महबूबा सिर्फ अपनी सियासत के लिए इस्लाम संरक्षक बनने का प्रयास कर रही हैं: हुर्रियत
हुर्रियत कांफ्रेंस ने महबूबा मुफ्ती को कहा कि उन्होंने जो मीरवाईज मौलवी उमर फारुक को फोन किया है,सिर्फ अपने एक सियासी मंसूबे के तहत किया है।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती द्वारा हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमैन मीरवाईज मौलवी उमर फारुक के साथ फोन पर गत शुक्रवार को जामिया मस्जिद के भीतर आईंएसआईएस के झंडे लहराने की घटना पर निंदा करते हुए सांत्वना जताना, महंगा साबित हाे रहा है।
हुर्रियत कांफ्रेस ने महबूबा मुफ्ती को नसीहत देते हुए कहा कि वह इस मामले में सियासत न करे तो बेहतर है,क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने तीन महीने तक जामिया मस्जिद को बंद रखा था। इस बीच, हुर्रियत कांफ्रेंस ने बु़धवार को कश्मीर में यौम ए तकद्दुस मनाने का एलान करते हुए लोगों से नौहटटा स्थित जामिया मस्जिद में जमा हो उसकी सफाई कर, उसे पाक बनाने को कहा है।
गौरतलब है कि गत शुक्रवार को कुछ नकाबपोश युवकों ने जामिया मस्जिद के भीतर ही आईएसआईएस के झंडे लहराए थे। नारे लगाते हुए यह युवक उस मंच अथवा गददी पर जा चढ़े, थे जहां पर बैठ मीरवाई मौलवी उमर फारुक शुक्रवार को नमाज ए जुम्मा से पूर्व खुतबा अदा करते हैं। इस घटना की मीरवाईज मौलवी उमर फ़ारुक व अन्य अलगाववादी नेताओं ने कड़े शब्दों में निंदा करते हुए इसे भारतीय एजेंसियों की कारस्तानी करार दिया है। कश्मीर के व्यापारिक व अन्य सामाजिक संगठनों ने भी इस पर एतराज जताया है।
मीरवाईज मौलवी उमर फारुक ने इस घटना को इस्लाम पर एक आघात करार देते हुए बुधवार को कश्मीर में यौम-ए-तकद्दुस मनाने का आहवान करते हुए सभी कश्मीरी मुस्लिमों से नौहटटा स्थित एतिहासिक जामिया मस्जिद में पहुंच कर, उसकी सफाई कर, उसे पाक बनाने को कहा है।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती जो सत्ताच्युत होने के बाद अब एक बार फिर अलगाववादियों और आतंकियों की समर्थक सियासत को अपना चुकी हैं, ने गत राेज मीरवाईज मौलवी उमर फारुक को फोन कर, शुक्रवार को जामिया मस्जिद में हुए हंगामे की निंदा की। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया व अन्य मंचों पर भी इसका जिक्र किया।
अलबत्ता, हुर्रियत कांफ्रेंस ने महबूबा मुफ्ती को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि उन्होंने जो मीरवाईज मौलवी उमर फारुक को फोन किया है,सिर्फ अपने एक सियासी मंसूबे के तहत किया है। इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी,जो आज खुद इस्लाम और जामिया मस्जिद की दुहाई दे रही है, जब वर्ष 2016 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी थी तो तीन माह तक जामिया मस्जिद के दरवाजों पर तालों को लगाए बैठी थी। उस समय महबूबस मुफ्ती को इस्लाम, नमाज ,जुम्मा और मस्जिद का काेई ध्यान नहीं था। इसके बाद वर्ष 2017 में उनके ही शासनकाल में जामिया मस्जिद में नमाज ए जमातुल विदा पर पाबंदी रही। गत वर्ष 2018 में 16 शुक्रवार को जामिया मस्जद में नमाज ए जुम्मा नहीं हुई।
हुर्रियत के मुताबिक,अगर मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए महबूबा मुफ्ती ने अगर इस्लाम और जामिया मस्जिद की मर्यादा का ध्यान रखा होता तो आज किसी की हिम्मत नहीं होती कि वह जामिया मस्जिद की मर्यादा को भंग करता। आज महबूबा मुफ्ती सिर्फ अपनी सियासत के लिए इस्लाम की संरक्षक बनने का प्रयास कर रही हैं।