कश्मीर में अब प्राकृतिक आपदाओं से बचाव व राहत कार्यों का इल्म भी देंगे मौलवी और उलेमा
केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश भूकंप की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील कहे जाने वाले सिस्मिक जोन-पांच में और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख जोन चार में आता है। उत्तरी लेह में कारोकोरम की पहाड़ियों में जंस्कार में अलग-अलग फाल्ट लाइन है।
श्रीनगर, नवीन नवाज : वादी में अब मौलवी और उलेमा अपने अनुयायियों को इस्लाम के साथ भूकंप, बाढ़ व इन जैसी अन्य प्राकृतिक आपदाओं से बचाव व राहत और पुनर्वास का भी ज्ञान बांटेंगे। किसी आपात परिस्थिति में वह बचाव व राहत कार्य में प्रशासन व जनता के बीच समन्वय बनाने की भूमिका भी निभाएंगे। प्रदेश सरकार ने इस सिलसिले में संबधित प्रशासन को सभी प्रमुख धर्मगुरुओं के साथ संपर्क बनाने के लिए कहा है।
केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश भूकंप की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील कहे जाने वाले सिस्मिक जोन-पांच में और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख जोन चार में आता है। उत्तरी लेह में कारोकोरम की पहाड़ियों में जंस्कार में अलग-अलग फाल्ट लाइन है। फाल्ट लाइन वो हाेती है, जिस क्षेत्र में टेकटानिक प्लेट टूट गई होती है। भूविज्ञानियों के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में 20 में से 11 जिले श्रीनगर, गांदरबल, बारामुला, कुपवाड़ा, बांडीपोर, बडगाम, अनंतनाग, डोडा, रामबन, किश्तवाड़, पुंछ व जम्मू भूकंप की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील हैं। इसके अलावा प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हिमपात और बाढ़ का भी खतरा बना रहता है। बीते 16 साल में जम्मू कश्मीर 300 के करीब भूकंप के छोटे बड़े झटके महसूस कर चुका है।
अक्टूबर 2005 में रिएक्टर स्केल पर 7.6 की तीव्रता वाला भूकंप आया था, जिसमें करीब 1200 लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा चार हजार के करीब इमारतें पूरी तरह या फिर आंशिक रूप से तबाह हुई थी। भू-विज्ञानियों ने अपने कई अध्ययनों के आधार पर जम्मू कश्मीर में किसी भी समय एक बड़े भूकंप की आशंका जतायी है। उनके मुताबिक, अगर नियमित अंतराल पर भूकंप के अगर हल्के झटके आते रहे तो बड़े और विनाशकारी भूकंप की आशंका भी घटती जाएगी।
कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता इमदाद साकी ने कहा कि कश्मीर में विभिन्न सामाजिक बुराइयों के खिलाफ मौलवियों और उलेमाओं की भूमिका सराहनीय रही है। एड्स जैसे विषयों पर यहां मौलवी और उलेमा अपनी मजलिसों में लोगों को जागरूक करते हैं। दहेज के खिलाफ अक्सर वह आवाज उठाते हैं और उनके प्रयास सफल भी रहे हैं। भूकंप या बाढ़ से उन्ही इलाकों में ज्यादा नुक्सान होता है, जहां मानव ने प्रकृति को ज्यादा नुकसान पहुंचाया होता है, अगर मौलवी और उलेमा इस विषय पर जागरुक करेंगे तो प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को किसी हद तक कम किया जा सकेगा। इसके अलावा राहत कार्य चलाने और पीडितों को समय पर मदद पहुंचाने में भी वह लोगों को आसानी से प्रेरित कर सकते हैं।