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Women's Day 2021: मेट्रो सिटी की जिंदगी छोड़ अर्पणा चंदेल ने बेटियों के लिए गांव में बनाया किताब घर

कहानियों और नोवेल से लेकर इतिहास विज्ञान राजनीतिक विज्ञान समाज शास्त्र अंग्रेजी की किताबें इस किताब घर में मिल जाएंगी। अब इसमें न सिर्फ बच्चे बल्कि युवा व अन्य लोग इसमें आकर पढ़ रहे हैं। उसने सोचा नहीं था कि गांव में इतनी जल्दी बदलाव देखने को मिलेगा।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 06 Mar 2021 10:41 AM (IST)Updated: Sat, 06 Mar 2021 10:44 AM (IST)
Women's Day 2021: मेट्रो सिटी की जिंदगी छोड़ अर्पणा चंदेल ने बेटियों के लिए गांव में बनाया किताब घर
किताबों का खर्च, जगह, उसके पास कुछ भी नहीं था।

जम्मू, रोहित जंडियाल: मेट्रो सिटी की जिंदगी व एक बड़ी प्रतिष्ठित कंपनी को छोड़कर अर्पणा चंदेल अपने गांव लौट आई। मकसद था कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना और बेटियों का चहुुंमखी विकास कर सशक्त बनाना। कोरोना ने लोगों की ङ्क्षजदगी विशेषकर बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित किया है। ग्रामीण व दूरदराज क्षेत्रों में बच्चों को आनलाइन शिक्षा तक की सुविधा नहीं थी। इन्हीं गांव में एक है डोडा जिलेे का शिवा गांव। यहां बच्चों की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। स्कूल बंद थे। ऐसे में इन बच्चों की सहायता के लिए आगे आई अर्पणा। उसने बच्चों के लिए एक किताब घर खोला और बेटियों के लिए डाटर्स आफ मून नाम से प्रोजेक्ट भी शुरू किया।

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मूलत डोडा के शिवा गांव की ही अर्पणा दिल्ली में प्रतिष्ठित मीडिया हाउस में काम कर रही थी। उसने गैर सरकारी संगठन साहस का गठन किया। कोरोना के कारण वह दिल्ली से जब गांव शिवा में पहुंची तो वहां बच्चों की हालत देखकर दंग रह गई। स्कूल बंद थे। पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी। बेटियों को उनके अधिकारों के प्रति कोई जागरूक नहीं कर रहा था। उसने गांव में बच्चों के लिए किताब घर बनाने का फैसला किया। सब कुछ आसान नहीं था। किताबों का खर्च, जगह, उसके पास कुछ भी नहीं था।

गांव में जब उसने बात की तो किसी ने भी पहले उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। अर्पणा ने मन में ठान लिया था कि अब वह गांव में किताब घर बनाकर ही रहेगी। अर्पणा ने कई दिन गांव के गणमान्य लोगों को समझाया और इसके बाद गांव वालेे किताब घर के लिए मान गए। जगह का भी प्रबंध हो गया। अब किताबों का प्रबंध करना चुनौती था। अर्पणा को साथ मिला उत्तर प्रदेश के मेरठ में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था डाटर्स आफ मून और आइपीएस अधिकारी बसंत रथ का साथ मिला।

बसंत रथ ने किताब घर के लिए एक हजार किताबें मुहैया करवाई। डाटर्स आफ मून ने भी फंड मुहैया करवाए। चंद माह में अब किताब घर में दो हजार किताबें आ गई हैं। हर विषय की किताबें हैं। कहानियों और नोवेल से लेकर इतिहास, विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान, समाज शास्त्र, अंग्रेजी की किताबें इस किताब घर में मिल जाएंगी। अब इसमें न सिर्फ बच्चे बल्कि युवा व अन्य लोग इसमें आकर पढ़ रहे हैं। अर्पणा का कहना है कि उसने सोचा नहीं था कि गांव में इतनी जल्दी बदलाव देखने को मिलेगा। खुशी है कि हर आयु वर्ग के लोग किताब घर में आ रहे हैं।

डाटर्स आफ मून से बेटियों का चहुंमुखी विकास: अर्पणा ने गांव की बेटियों के चहुंमुखी विकास के लिए डाटर्स आफ मून नाम से प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसमें वह गांव की बेटियों की देश में विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों के साथ आनलाइन बात करवाती हैं। इनमें कला, संस्कृति, खेल, शिक्षा, संगीत सहित कई क्षेत्रों की हस्तियां बेटियों को आत्मनिर्भर बनने के बारे में बताती हैं। बेटियों को हर क्षेत्र में आगे आने के लिए प्रेरित करती हैं। अर्पणा का कहना है कि गांव की लड़कियों में बहुत प्रतिभा है। उनमें आत्मविश्वास पैदा करना है। इसके बाद इन्हें कोई नहीं रोक सकता।

अब स्कूल खोलने की योजना: अपने गैर सरकारी संगठन साहस के बैनर तले स्कूल भी खोलने जा रही हैं। गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा मुहैया करवाई जाएगी। अर्पणा का कहना है कि गांव में बहुत से बच्चे हैं जिनकी शिक्षा की ओर कोई भी ध्यान नहीं देता है। ऐसे बच्चों को उच्च गुणवत्ता की दिलाने के लिए इसी महीने से स्कूल खोलने का प्रस्ताव है। इस पर काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि उनका मकसद 10 हजार की जनसंख्या वाली शिवा पंचायत का कायाकल्प करना है। 


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