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लद्दाखी सैनिक कुर्बानी देने में रहे हैं सबसे आगे

लद्दाख में चीन का मुकाबला करने के लिए बर्फीले चीतों की फौज तैयार हो रही है। सेना के साथ लद्दाखी भी सामने खड़े चीन को खतरे का पर्याय मानते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 04 Aug 2018 10:49 AM (IST)Updated: Sat, 04 Aug 2018 10:49 AM (IST)
लद्दाखी सैनिक कुर्बानी देने में रहे हैं सबसे आगे
लद्दाखी सैनिक कुर्बानी देने में रहे हैं सबसे आगे

जम्मू, विवेक सिंह। लद्दाख में चीन का मुकाबला करने के लिए बर्फीले चीतों की फौज तैयार हो रही है। सेना के साथ लद्दाखी भी सामने खड़े चीन को खतरे का पर्याय मानते हैं। ऐसे में दुर्गम हालात में पले बढ़े लद्दाखी युवा सेना में भर्ती होकर अपने क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने में भागीदार बन रहे हैं।

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बर्फ में युद्ध लड़ने में माहिर सेना की लद्दाख स्काउट्स में लद्दाखी सैनिकों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। इस इन्फेंटरी यूनिट को युद्धों और सैन्य अभियानों में बहादुरी के लिए बर्फीले चीते का खिताब मिला है। इस समय लद्दाख स्काउट्स की पांच बटालियनें हैं। भविष्य में इनकी संख्या बढ़ना तय है। ऐसे हालात में लद्दाख के 161 युवा लद्दाख स्काउट्स रेजीमेंटल सेंटर में ट्रेनिंग पूरी करने के बाद युवा सैनिक के रूप में सेना में भर्ती हो गए। इन युवाओं को बर्फीले, दुर्गम इलाकों में खून जमा देने वाली ठंड में दुश्मन के मंसूबों को नाकाम बनाने की विशेष ट्रेनिंग दी गई।

लद्दाख स्काउट्स में इन बर्फीले चीतों का स्वागत कर्नल ऑफ द रेजीमेंट लेफ्टिनेंट जनरल वाइके जोशी ने किया।लद्दाखियों के दिल में यह बात घर कर गई कि चीन शांति की आड़ में पीठ पीछे वार करता है। ऐसे हालात में चीन के तिब्बत पर कब्जे का विरोध करने वाले लद्दाखी पड़ोसी देश के शांति के नारों में विश्वास नहीं रखते हैं। यह चीन भी जानता है। पिछले दो दशक के दौरान चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ बसने वाले लद्दाखियों को अपने प्रभाव में लेने के बड़े प्रयास किए हैं।

चीन लद्दाखी भाषा में रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से भी सांस्कृतिक घुसपैठ की कोशिश कर चुका है।लद्दाखी समाज एकजुट होकर चीन की साजिशों को नकार रहा है। चीन की मंशा के बारे में लोगों को वे वीर भी जागरूक कर रहे हैं, जिन्होंने युद्ध के मैदान में वीरता का परिचय देते हुए लद्दाख का नाम रोशन किया है। ऐसे ही एक लद्दाखी सूबेदार छीरग स्टोबदान लद्दाखी युवाओं को फौज में भर्ती होने की प्रेरणा देने के साथ सेना में लद्दाखी जवानों की संख्या बढ़ाने का मुद्दा लगातार उठा रहे हैं।

कारगिल युद्ध में वीर चक्र हासिल कर चुके लद्दाख स्काउट्स के इस वीर का कहना है कि लद्दाख में चीन, पाकिस्तान की चुनौती को कभी कम नहीं आंका जा सकता है। इसके मुकाबले के लिए भारतीय सेना में लद्दाखी सैनिकों की संख्या बढ़ाना समय की मांग है। लद्दाखी सैनिक बर्फ से लदे दुर्गम इलाकों में युद्ध में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। स्थानीय होने के नाते वे क्षेत्र की चुनौतियों से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं।

कुर्बानी देने में हमेशा आगे रहे लद्दाखी

सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा करने की जब भी बात आई, लद्दाखी सैनिक कुर्बानी देने में आगे रहे। एक अशोक चक्र, 10 महावीर चक्र, दो कीर्ति चक्र समेत करीब 300 वीरता पदक जीतने वाली यह बटालियन वीरता की मिसाल है। वर्ष 1948 में नोबरा गार्ड के गठन के साथ लद्दाखी सैनिकों ने देश सेवा की मशाल जलाई थी। चार साल बाद नोबरा गार्ड का विलय जम्मू कश्मीर मिलिशिया के साथ कर दिया गया।

वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद लद्दाख स्काउट्स का गठन हुआ। कारगिल युद्ध में बहादुरी की मिसाल बनी इस रेजीमेंट को वर्ष 2000 में इन्फेंटरी रेजीमेंट के रूप में भारतीय सेना का अभिन्न अंग बना लिया गया। कारगिल में शहीद होने वाले लद्दाख स्काउट्स के 24 वीरों में से 21 लेह व तीन सैनिक कारगिल जिले के थे। बहादुरी के लिए इस रेजीमेंट के मेजर सोनम वांगचुक को महावीर चक्र तो सूबेदार छीरग स्टोबदान, सूबेदार लोबजांग छोटक, हवलदार सीवांग रिगजिन व सिपाही छीरग दोरजे को वीर चक्र मिला। 


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