Makar Sankranti 2021: मंदिरों में जाकर मनाई मकर संक्रांति, खूब किया दान पुण्य
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।इसलिए संक्रांति मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
जम्मू, जागरण संवाददाता : सूर्य देव के मकर राशि में आने पर मनाया जाने वाला पर्व मकर संक्रांति पूरी धार्मिक आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है।मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
इसी वजह से इस संक्रांति को मकर संक्रांति कहते हैं।मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह सूर्य उदय से दोपहर 02 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। इसलिए 14 जनवरी दोपहर 02 बजकर 38 मिनट के पहले जप, तप, स्नान, दान आदि करना शुभ है।जिसके चलते सुबह से ही श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए मंदिरों में पहुंच रहे हैं।कारोना के चलते जलस्रोतों पर ज्यादा रश नहीं दिखा लेकिन मंदिरों में जाने वालों का उत्साह देखते ही बनता है।
ज्योतिषाचार्य, महंत रोहित शास्त्री ने बताया इस संक्रांति में दान का बड़ा महत्व बताया है।इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा, स्नान, नदी, सरोवर एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभकारक माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है।सामान्यत, सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं। किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छह-छह माह के अंतराल पर होती है।
सूर्य जब मकर, कुंभ, वृष, मीन, मेष और मिथुन राशि में रहता है तब इसे उत्तरायण कहते हैं। वहीं, जब सूर्य बाकी राशियों सिंह, कन्या, कर्क, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में रहता है।तब इसे दक्षिणायन कहते हैं।
रातें छोटी व दिन बड़े होंगे: भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है।मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है, लेकिन मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाता है।अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है।
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं। अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।इसलिए संक्रांति मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन तिल-गुड़ के सेवन का साथ नए जनेऊ भी धारण करना चाहिए।