बेड़ियां तोड़ विकास की राह पर चलने लगा कश्मीर का महराजगंज बाजार, ऐतिहासिक बाजार के लिए बनी दस करोड़ की परियोजना
आधुनिकता की दौड़ में खुद महराजगंज खुद को एक ऐतिहासिक मंडी और बाजार के रूप में विकसित देखना चाहता है।
श्रीनगर, नवीन नवाज । आतंकवाद, अलगाववाद और अनुच्छेद 370 की बेड़ियों से आजादी के बाद श्रीनगर के डाउन टाउन में स्थित ऐतिहासिक महराजगंज बाजार फिर से सांस लेता नजर आ रहा है। आधुनिकता की दौड़ में खुद महराजगंज खुद को एक ऐतिहासिक मंडी और बाजार के रूप में विकसित देखना चाहता है। उसकी इस उम्मीद को अब प्रशासन भी पूरा करने को तैयार है। इसके लिए करीब 10 करोड़ रुपये की एक परियोजना भी तैयार है। कई पुरानी ऐतिहासिक दुकानों की मरम्मत भी शुरू हो चुकी है। स्थानीय दुकानदार अपनी उपेक्षा की शिकायत करते हुए अब सुखद भविष्य की उम्मीद जता रहे हैं।
भारत-पाक विभाजन से पूर्व महराजगंज एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था। अमृतसर, लाहौर, तिब्बत, चीन, कराची, रावलपिंडी और ईरान व अफगानिस्तान से आने वाले व्यापारियों के लिए स्टाक एक्सचेंज और व्यापार का केंद्र था। विभाजन के बाद पहले इस बाजार की राजनीतिक आधार पर उपेक्षा हुई और रही सही कसर आतंकवाद व अलगाववाद ने पूरी कर दी। इस शाही बाजार में पुरानी जर्जर इमारतें जहां इसके अतीत की गवाह हैं, वहीं कचरे के ढेर और अतिक्रमण इसकी बर्बादी व उपेक्षा की कहानी बयां करते हैं। जीवन के अस्सी बसंत पार कर चुके सुल्तान अहमद कहते हैं, मैं इसी बाजार में काम करता था, आज यह वीरान है। वक्त कभी एक जैसा नहीं रहता, शायद इसलिए आज यहां पहले जैसी कोई रौनक नहीं है। उसने ठंडी सांस लेते हुए कहा कि यहां लाहौर, दिल्ली, अफगानिस्तान के व्यापारियों को मैंने देखा है।
कश्मीर विश्वविद्यालय में सेंट्रल एशिया स्टडीज सेंटर के पूर्व निदेशक प्रो. एजाज बांडे के मुताबिक विभाजन से पूर्व कश्मीर में महराजगंज एक बड़ा प्रदर्शनी बाजार था। मध्य एशिया के व्यापारी इस बाजार की शान हुआ करते थे। वर्ष 1932 में मशहूर व्यावसायी तीर्थराम सेठी जो गुजरांवाला पाकिस्तान के रहने वाले थे, द्वारा लिखित ट्रेड डायरेक्टरी ऑफ इंडिया में भी महराजगंज को भारतीय उपमहाद्वीप का एक बड़ा बाजार बताया गया है। हिंदी में लिखी गई इस किताब के मुताबिक पश्मीना शाल, कंबल, सब्जियां, सूखे मेवे, स्वर्ण आभूषण, दालें, मसाले, कपड़ा, लकड़ी की कशीदाकारी का सामान सबकुछ इस बाजार में उपलब्ध है।
कश्मीर के सबसे पुराने बाजारों में एक महराजगंज में कपड़े की अपनी पुश्तैनी दुकान पर बैठे गुलाम अहमद डार ने कहा कि अब बहुत कम व्यापारी और ग्राहक इस तरफ आते हैं। यह तवारीखी मार्केट अब तवारीख का हिस्सा हो चुकी है। इसे अब इसी लिहाज से विकसित किया जाए तो बात बन सकती है। बीते दिनों जिला उपायुक्त और उपराज्यपाल ने यहां आकर हमें यकीन दिलाया था कि वह इसे विरासती बाजार बनाएंगे। कुछ दुकानों की मरम्मत भी हुई है, इससे हमें थोड़ी उम्मीद है।
1860 में श्री रणबीरगंज नाम से बना था
महाराजगंज बाजार 1860 के आसपास तैयार कराया गया था। महराजगंज व्यापार मंडल 1865 में बना था। शुरू में इस बाजार का नाम श्री रणबीरगंज था, बाद में इसे महराजगंज किया गया। जब यह बाजार बना था तो गुजरांवाला और होशियारपुर के कई व्यापारयिों को यहां दुकानें आवंटित की गईं। महाराजा प्रताप ङ्क्षसह के दौर में यह बाजार मध्य एशिया के एक बड़े केंद्र के रूप में उभरा था। झेलम दरिया किनारे स्थित इस बाजार में सामान के आयात-निर्यात के लिए किश्तियां इस्तेमाल होती थीं।
बाजार में करीब 250 दुकानें
इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज जम्मू कश्मीर के संयोजक मोहम्मद सलीम बेग ने कहा कि महराजगंज के संरक्षित और इसके विकास के लिए वर्ष 2014 में बनी योजना पर आज तक काम नहीं हुआ है। कई दुकानदारों ने पुरानी ऐतिहासिक इमारतों के आगे की जमीन पर कब्जा कर लिया है, कुछ ने बहुमंजिला इमारतें तैयार कर ली हैं, यह भी एक संकट है। इस बाजार में करीब 250 दुकानें हैं।
हमने श्रीनगर की स्मार्ट सिटी योजना में भी महराजगंज को रखा है। हम इसे हेरिटेज मार्केट के तौर पर विकसित करेंगे। इस दिशा में काम भी हो रहा है। महराजगंज में कुछ पुरानी इमारतों की मरम्मत कराई है, पार्क तैयार कराया है। डाउन टाउन के इस बाजार को विकसित करने के लिए 10 करोड़ की योजना तैयार की है। इसमें पर्यटन विभाग और हेरिटेज एक्सपर्ट की मदद भी ले रहे हैं। पूरे बाजार में बैठने की जगह, रोशनी, झेलम के घाटों की सफाई, ऐतिहासिक इमारतों की मरम्मत, फुटपाथ और आर्टिजन मार्केट बनेगा। हमारा प्रयास है कि बाजार के पुराने वास्तुशिल्प को यथासंभव बहाल करते हुए सभी आधुनिक सुविधांए भी उपलब्ध कराई जाएं ताकि पर्यटकों को यह क्षेत्र हमेशा याद रहे।
-शाहिद इकबाल चौधरी, जिला उपायुक्त श्रीनगर