकिन इस्लाम और कश्मीर के विशिष्ट दर्जे के मुद्दे पर।
कश्मीर में भी साख है राणा की : सूत्रों की मानें तो राणा का पार्टी के कई नेताओं के साथ छह माह से तनाव चल रहा था। यह तनाव जम्मू डिक्लेरेशन का एलान करने से शुरू हुआ था। राणा ने कहा था कि हमेशा कश्मीर से जो विचार आता है, हम उसे आगे बढ़ाते हैं, अब जम्मू से भी बात होनी चाहिए। डा. फारूक और उमर अब्दुल्ला ने सहमति व्यक्त की, लेकिन कई अन्य दिग्गज नाराज हुए। रही सही कसर उस समय पूरी हो गई जब परिसीमन आयोग के साथ राणा के नेतृत्व में नेकां का प्रतिनिधिमंडल मिला। उसमें तय एजेंडे को लेकर बाद में कई नेताओं ने क्षेत्र और मजहब के आधार पर खुद को अलग करना शुरू कर दिया था। राणा ने पार्टी नेतृत्व से बातचीत की, लेकिन बात नहीं बनी।
कई नेता घर में मिलने पहुंचे : राणा ने अपने अगले कदम का एलान नहीं किया है, लेकिन उनके भाजपा में ही शामिल होने की ज्यादा संभावना है। चौधरी लाल ङ्क्षसह के क्षेत्रीय दल डोगरा स्वाभिमान में वह शामिल होंगे, इसकी उम्मीद बहुत कम है। अल्ताफ बुखारी की अपनी पाटी में वह नहीं जा सकते। राणा जम्मू में ही नहीं, कश्मीर में अपने समर्थक रखते हैं। उन्होंने जम्मू के नगरोटा में मोदी लहर में चुनाव जीता था। नेकां के कुछ वरिष्ठ नेता सुरजीत सिंह और पूर्व सांसद चौधरी लाल सिंह भी दोपहर बाद राणा से मिलने पहुंचे, उससे साफ है कि वह राणा को लेकर नया मोर्चा जम्मू में तैयार करने के मूड में हैं।
जम्मू के हितों के लिए हर कुर्बानी को तैयार हूं: राणा
पूर्व विधायक देवेंद्र ङ्क्षसह राणा ने नेशनल कांफ्रेंस से अलग होने की खबरों को नकारते हुए कहा कि वह आज भी पार्टी में हैं, लेकिन जम्मू के हितों के लिए कोई भी कुर्बानी दे सकता हूं। राणा ने भाजपा समेत जम्मू संभाग के सभी राजनीतिक दलों से एकजुट होने की अपील करते हुए जम्मू डिक्लेरेशन को अपनाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि जिस तरह से कश्मीर और लद्दाख के लोग दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपने क्षेत्रीय व सामाजिक हितों के लिए आवाज उठाते हैं, हम जम्मूवासियों को भी वैसा ही करना चाहिए। नेकां से अपने इस्तीफे की खबरों को बेबुनियाद बताते हुए उन्होंने कहा, मैंने अभी पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है, जब दूंगा तो आपको बता दूंगा। वह कोई नया राजनीतिक दल भी नहीं बनाने जा रहे हैं। पूर्व सांसद चौधरी लाल सिंह व अन्य कई राजनीतिकों के साथ हुई बैठक पर उन्होंने कहा कि मेरे घर में जो आएगा, मैं उसका स्वागत करूंगा।