दो साल की बेटी से मिली प्रेरणा और शहीद की पत्नी बन गई सेना में लेफ्टिनेंट
शहीद जवान की पत्नी नीरू संब्याल ने पति का सपना किया पूरा। वे भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में शामिल हो गई हैं।
सांबा, जम्मू-कश्मीर (एएनआइ)। जब कोई अपना आपसे हमेशा के लिए दूर चला जाता है, तो किस कदर आप टूट जाते हैं। ऐसे में शहीद के परिजनों के दर्द का अहसास भी आप कर सकते हैं। पर आज हम आपको ऐसे जांबाज शहीद की जांबाज पत्नी से मिलाने जा रहे हैं, जिनपर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन वह अपने पति की मौत के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और लड़ी अपने परिवार तथा अपनी बेटी के लिए।
जिसने मजबूत संकल्प व अदभ्य ताकत को प्रदर्शित किया। ये महिला शहीद जवान की पत्नी नीरू संब्याल हैं। जम्मू-कश्मीर के सांबा की रहने वाली नीरू संब्याल अपने पति के ख्याबों को पूरा करते हुए, सेना में शामिल हो गई हैं। उन्होंने सफलापूर्वक अपना सैन्य प्रशिक्षण पूरा किया और अब वे भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में शामिल हो गई हैं।
सेना में लेफ्टिनेंट बनी शहीद की पत्नी
नीरू के पति राइफलमैन रविंदर संब्याल 2 मई, 2015 को अपनी रेजिमेंट के साथ एक ड्रिल के दौरान शहीद हो गए थे। नीरू और रविंदर की शादी अप्रैल 2013 में हुई थी और दोनों की दो साल की एक बेटी है। जब नीरू ने बेटी को जन्म दिया, तो उनके पति इस दुनिया को छोड़कर जा चुके थे। नीरू ने तब ही ठान लिया था कि वे अपने पति के सपनों को पूरा करेंगी और इसलिए उन्होंने सेना में दाखिल होने का फैसला लिया। नीरू ने चेन्नई के ऑफिसर ट्रेनिंग अकेडमी के नए बैच में कई सैन्य अधिकारियों के साथ प्रशिक्षण लिया और आज वे सेना में लेफ्टिनेंट हैं।
दो साल की बेटी बनी प्रेरणा
अपने संघर्षों के दिनों को याद करते हुए नीरू बताती हैं, 'मेरी और राइफलमैन रविंदर सिंह संब्याल की साल 2013 में शादी हुई थी। रविंदर इंफ्रैट्री में थे। जब मुझे उनके शहीद होने की खबर मिली, तो मुझे बिल्कुल भी यकीन नहीं हुआ था कि ऐसा हो गया है। लेकिन मेरी बेटी मेरे लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी। मैं कभी नहीं चाहती थी कि उसे अपने पिता की कमी महसूस हो। मैं उसकी इच्छाओं और सपनों को पूरा करने लिए पिता और माता दोनों का रोल अदा करना चाहती थी। इसी प्रेरणा की बदौलत मैंने 49 हफ्तों की ट्रेनिंग पूरी की। 8 सिंतबर, 2018 को मुझे सेना में नियुक्ति मिल गई।'
परिवार से मिला पूरा सहयोग
सेना में शामिल होने पर उन्होंने कहा, 'सेना में होने के नाते मानसिक रूप से मजबूत होना चाहिए, क्योंकि ऐसा भी समय आता है जब किसी को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जहां शारीरिक शक्ति अधिक मायने नहीं रखती नहीं है।' नीरू ने बताया कि हर फैसले में उन्हें उनके परिवार का पूरा साथ और समर्थन मिला है। उन्होंने बताया कि ससुराल और मायके वालों ने उनके सपने को पूरा करने लिए उनकी हरसंभव मदद की।
'बेटी पर मुझे गर्व है'
नीरू के पिता दर्शन सिंह अपनी बेटी की सफलता से बेहद खुश हैं। वे कहते हैं, 'मैं बहुत खुश हूं और बेटी की उपलब्धि पर मुझे गर्व है। मैंने वो सबकुछ किया जो मुझ से हो सकता था। उसके ससुराल वालों को भी उसकी सफलता का पूरा श्रेय जाता है। मेरी बेटी की दिली तमन्ना थी कि वो आर्मी ज्वॉइन करे, हालांकि यह थोड़ा कठिन निर्णय था लेकिन विचार-विमर्श करने के बाद हमने उसके सपने को पूरा करने का फैसला लिया।'
अपनी बेटी के संघर्ष के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, 'वह सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) चयन परीक्षा के दौरान 26 महिलाओं के खिलाफ प्रतिस्पर्धा कर रही थीं। आज मैं खुश हूं और गर्व करता हूं कि उनके संघर्षों का फल उसे मिला। इससे अधिक और क्या माता-पिता चाहेंगे।?