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संसद में पेश हुई जलशक्ति विभाग की बड़ी नाकामी, 5 सालों में 989 में से 150 योजनाएं समय पर हुई पूरी

वर्ष 2013 से 2018 तक 989 योजनाओं में से सिर्फ 150 को ही पूरा किया जा सका है। 439 योजनाओं को निर्धारित समय के बाद तीन साल में 254 योजनाओं को चार से 6 साल की देरी से 112 योजनाओं को 9 साल की देरी से पूरा किया गया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2020 01:46 PM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2020 02:55 PM (IST)
संसद में पेश हुई जलशक्ति विभाग की बड़ी नाकामी, 5 सालों में 989 में से 150 योजनाएं समय पर हुई पूरी
वर्ष 1947 के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर के लेखा परीक्षण की रिपोर्ट को संसद में पेश किया गया है।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। जम्मू-कश्मीर में जलशक्ति विभाग पांच सालों में 989 योजनाआें में से सिर्फ 150 को ही समय पर पूरा कर पाया है। अन्य 839 योजनाएं जिनकी अनुमानित लागत 1689.75 करोड़ रुपये है, को समय पर पूरा नहीं किया जा सका। कोई निर्धारित समय से एक साल बाद तो कोई 12 साल बाद पूरी हुई है। यह खुलासा जम्मू-कश्मीर के वित्त, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों जम्मू-कश्मीर के सरकारी विभागाें की गतिविधियाें और वित्तीय मामलों से संबंधित हाल ही में संपन्न हुए संसद के सत्र में पेश की गई कैग रिपोर्ट में हुआ है। वर्ष 1947 के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर के लेखा परीक्षण की रिपोर्ट को संसद में पेश किया गया है।

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कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष 2013 से 2018 तक 989 योजनाओं में से सिर्फ 150 को ही पूरा किया जा सका है। जबकि 439 योजनाओं को निर्धारित समय के बाद तीन साल में, 254 योजनाओं को चार से छह साल की देरी से और 112 योजनाओं को सात से नौ साल की देरी से पूरा किया गया है। 734 याजनाओं का पूरा करने में 10 से 12 साल ज्यादा लगे हैं। निर्माण में देरी के चलते यह पेयजल आपूर्ति से संबधित यह परियोजनाएं लक्षित आबादी के लिए पूरी तरह लाभजनक साबित नहीं हो पायी हैं। हैरानी की बात यह है कि 209 योजनाओं काे पूरा करने की अनुमानित लागत राशि बढ़ जाने की वजह से प्रशासन को 181.56 करोड़ रूपये अतिरिक्त खर्च करने पड़े।

कैग के अनुसार, वर्ष 2013-18 के दौरान शुरु की गई 989 योजनाओं में से 657 याेजनाओं के लिए प्रशासकीय, तकनीकी और वित्तीय मंजूरी भी प्राप्त नहीं की गई थी। इन योजनाओं पर 1415.37 करोड़ खर्च हुए हैं। प्रशासकीय, तकनीकी और वित्तीय मंजूरी न होने के कारण इन योजनाओं पर हुए खर्च को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। इन योजनाओं की वैधता को साबित किया जा सकता है। इन प्रशासकीय कोताहियों के चलते उपरोक्त योजनाआें पर खर्च 830.11 करोड़ रुपये का अनावश्यक खर्च किया गया है। संसद में पेश की गई कैग रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2019 में सरकार ने खुद स्वीकार किया है कि अनियमित और अपर्याप्त निधियों के कारण यह योजनाएं समय पर पूरी नहीं हो पायी हैं। इसलिए अब इन्हें जम्मू-कश्मीर में लंबित पड़ी परियोजनाओं की श्रेणी में शामिल कर, निधियों का विभिन्न स्रोतों से बंदोबस्त कर पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत सरकार ने सितंबर 2018 में लंबित पड़ी इन परियोजनाओं की लागत राशि में हुई बढ़ोतरी का 15 प्रतिशत भार उठाने का यकीन दिलाया था। 28 पेेयजल आपूर्ति योजनाओं के लेखा खातों व अन्य दस्तावेजों की जांच से पता चला है कि 43.45 करोड़ रुपये वितरण व अन्य कार्याें पर खर्च किए जबकि स्रोत विकास, जमीन अधिग्रहण जैसे काम पूरे नहीं किए गए। इसके अलावा दोषपूर्ण डीपीआर, अपर्याप्त निधियां और वन विभाग की मंजूरी न होने से यह सारा खर्च व्यर्थ साबित हुआ है।


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