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Padma Sachdev Passed away : लता मंगेशकर ने कहा- मेरी सहेली पद्मा के निधन पर नि:शब्द हूं

लता ने ट्वीट पर लिखा- ‘मेरी प्यारी सहेली और मशहूर लेखिका कवयित्री और संगीतकार पद्मा सचदेव के स्वर्गवास की खबर सुनकर मैं निशब्द हूं। क्या कहूं। हमारी बहुत पुरानी दोस्ती थी। पदमा और उसके पति हमारे परिवार के सदस्य जैसे ही थे। मेरे अमेरिका के शो का निवेदन उसने किया

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 09:54 PM (IST)Updated: Wed, 04 Aug 2021 09:54 PM (IST)
Padma Sachdev Passed away  : लता मंगेशकर ने कहा- मेरी सहेली पद्मा के निधन पर नि:शब्द हूं
पद्मा सचदेव के निधन से मशहूर पार्श्व गायिका लता मंगेसगर भी बेहद आहत हैं। उन्होंने भी शोक जताया।

जम्मू, जागरण संवाददाता : पद्मश्री पद्मा सचदेव का न रहना डोगरी साहित्य सफर का ही नहीं पुरानी संस्कृति के युग का समाप्त होना है। वह हमेशा डोगरों की पुरानी संस्कृति, रीति-रिवाजों, भाषा की बात करती थीं। उनके निधन से मशहूर पार्श्व गायिका लता मंगेसगर भी बेहद आहत हैं। उन्होंने भी शोक जताया। वहीं जम्मू कश्मीर के दिग्गज साहित्यकारों ने भी गहरी संवेदना जताते हुए सचदेव के निधन को एक अभिभावक का जाना बताया है।

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लता ने ट्वीट पर लिखा- ‘मेरी प्यारी सहेली और मशहूर लेखिका कवयित्री और संगीतकार पद्मा सचदेव के स्वर्गवास की खबर सुनकर मैं नि:शब्द हूं। क्या कहूं। हमारी बहुत पुरानी दोस्ती थी। पदमा और उसके पति हमारे परिवार के सदस्य जैसे ही थे। मेरे अमेरिका के शो का निवेदन उसने किया था। मैंने उसके डोगरी गाने गाए थे। जो बहुत लोक प्रिय हुए थे। पदम के पति सुरेंद्र सिंह जी अच्छे शास्त्रीय गायक हैं। जिन्होंने मेरा गुरुवाणी का रिकार्ड किया था।कई यादें हैं आज मैं बहुत दुखी हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।

पद्मा सचदेव जम्मू वालों के साथ उनका रिश्ते ठीक मायके वालों जैसा ही था। वह जम्मू में आयोजित किसी भी साहित्यिक कार्यक्रम में किसी की भी गलती पर हक से डांट दिया करती थीं। युवा हो या बुजुर्ग साहित्यकार, सबको लगता था मानो घर के किसी बड़े के सामने कोई गलती हो गई है और उसने उस गलती को सुधारा है। वह अपने साथ जम्मू की यादों की बड़ी सी पोठली लेकर चलती थी। खासकर पुराने शहर से जुड़ी उनकी यादें सुनकर पुराने लोग भी चकित रह जाते थे कि उन्हें कितना मोह है अपनी धरती से।यह उनका डोगरा संस्कृति से प्यार ही था कि उन्होंने अपने लिखे गीत तो लता मंगेशकर जी से गवाए ही दूसरे गीतकारों के गीतों को गाने के लिए भी उन्हें जैसे तैसे मनवा लिया।

तू मला तू हो..., भला शिपाइयां डोगरेया हो... रंगी दे ओडनू ललारिया हो... गीत आज भी जब गूंजते हैं तो हर डोगरा गौरवांवित महसूस करता है। उन्हें डोगरा होने पर कितना गर्व था कि वह जम्मू से जुड़ी हर बात को बडे़ से बडे़ मंच पर बडे़ गर्व के साथ कहती थी। डोगरा विरासत के प्रति उनका मोह उनकी रचनाओं में साफ झलकता है। वह तो डाक्टर कर्ण सिंह जी तक को कह देती थी शायद ऐमिहासिक मुबारक मंडी को वह उनसे बेहतर जानती हैं। पुरमंडल में जन्मी पदमा सचदेव का बचपन धौंथली बाजार में गुजरा। आज भी धौंथली मोहल्ले के लोगों ने उनके देहांत पर कहा कि मुबारक मंडी के बाद पदमा सचदेव के कारण उनके मोहल्ले की पहचान थी।

वह ऐसी लेखिका थी जो खुद तो लिखती ही थी दूसरों को भी हमेशा लिखने के लिए प्रेरित करती थी।धर्म युग में छपे अपनी कहानियkें और लेखक एवं संपादक धर्मवीर भारती से जुड़ी यादें वह अक्सर साझा करती थी।जम्मू का जो भी पत्रकार उनसे मिलता उसे खूब पढ़ने के लिए प्रेरित करती। फिर पूछती गालिब पढे़ हो। साथ ही कह देती जिसने गालिब नहीं पढ़ा उसे लिखने का कोई अधिकार नहीं।खुद वह जम्मू की लगभग हर भाषा को बोल लेती थी अच्छे तरीके से समझती थी। किश्तवाड़ी और कश्मीरी बोलने वाले युवाओं की भाषा में गलतियां निकाल उन्हें उनकी भाषा बोलने के लिए प्रेरित करती थी। गाजरी को लेकर उनके मन में खासा सम्मान था।

डोगरी के लिए अटल जी से मिलवाया : डोगरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने में उनका विशेष योगदान रहा। पूरे अांदोलन में वह कंधे से कंधा मिलाकर चलती रही। डुग्गर मंच के प्रधान मोहन सिंह ने कहा कि दिल्ली में डोगरी के लिए हुए हर प्रदर्शन, धरने, बैठक में वह बढ़ चढ़ कर भाग लेती रही। तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ साथ डोगरी साहित्यकारों की बैठक उन्होंने ही करवाई थी। जिसके बाद प्रधान मंत्री ने डाेगरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाया।

जम्मू के साहित्यकारों की दिलवाई राष्ट्रीय पहचान : डोगरी जब अपने बजूद की लड़ाई लड़ रही थी तो 70 के दशक में पदमा सचदेव ने धर्म युग में डोगरी साहित्यकारों, दीनू भाई पंत, प्रो. राम नाथ शास्त्री, कहरी सिंह मधुकर, वेद पाल दीप, यश शर्मा जैसे साहित्यकारों पर लेख लिख कर उनकी और डोगरी की राष्ट्रीय पहचान करवाई।जम्मू की कला संस्कृति पर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लगातार लिखती रही।

जम्मू की आवाज थी पदमा सचदेव : पदमा सचदेव ने सैंकडों डोगरी गीत लिखे। उन्हें स्थानीय कलाकारों के साथ-साथ नामी गिनामी गायकों से भी गवाती रही। उससे डोगरी को संगीत की दुनिया में एक पहचान मिली। लता मंगेशकर जी से डोगरी गीत गवाने के लिए उन्होंने कई महीने लगाए। उनकी मेहनत और लगन से लता जी के गाए डोगरी गीत आज हर डोगरा परिवार के घर में ही नहीं विदेशों में बैठे डोगरों के घरों में भी गूंजते हैं। यह उनका डोगरी और डोगरों के प्रति सनेह ही था कि उन्होंने महेंद्र कपूर से मिट्ठडी ए डाेगरी ते खंड मिट्ठे लोक डोगरे... गीत गवाया। भूपेंद्र ने उनका गीत ऊचियां सोंगला बनी गेइयां किया जाना पशानुएं कोल... गवाया। उनका गाया गीत अस डोगरेयां आखनेया छाने कन्ने.. आज भी हर सांस्कृतिक कार्यक्रम की जान होता है तो डोगरा युवाओं को डोगरा होने पर गर्व करने के लिए प्रेरित करता है।

हर कार्यक्रम में डोगरी बोलने पर देती थी जोर : पदमा सचदेव जम्मू में किसी भी कार्यक्रम में होती तो वह युवाओं, युवतियों को हमेशा डोगरी बोलने के लिए प्रेरित करती थी।वह हर मां से कहती थी कि बच्चों से डोगरी बोला करें। उनका मानना था कि जब तक घरों में डोगरी नहीं बोली जाएंगी डोगरी का विकास संभव नहीं है। जब तक अपनी भाषा पर गर्व नहीं होगा। भाषा का उत्थान नहीं हो सकता। फिर वह घंटों डोगरी की खूबियाें पर बात करती रहती।


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