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जम्मू कश्मीर में सही से लागू नहीं हुई मनरेगा योजना, कैग ने रिपोर्ट में कई खामियां बताई

राज्य में सही से लागू नहीं हुई मनरेगा योजना कैग की वर्ष 2016-17 की रिपोर्ट के कई खामियां बताई गई-पूर्व पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार जम्मू कश्मीर में वर्ष 2016-17 में मनरेगा योजना को सही तरीके से लागू करने में नाकाम रही है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 28 Sep 2020 10:00 AM (IST)Updated: Mon, 28 Sep 2020 10:00 AM (IST)
जम्मू कश्मीर में सही से लागू नहीं हुई मनरेगा योजना, कैग ने रिपोर्ट में कई खामियां बताई
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट

जम्मू, राज्य ब्यूरो। पूर्व पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार जम्मू कश्मीर में वर्ष 2016-17 में मनरेगा योजना को सही तरीके से लागू करने में नाकाम रही है। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सही समय पर योजनाएं न बनाने से ग्रामीण विकास को धक्का लगा है। कैग ने 31 मार्च 2017 तक के कार्यो पर गैर सार्वजनिक उपक्रमों की सामाजिक, आर्थिक और सामान्य रिपोर्ट पेश की है।

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कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मनरेगा योजना के तहत केंद्र से धनराशि जारी होने में भी देरी हुई। इससे श्रमिकों को समय पर मानदेय नहीं मिल पाया। सीएजी की रिपोर्ट पिछले सप्ताह संसद में पेश की गई है। इसमें कहा गया है कि जॉब कार्ड धारकों को बेरोजगारी का भत्ता नहीं दिया गया। नियमों के अनुसार 33 फीसद महिलाओं की जगह मात्र 19 फीसद को ही रोजगार दिया गया। पंद्रह दिन के निर्धारित समय में 77 फीसद मामलों में मानदेय नहीं दिया गया। नब्बे दिन से अधिक देरी से 40 फीसद मानदेय का भुगतान किया गया। योजना के तहत कार्य नहीं किए गए।

वार्षिक कार्य योजना में 14211 कार्य शामिल तो किए गए, लेकिन कार्य करवाए नहीं गए। इसके विपरीत 2281 गैर मंजूर कार्य करवाए गए। इसके कारण 32.67 करोड़ का बिना मंजूरी के खर्चा किया गया। देरी से कम भी मिली धनराशिवित्तीय स्टेटमेंट में शेष राशि का मिलान न होना, 1.20 करोड़ रुपये का ब्याज, देरी से धनराशि जारी करना, राज्य के हिस्से के 107.08 करोड़ में कम धनराशि का जारी होना, प्रशासनिक चार्ज पर 22.85 करोड़ का अधिक खर्च होना आदि खामियों को रिपोर्ट में उजागर किया गया है। इन खामियों से 83.78 लाख लोगों के दिनों का कार्य सृजित नहीं किया जा सका। रखरखाव न होने से भी खर्च बढ़ारखरखाव न किए जाने से मैटेरियल पर 277.69 करोड़ का अतिरिक्त खर्च हुआ। जरूरी डाटा, रिकार्ड का रखरखाव नहीं किया गया। निगरानी का तंत्र मजबूत नहीं था। कार्य की गुणवत्ता जांचने के लिए विभाग ने निगरानी कमेटियां नहीं बनाई। शिकायतों के निपटारे के लिए लोकपाल भी नहीं बनाया। योजना को लागू करने में बहुत सारी खामियां रहीं।


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