राज्यपाल शासन में पहले की गलतियों को सुधारे केंद्र
राज्य ब्यूरो, जम्मू : जम्मू फॉर इंडिया के संयोजक प्रो. हरि ओम का कहना है कि पूर्व में हुइ
राज्य ब्यूरो, जम्मू : जम्मू फॉर इंडिया के संयोजक प्रो. हरि ओम का कहना है कि पूर्व में हुई गलतियों को सुधारने के लिए राज्यपाल शासन केंद्र के लिए सुनहरा मौका है। सरकार की कई नीतियां ऐसी रही हैं, जिनसे राज्य में धार्मिक अलगाववाद को बढ़ावा मिला है।
उन्होंने कहा कि सरकार के पास अवसर है कि ऐसी गलतियों में सुधार के लिए कदम उठाए। लोगों के दिलों को जीतने के नाम पर बनी नीतियों के स्थान पर राष्ट्रहित में नीतियां बनाई जाएं। जम्मू की भौगोलिक स्थिति से छेड़छाड़ न हो। जम्मू के लोगों के बीच जो गुस्सा पनप रहा है, उसे शांत करने के लिए कदम उठाए जाएं। रसाना मामले की सीबीआइ से जांच करवाने के निर्देश देकर जम्मू के लोगों के गुस्से को शांत किया जा सकता है। वह प्रेस क्लब जम्मू में पनुन कश्मीर की ओर से आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे। जम्मू विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रो. शैलेंद्र ¨सह ने कहा कि कुछ समय से कश्मीर में इस्लामिक अलगाववाद मुखर हुआ है। 35-ए के हक में आए कश्मीर के नेताओं ने भी इसी तरह के बयान दिए हैं। इसे लोगों को खुश करने वाली नीति से नहीं बदला जा सकता। इसके लिए पुख्ता नीति बनाने की जरूरत है।
इकजुट जम्मू के चेयरमैन एडवोकेट अंकुर शर्मा का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के लिए सबसे ¨चताजनक तथ्य यह है कि यह राज्य मुस्लिम राज्य में बदलता जा रहा है। यहां पर जो भी योजनाएं बनी हैं, उनका लाभ भी इसी समुदाय को दिया जा रहा है। ¨हदू, सिख, बौद्ध और जैन यहां द्वितीय श्रेणी के नागरिक हैं। राज्यपाल इन हालात में सुधार कर सकते हैं। वह तत्काल कई निर्णायक कदम उठा सकते हैं। राज्यपाल जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यकों की पहचान करें और उनके लिए जो भी योजनाएं हैं, उनका लाभ सही अल्पसंख्यकों को दिलाएं। राज्य प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए अल्पसंख्यकों की पहचान करनी चाहिए।
पनुन कश्मीर के संयोजक डॉ. अग्निशेखर ने राज्यपाल से कश्मीर में ¨हदुओं के नरसंहार को याद करते हुए राज्य प्रशासन से नीति बनाने को कहा। इसमें सिर्फ आर्थिक पैकेज शामिल न हो। इसमें समग्र हालात को देखा जाए। उन्होंने कहा कि समय आ गया है जब राज्यपाल कश्मीर में उत्तरी कश्मीर और झेलम के पूर्व को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दे और कश्मीर में ¨हदुओं का जो नरसंहार किया था, उसे रिवर्स कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सरकार की जो नीति है, वह ¨हदुओं को कश्मीर में मुसलमानों के आगे फेंक देने की है। इसे वे मंजूर नहीं कर सकते।
पनुन कश्मीर के चेयरमैन डॉ. अजय चुरंगु ने कहा कि सरकार को यह सोचना होगा कि जम्मू कश्मीर को लेकर जो नीतियां बनाई गई हैं, वे विफल क्यों हो गई। उन्होंने कहा कि सरकार अभी तक कश्मीर की समस्या को धार्मिक अलगाववाद के नाम से जानती है। वह जिहादी वार के नाम पर कश्मीर में हो रही ¨हसा को नहीं मानते। भारत सरकार ने कश्मीर में ¨हदुओं के नरसंहार को पलायन का नाम देकर जुर्म किया है। कश्मीर से जिहादी घुसपैठ कर देश भर में जाते हैं। राज्य प्रशासन को कश्मीर में हुए ¨हदुओं के नरसंहार को मानते हुए जम्मू में ऐसे हालात उत्पन्न होने से बचाना होगा। उन्होंने कहा कि कश्मीर में बिना ¨हदुओं के लोग धर्मनिरपेक्ष और शांतिप्रिय होंगे।
प्रो. केएल भाटिया ने कहा कि जो लोग यह कहते हैं कि अगर राज्य से 35-ए को हटा दिया गया तो कश्मीर में तिरंगा उठाने वाला कोई भी नहीं है तो वे लोग यह समझ लें कि पूरे देश से राष्ट्रभक्त लोग हाथों में तिरंगा लिए हुए घाटी में चले जाएंगे। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि अनुच्छेद 370 सहित जो भी समस्याएं हैं, उनका समाधान किया जाए। पनुन कश्मीर के महासचिव के रैना ने धन्यवाद प्रस्ताव पढ़ा।