महबूबा ने आतंकियों को कहा शहीद, आतंकियों के घर जाना शहीदों का अपमान
महबूबा मुफ्ती का आतंकियों के घरों में जाकर सहानुभूति जताना शहीद पुलिस कर्मियों के परिजन को दुख पहुंचा रहा। वह इसे शहीदों का अपमान बता रहे हैं।
श्रीनगर,राज्य ब्यूरो। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के बिखरते कुंबे को संभालने में जुटी पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अपने पिता स्व. मुफ्ती मोहम्मद सईद की मजार पर पूरी तरह माफी की मुद्रा में नजर आई। उन्होंने भाजपा के साथ गठजोड़ को मजबूरी और वर्ष 2016 में आतंकी हिंसा के दौरान सुरक्षाबलों की कार्रवाई में युवकों की मौत पर टॉफी वाले अपने बयान पर भी माफी मांगी। इतना ही नहीं, उन्होंने आतंकी हिंसा में मारे गए स्थानीय युवाओं को शहीद बताया और पीडीपी छोड़ने वाले नेताओं का नाम लिए बगैर कहा कि कचरा साफ हो गया है।
महबूबा दक्षिण कश्मीर के बिजबिहाड़ा में झेलम दरिया किनारे स्थित दारा शिकोह बाग में मुफ्ती मोहम्मद सईद की आत्मा की शांति के लिए उनके मकान पर दुआ करने के बाद वहां मौजूद पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रही थीं। महबूबा ने हिंसा में मारे गए स्थानीय युवकों को शहीद कहा। उन्होंने कहा कि जब कोई नौजवान मरता है तो मुझे बहुत दुख होता है।
वर्ष 2016 में नौजवानों का गुस्सा और उनकी मौत मेरे लिए बहुत तकलीफदेह दौर रहा है। मैं आज इस मंच से अपील करती हूं कि कश्मीर मसले के हल में यकीन रखने वाले सभी नौजवान पीडीपी में शामिल हों। पीडीपी में जो कचरा था, वह निकल गया है। जो आंधी चली थी, उसमें गंदगी साफ हो गई। कचरे का उल्लेख उन्होंने पीडीपी छोड़ने वाले नेताओं के लिए किया। महबूबा ने कहा कि मेरे पिता की एक ही इच्छा थी- कश्मीर में अमन और भारत-पाकिस्तान में दोस्ती। इसलिए हमने ही¨लग टच का पालिसी अपनाई।
महबूबा ने कठुआ कांड का जिक्र करते हुए कहा कि हमने पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए भाजपा के दबाव के बावजूद इस मामले की जांच सीबीआइ को नहीं सौंपी, क्योंकि शोपियां कांड में सीबीआइ ने मामला ही पलट दिया था। इस अवसर पर पूर्व राजस्व मंत्री अब्दुल रहमान वीरी, पूर्व कृषि मंत्री गुलाम नबी लोन हंजूरा, पूर्व विधायक निजामद्दीन बट समेत पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे।
टॉफी और दूध वाले बयान पर माफी मांगी :
पीडीपी अध्यक्ष ने टॉफी और दूध वाले अपने बयान पर माफी मांगते हुए कहा कि मैंने जो कहा, वह अपने बच्चों की जान की सलामती के लिए फिक्रमंद मां की तरह ही कहा था। उन्होंने नौजवानों से कहा कि मैं आपकी मां समान ही हूं। कुछ नौजवानों को जिन्हें बंदूक उठाकर मरने के लिए मजबूर किया गया, उनकी मौत से मुझे बहुत पीड़ा हो रही थी और एक मां होने के नाते मैंने अपनी तकलीफ जताने के लिए टॉफी व दूध जैसे शब्दे इस्तेमाल कर दिए थे। अगर मेरे कथन से किसी को तकलीफ पहुंची हो तो मैं उसके लिए माफी मांगती हूं।
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में हिंसक प्रदर्शनों में सुरक्षाबलों की कार्रवाई में स्थानीय युवकों की मौत को तत्कालीन मुख्यमत्री महबूबा ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में सही ठहराते हुए कहा था कि यह युवक सुरक्षाबलों के शिविरों पर मरने ही जा रहे हैं। वहां क्या कोई टॉफियां बंट रही होती हैं या दूध मिल रहा होता है जो ये युवक वहां चले जाते हैं।
भाजपा के साथ गठजोड़ मजबूरी थी :
महबूबा ने भाजपा के साथ गठजोड़ पर कहा कि यह मजबूरी थी। उन्होंने कि मेरे वालिद का जब इंतकाल हो गया था तो मैंने इस गठजोड़ से इन्कार कर दिया था, लेकिन मेरी ही पार्टी के कुछ नेता अपनी मर्जी से नागपुर पहुंच गए थे। यह वही लोग हैं, जो आज पीडीपी की निंदा करते हुए हमसे अलग हुए हैं। इन लोगों के आग्रह और भाजपा द्वारा हमें सभी जलविद्युत परियोजनाएं लौटाने, कश्मीर विसैन्यीकरण, कश्मीर मसले के हल के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने का यकीन दिलाने पर ही मैं राजी हुई थी, लेकिन भाजपा और पीडीपी के कुछ नेताओं ने मेरा पूरी तरह साथ नहीं दिया। इसके बावजूद हमने पहली बार हिंसा में लिप्त युवकों के लिए माफी का एलान किया। इसके साथ ही संघर्ष विराम भी घोषित की।
मैं आगे भी पीडि़तों के घर जाती रहूंगी :
आतंकियों के परिजनों के पास जाने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा कि इसमें कोई सियासत नहीं हैं। पुलवामा में एक आतंकी की बहन को अनावश्यक रूप से तंग किया जा रहा था। यह एक लड़की के सम्मान की बात थी। उसके परिजनों ने मुझसे आने के लिए आग्रह किया था। इसके अलावा वहां जाकर हमने यह संदेश दिया कि कोई भी आतंकियों के परिजनों को तंग न करे। मैं आगे भी पीडि़तों के घर जाती रहूंगी। मुझे कोई नहीं रोक सकता।
महबूबा का आतंकियों के घर जाना शहीदों का अपमान
पीडीपी अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का आतंकियों के घरों में जाकर उनके प्रति सहानुभूति जताना आतंकवाद के खिलाफ जंग में शहीद पुलिसकर्मियों के परिजन को रास नहीं आ रहा। वह इसे शहीदों का अपमान बता रहे हैं। शहीदों के परिवारों का कहना है कि कि वोटों की सियासत में उनकी कुर्बानियों का मजाक उड़ाया जा रहा है।महबूबा पिछले सप्ताह जिला पुलवामा में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए दो आतंकियों के घरों में गई थीं।
महबूबा ने बिजबिहाड़ा में फिर कहा कि वह आगे भी आतंकियों के परिजनों से मिलने जाती रहेंगी।इस बीच, पुलवामा में आतंकी हमले में शहीद पुलिसकर्मी मोहम्मद याकूब के भाई ने कहा कि मेरा भाई तो इसी कौम के लिए शहीद हुआ है। उसने कश्मीर में अमन बहाली के लिए अपनी जान दी है, लेकिन अफसोस हमारे घर कोई बड़ा नेता नहीं आया। महबूबा कुछ दिन पहले यहां हमारे ही इलाके में एक आतंकी के घर संवेदना जताने आई थी, लेकिन हमारे घर नहीं आई। उन्हें हमारे घर आकर देखना चाहिए था कि कश्मीर की बेहतरी के लिए जान देने वाले किन हालात में रह रहे हैं, लेकिन वह नहीं आएंगी, क्योंकि हम वोटों की गिनती में यकीन नहीं रखते। वह सिर्फ वोटों की खातिर आतंकियों की हमदर्द बनी घूम रही हैं।
आतंकी हमले में शहीद पुलिस इंस्पेक्टर अल्ताफ अहमद जिसे अल्ताफ लैपटॉप के नाम से भी जाना जाता है, के भाई ने कहा कि मेरे भाई की शहादत को सभी ने सलाम किया, लेकिन कोई बड़ा नेता हमारे घर नहीं पहुंचा। महबूबा, जिनका वोट बैंक हमारे इलाके में खूब है, एक बार भी हमारे घर नहीं आई। वह अगर कुलगाम में नहीं आ सकती थीं तो कम से कम एक बार मेरे शहीद भाई की बेटी के सिर पर हाथ फेरने यहां श्रीनगर में ही आ जातीं, लेकिन यहां सियासतदानों को कश्मीर में अमन नहीं वोट चाहिए। इसलिए वह आतंकियों के परिजनों के पास जाएंगे, क्योंकि वह वोट दिलाएंगे।
हम आहत होते हैं :
राज्य पुलिस में कार्यरत डीएसपी रैंक के एक अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हमें अलगाववादियों से कोई गिला नहीं हैं, क्योंकि आतंकियों व उनका एजेंडा एक ही है। लेकिन जब मुख्यधारा के राजनीतिक दल आतंकियों के समर्थन में खड़े होते हैं तो हम आहत होते हैं। अगर आप आतंकियों को सही ठहराएंगे तो उसका मतलब यही हुआ कि हम पुलिस वाले गलत हैं। जब कोई पुलिसकर्मी या कोई अन्य सुरक्षाकर्मी शहीद होता है तो शायद ही मुख्यधारा का कोई बड़ा नेता संवेदना जताने उसके परिजनों के पास जाता है।
संवेदना जताने का मतलब आतंकियों को सही ठहराना :
सुरक्षा मामलों के जानकार मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) दिलावर ने कहा कि मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के नेताओं की सियासी मजबूरियों को सभी जानते हैं। लेकिन देश की एकता और अखंडता से ज्यादा बड़ी उनकी मजबूरी नहीं हो सकती। अगर महबूबा या कोई अन्य बड़ा नेता किसी आतंकी के घर जाकर उसके परिजनों के साथ संवेदना जताएगा तो उससे सुरक्षाबलों का मनोबल गिरेगा और आतंकियों का हौंसला बढ़ेगा। आतंकियो के साथ संवेदना जताने का मतलब उन्हें सही ठहराना है।