लद्दाख में 1951 से ही केंद्र शासित राज्य के दर्जे की हो रही मांग
लद्दाख में वर्ष 1951 से ही केंद्र शासित राज्य के दर्जे की मांग हो रही है। इसकेलिए लद्दाख में कई बार तीव्र जन आंदोलन हुए हैं।
जम्मू , [राज्य ब्यूरो] । लद्दाख में वर्ष 1951 से ही केंद्र शासित राज्य के दर्जे की मांग हो रही है। इसकेलिए लद्दाख में कई बार तीव्र जन आंदोलन हुए हैं। वर्ष 1993 में तत्कालीन केंद्र सरकार पहली बार सैद्धांतिक तौर पर लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्जा देने को राजी हुई और अंतरिम व्यवस्था के तहत लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के गठन पर सहमति हुई।
कानून, न्याय एवं कंपनी मामलों के मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर राज्य विधानसभा अधिकारों का विकेंद्रीयकरण अधिनयिम 1992 के अनुच्छेद तीन के तहत प्राप्त अधिकारों के आधार पर राष्ट्रपति के जरिए लद्दाख में अंतर जिला सलाहकार परिषदों और स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के गठन का कानून लाया। यह कानून राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौर में ही लागू होना था, लेकिन लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (एलएएचडीसी) अधिनियम 1997 में तत्कालीन नेशनल कांफ्रेंस के दौर में पारित हुआ।
लेकिन यह अधिनियम ज्यादा प्रभावकारी नहीं था। अलबत्ता, वर्ष 2002 में तत्कालीन पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार के दौरान एलएएचडीसी लेह को अधिकारों की समानता का अधिकार वर्ष 1997 के अधिनयिम में संशोधन के जरिए प्रदान किए गए। इसके साथ ही कारगिल जिले के लिए भी एलएएचडीसी का गठन किया गया। स्वायत्त परिषदों के मुख्य कार्यकारी पार्षदों को कैबिनेट मंत्रियों के बराबर और पार्षदों को राज्य मंत्रियों के बराबर प्रोटोकाल व भत्ते प्रदान किए गए।
इसके साथ ही कौंसिलों को विकास योजनाओं व प्रशासकीय कायरें के लिए जमीनों की निशानदेही, आवंटन और कौंसिल के कर्मियों की निगरानी व नियंत्रण का अधिकार भी दिया गया।
भाजपा को होगा सियासी फायदा :
लद्दाख को एक अलग प्रशासकीय इकाई का दर्जा देने से भाजपा को निकट भविष्य में होने वाले संसदीय और विधानसभा चुनावों में सियासी फायदा हो सकता है। भाजपा ने वर्ष 2014 के अपने चुनाव घोषणापत्र में लद्दाख को एक अलग केंद्र शाासित राज्य का दर्जा देने का एलान किया था। लेकिन यह वादा पूरा नहीं हुआ और इससे स्थानीय लोग उससे नाराज थे। केंद्र शासित राज्य का यकीन दिलाने के बाद ही भाजपा पहली बार लद्दाख प्रांत की संसदीय सीट जीतने में कामयाब रही और लद्दाख यूनियन टेरीटेरी फ्रंट (एलयूटीएफ) के संस्थापक थुपस्तान छिवांग भाजपा के टिकट पर सांसद बने।
उन्होंने गत दिनों लद्दाख की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए भाजपा और संसद की सदस्यता छोड़ दी। इससे कुछ समय पहले ही एलएएचडीसी लेह के चुनावों में भाजपा को नुकसान झेलना पड़ा। अगर राज्यपाल शाासन के दौर में लद्दाख को एक अलग प्रशासकीय इकाई बनाया जाता है तो इससे भाजपा किसी हद तक स्थानीय मतदाताओं का अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब रह सकती है।
नेशनल कांफ्रेंस-पीडीपी भी नहीं कर पाएगी ज्यादा विरोध :लद्दाख को एक अलग प्रशासकीय इकाई का दर्जा देने का नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी भी ज्यादा विरोध नहीं कर पाएगी। अगर करेंगी तो दोनों को वहां सियासी नुकसान झेलना पड़ेगा। दोनों का कारगिल जिले की दोनों विधानसभा सीटों और लेह जिले की एक विधानसभा सीट पर अच्छा प्रभाव है। इसके अलावा कारगिल पर्वतीय विकास परिषद के कार्यकारी मुख्य पार्षद नेशनल कांफ्रेंस से जुड़े फिरोज खान ही हैं। यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि वर्ष 2004 में एलयूटीएफ के समर्थन पर लद्दाख प्रांत के सभी उम्मीदवार निर्विरोध ही राज्य विधानसभा में पहुंचे थे।