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Gharana wetland RSPura: घराना पर यूटी का पेंच, ईको टूरिज्म विकसित करने को नहीं हो पा रहा भूमि अधिग्रहण

हर साल सर्दी के दिनों में सात समुंदर पार से आने वाले मेहमान पक्षी स्थानीय ग्रामीणों या कह लें मेहमाननवाजों की आंखों की किरकिरी बने रहते हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 02:03 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 02:03 PM (IST)
Gharana wetland RSPura: घराना पर यूटी का पेंच, ईको टूरिज्म विकसित करने को नहीं हो पा रहा भूमि अधिग्रहण
Gharana wetland RSPura: घराना पर यूटी का पेंच, ईको टूरिज्म विकसित करने को नहीं हो पा रहा भूमि अधिग्रहण

जम्मू, लोकेश चंद्र मिश्र। भारत-पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय सीमा के नजदीक घराना गांव में खूबसूरत पक्षी अभ्यारण्य (वेटलैंड) है। यह जगह ईको टूरिज्म का नायाब नमूना साबित हो सकता है। इस जगह की खूबसूरती और अहमियत इसलिए भी खास होगी, क्योंकि मात्र आठ किलोमीटर के फासले पर सुचेतगढ़ ऑक्ट्राय पोस्ट है। इस जगह को बार्डर टूरिज्म के रूप में और ज्यादा विकसित किया जा रहा है। लेकिन घराना में ईको टूरिज्म विकसित करने की राह में अभी कई तकनीकी अरचनें हैं। इसको सुलझाने में राज्यपाल प्रशासन को गंभीर प्रयास करने होंगे। जमीन की कीमत तय करने में केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) का पेंच फंस गया है।

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हर साल सर्दी के दिनों में सात समुंदर पार से आने वाले मेहमान पक्षी स्थानीय ग्रामीणों या कह लें मेहमाननवाजों की आंखों की किरकिरी बने रहते हैं। मेहमान और मेहमाननवाज के विवाद को सुलझाने में वन्यजीव संरक्षण विभाग सामने आया। विभाग ने घराना में 408 कनाल जमीन की निशानदेही की और ग्रामीणों के सामने इसके बदले पैसे देने का प्रस्ताव रखा। 408 कनाल भूमि में 354 कनाल ग्रामीणों की है और बाकी स्टेट लैंड है। राज्यपाल प्रशासन ने बीते साल फरवरी में इस मामले को तुरंत सुलझाने का दबाव विभाग पर बनाया था। उसके बाद आरएसपुरा के एसडीएम ने वन्यजीव संरक्षण विभाग से जमीन अधिग्रहण करने के एवज में 11 करोड़ 70 लाख रुपये की मांग की थी। हाईकोर्ट में कानूनी रूप से वन्य जीव संरक्षण विभाग ने तीन महीने पहले एसडीएम आरएसपुरा के खाते में पैसे डाल भी दिए। लेकिन जमीन के मालिक ये पैसे लेने के लिए तैयार नहीं हैं।

विभाग की सक्रियता बढ़ाता देख तत्काल एक एनजीओ ने इस मामले को कोर्ट तक पहुंचा दिया। इसकी वजह यह है कि इस जमीन की जो रेट तय हुई है, वह ग्रामीणों को मंजूर नहीं है। प्रशासन ने राज्य सरकार के मुताबिक सरकारी रेट ढाई लाख प्रति कनाल से कुछ ज्यादा तय किया था। लेकिन अब केंद्र शासित प्रदेश बन गया। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के कारण अब नियम के मुताबिक जबरदस्ती जमीन अधिग्रहण करने पर सरकारी रेट का चार गुना कीमत जमीन मालिका को अदा करनी पड़ती है। घराना गांव के लोग नई कीमत मांग रहे हैं।

  • तत्काल रेवेन्यू रिपार्टमेंट से नोटिफिकेशन का इंतजार किया जा रहा है। जैसे ही नोटिफिकेशन आएगी, वैसे ही ग्रामीणों के साथ जमीन अधिग्रहण करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा। आमने-सामने बैठकर लोगों से बात की जाएगी। ग्रामीणों के जो भी मसले होंगे, उसको गंभीरता से लिया जाएगा। जरूरत पड़ी तो उसे उच्चाधिकारियों और सरकार तक पहुंचाया जाएगा। - रामलाल शर्मा, एसडीएम, आरएसपुरा

जमीन मिलते ही शुरू होगा ईको टूरिज्म का काम

आरएसपुरा के एसडीएम ने मुझे जमीन अधिग्रहण के लिए 11 करोड़ 70 लाख रुपये मांगे थे। तीन महीने पहले हमने दे दिए। जमीन जैसे ही मुझे सुपुर्द की जाएगी, वैसे ही घराना में ईको टूरिज्म विकसित करने की पहल शुरू कर दी जाएगी। इसके लिए हमने काफी कुछ सोच रखा है। निश्चित रूप से ग्रामीणों को उसका फायदा होगा। रोजगार के अवसर मिलेंगे। यदि ग्रामीणों को मौजूदा कीमत मंजूर नहीं है तो उसका भी प्रोसेस होता है। ग्रामीण अपनी बात प्रशासन के द्वारा उठा सकते हैं। - सज्जाद चौधरी, वार्डन, वाइल्ड लाइफ जम्मू

ग्रामीणों की ये मांगें

  • जमीन के बदले कृषि योग्य भूमि जोड़ा फार्म में
  • जमीन की कीमत 15 लाख रुपये प्रति कनाल
  • यूटी के मुताबिक सरकारी कीमत का चार गुना रेट
  • पक्षी द्वारा बर्बाद की गई फसल का मुआवजा
  • जमीन मालिकों को रोजगार का स्थायी साधन

जमीन ही हमारी जीवन है, ऐसे कैसे दे दें

ग्रामीणों के लिए जमीन जान होती है। वहीं उनकी आजीविका का साधन होता है। इसलिए घराना के लोग ईको टूरिज्म की शर्त पर जमीन देने से आनाकानी करते हैं। गांव के लंबरदार बिशन लाल ने कहा कि हम उपजाऊ जमीन के बदले उपजाऊ जमीन मांग रहे हैं। प्रति कनाल जमीन 15 लाख रुपये मांग रहे हैं। सरकार को सोचना चाहिए कि हम अपनी जमीन ही दे देंगे तो खाएंगे क्या? उसी तरह गांव निवासी महिंदर लाल, मित्तल चौधरी, अशोक चौधरी, रतन लाल आदि ने कहा कि उचित कीमत मिले बिना जबरदस्ती हम जमीन नहीं दे सकते। सरकार को हमारी रोजीरोटी के लिए सोचना होगा। अभी तक प्रशासन आमने-सामने बैठकर हमारी बात नहीं सुन रहा है। जमीन की निशानदेही कर लेने से वह अधिग्रहण नहीं मान लिया जाएगा। कीमत यूटी के मुताबिक ही तय होगी।


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