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Matribhasha Diwas 2021: अपने घर में ही सौतेली होती जा रही मातृभाषा, विलुत्प हो रही जम्मू-कश्मीर की कई भाषाएं

जम्मू-कश्मीर में कई मातृभाषाएं हैं लेकिन इन भाषाओं को प्रोत्साहन नहीं मिलने और घरों में भी अपनी भाषाओं को बोलने में संकोच के चलते आज बहुत-सी मातृभाषाएं आज अंतिम सांस ले रही हैं। अपने घर में ही मातृभाषाएं सौतेली हो जाती हैं।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Sun, 21 Feb 2021 07:30 AM (IST)Updated: Sun, 21 Feb 2021 07:30 AM (IST)
Matribhasha Diwas 2021: अपने घर में ही सौतेली होती जा रही मातृभाषा, विलुत्प हो रही जम्मू-कश्मीर की कई भाषाएं
आज बहुत-सी मातृभाषाएं आज अंतिम सांस ले रही हैं।

जम्मू, अशोक शर्मा : जम्मू-कश्मीर में कई मातृभाषाएं हैं, लेकिन इन भाषाओं को प्रोत्साहन नहीं मिलने और घरों में भी अपनी भाषाओं को बोलने में संकोच के चलते आज बहुत-सी मातृभाषाएं आज अंतिम सांस ले रही हैं। अपने घर में ही मातृभाषाएं सौतेली हो जाती हैं। भाषा अकादमी की ओर से जम्मू कश्मीर में मान्यता प्राप्त भाषाओं डोगरी, हिन्दी, उर्दू, कश्मीरी, पंजाबी के अलावा गोजरी, पहाड़ी भाषाओं के उत्थान के लिए नियमित कार्यक्रमों के आयोजन होते हैं, लेकिन इस वर्ष कोरोना के चलते मातृभाषा के उत्थान के लिए पूरे वर्ष में एक भी कार्यक्रम नहीं हो सका। हां, मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में शनिवार को केएल सहगल में एक बहुभाषी मुशायरे एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन जरूर हुआ।

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ट्राइबल रिसर्च फाउंडेशन के राष्ट्रीय सचिव डा. जावेद राही ने कहा कि सिर्फ जम्मू में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में हजारों की संख्या में मातृभाषाएं ऐसी हैं, जिनका अस्तित्व खतरे में हैं। जम्मू के डोगरा के अलावा भद्रवाह और किश्तवाड़ आदि क्षेत्रों से दर्जन भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं। भद्रवाही, किश्तवाड़ी, प्लेसी आदि भाषाएं बोलने वाले तो हैं, लेकिन इन भाषाओं के कार्यक्रम वर्षो से नहीं हो रहे हैं। वहीं गोजरी जितनी बोली जाती है, उस हिसाब से कार्यक्रम तो नहीं होते, लेकिन फिर भी सरकार की ओर से जिस तरह के प्रयास होने चाहिए, हो रहे हैं।

हां, घरों में लोगों ने गोजरी बोलनी कम कर दी है। जो लोग शहरों में आ जाते हैं, वह अपने बच्चों को सबसे पहले अपनी मातृभाषा से ही दूर करते हैं। कोई भी भाषा जब घरों से लुप्त हो जाती है तो सरकार का कोई भी प्रयास उस भाषा को नहीं बचा सकता। पहाड़ी लेखक स्वामी अंतर नीरव का कहना है कि जम्मू में कई मातृभाषाएं आज लुप्त होने की कगार पर हैं। पहाड़ी जम्मू-कश्मीर की मुख्य भाषाओं में है, लेकिन इसके प्रोत्साहन के लिए कोई भी ठोस प्रयास होता उन्होंने कभी नहीं देखा। अकादमी के वर्ष में दो चार कार्यक्रम जरूर होते हैं लेकिन इसे प्रोत्साहन की दिशा में कोई बड़ा प्रयास नहीं कहा जा सकता। 

बच्चों को मातृ भाषा से जोडऩे की जरूरत :

किसी भी मातृ भाषा के उत्थान के लिए जरूरी है कि बच्चों को मातृ भाषा से जोड़ा जाए। जम्मू-कश्मीर में ऐसा कोई भी ऐसा प्रयास नहीं हो रहा कि बच्चे मातृ भाषा से जुड़े रहें। अकादमी की ओर से डोगरी शीराजा का एक अंक बाल विशेषांक रहता है। लेकिन इस वर्ष कोरोना के चलते इसका प्रकाशन भी नहीं हो सका। बच्चे मातृ भाषा में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें। ऐसा अकादमी की ओर से भी कोई प्रयास नहीं होता। कला, संस्कृति एवं साहित्य से जुड़ी संस्थाएं भी बच्चों को ध्यान में रखकर कार्यक्रम नहीं करती। डोगरी साहित्यकार मोहन ङ्क्षसह ने कहा कि जब तक बच्चों को अपनी मातृभाषा से नहीं जोड़ा जाएगा। मातृ भाषा के लिए चुनौतियां बढ़ती ही जाएंगी।

रेडियो में छोटे बच्चों को मिलते हैं मौके :

मातृ भाषा के प्रोत्साहन के उद्देश्य से आकाशवाणी जम्मू में बच्चों का कार्यक्रम हर रविवार को प्रकाशित किया जाता है। आधे घंटे का डोगरी कार्यक्रम 'निक्कड़े फंगडू उच्ची उड़ान', 'बाल जगत', 10 वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों का कार्यक्रम 'चुनमुन' प्रसारित किया जाता है। वहीं बच्चों के लिए गोजरी भाषा में भी कार्यक्रम का प्रसारण किया जाता है। कार्यक्रम में भाग लेने वाले बच्चे इन कार्यक्रमों को लेकर इतने उत्साहित होते हैं कि हर बार मातृभाषा में कोई न कोई रचना लेकर पहुंचते हैं।

इन दिनों डोगरी समाचार वाचक जगमोहन शर्मा ने बताया कि उन्होंने शुरू में बच्चों के हिन्दी कार्यक्रम में ही भाग लेना शुरू किया था, लेकिन जैसे-जैसे शौक बड़ा तो डोगरी कार्यक्रम में भाग लेने की इच्छा से डोगरी सीखनी शुरू की। उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि अगर रेडियो से बच्चों के कार्यक्रम में भाग लेना न शुरू किया होता तो शायद जीवन में कभी डोगरी सीखने की इच्छा ही न होती। मातृ भाषा के प्रति स्थानीय दूरदर्शन केंद्र का विशेष दायित्व रहता है लेकिन जम्मू दूरदर्शन से तो पिछले पांच वर्षो से बचों के लिए एक भी कार्यक्रम नहीं हुआ।

नई शिक्षा नीति से मातृ भाषा को उम्मीदें :

नई शिक्षा नीति के तहत पांचवीं तक पढ़ाई मातृ भाषा में करवाने का फैसला लिया गया है। इससे मातृ भाषा का उत्थान संभव है। जब प्राइमरी तक की पढ़ाई मातृ भाषा में होगी तो आगे की पढ़ाई इस भाषा में संभव हो सकेगी। बच्चे मातृ भाषा सीखना चाहेंगे। पढऩा चाहेंगे। पहाड़ी के अकादमी संपादक अब्दुल वाहिद मन्हास ने कहा कि उन्होंने प्राइमरी तक किताबें जम्मू-कश्मीर बोर्ड के लिए तैयार की थी, लेकिन आज तक किसी भी स्कूल में पहाड़ी नहीं पढ़ाई गई। अब नई शिक्षा नीति के बाद उम्मीद है कि पहाड़ी में भी पढ़ाई हो सकेगी। इसी तरह डोगरी की सभी कक्षाओं की किताबें तैयार हैं, लेकिन पढऩे पढ़ाने वालों की संख्या नाममात्र ही है। जब तक मातृभाषा को जरूरी विषय के तौर पर नहीं पढ़ाया जाएगा भाषा का उत्थान संभव नहीं है।


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