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Jammu Kashmir: जानिए क्यों मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ना है पीडीपी-नेशनल कांफ्रेंस की मजबूरी, दोनों पार्टियों ने दिया यह तर्क

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आ चुकी है और अब उम्मीद की जा रही है कि नवंबर में चुनाव हो सकते हैं।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Thu, 19 May 2022 03:03 PM (IST)Updated: Thu, 19 May 2022 03:03 PM (IST)
Jammu Kashmir: जानिए क्यों मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ना है पीडीपी-नेशनल कांफ्रेंस की मजबूरी, दोनों पार्टियों ने दिया यह तर्क
महबूबा मुफ्ती ने सुझाव दिया है कि पीपुल्स एलायंस फार गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) को संयुक्त रूप से चुनाव लड़ना चाहिए।

श्रीनगर, नवीन नवाज । जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव की आहट महसूस होते ही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने सुझाव दिया है कि पीपुल्स एलायंस फार गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) को संयुक्त रूप से चुनाव लड़ना चाहिए। नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इसका समर्थन किया है। दोनों पार्टियां तर्क दे रही हैं कि पांच अगस्त 2019 को लागू जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को लेकर केंद्र सरकार के एजेंडे को नाकाम बनाने के लिए यह जरूरी है, लेकिन हकीकत यह है कि मिलकर चुनाव लड़ना नेकां-पीडीपी की मजबूरी है। अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद जिस तरह से बदलाव देखा जा रहा है, ऐसे में मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में अकेले चुनाव लड़कर दोनों दल जम्मू कश्मीर की सियासत में पूरी तरह हाशिए पर खिसक सकते हैं।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आ चुकी है और अब उम्मीद की जा रही है कि नवंबर में चुनाव हो सकते हैं। नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स कांफ्रेंस, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, माकपा और भाजपा के लिए यह चुनाव बहुत मायने रखते हैं। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के लिए यह चुनाव करो या मरो की स्थिति जैसे हैं। दोनों का राजनीतिक अस्तित्व इन चुनावों पर बहुत निर्भर करता है।

डीडीसी चुनाव में भाजपा ने अकेले 75 सीटें जीती थीं :

जम्मू कश्मीर के राजनीतिक मामलों के जानकार आसिफ कुरैशी ने कहा कि पीएजीडी विधानसभा चुनाव मिलकर ही लड़ेेगा, लेकिन यह वर्ष 2020 में हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनावों की तरह असर छोड़ेगा, यह कहना मुश्किल है। उस समय पीएजीडी में पीपुल्स कांफ्रेंस भी शामिल थी, लेकिन आज वह इससे अलग हो चुकी है। उस समय कई जगह कांग्रेस ने भी पीएजीडी का साथ दिया था, विधानसभा चुनाव में वह क्या कोई सीट देगी, यह देखना पड़ेगा। डीडीसी के चुनावों में भाजपा ने अकेले अपने दम पर 75 सीटें जीती थीं, जबकि पीएजीडी के घटकों में शामिल नेकां ने 67, पीडीपी ने 27, पीपुल्स कांफ्रेंस ने आठ, माकपा ने पांच और जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट ने तीन सीटों जीती थीं।

सीटों के तालमेल पर फंसा है पेंच :

आसिफ कुरैशी ने कहा कि नेकां, पीडीपी, पीपुल्स कांफ्रेंस व उनके सहयोगी दलों ने पीएजीडी के बैनर तले चुनाव लड़ा था और लोगों से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के खिलाफ अपने एजेंडे के नाम पर वोट मांगे थे। विधानसभा चुनाव में भी यही इनका एजेंडा होगा। लेकिन परिसीमन के बाद नेकां और पीडीपी के परंपरागत वोटरों के प्रभाव वाले इलाकों का स्वरूप बदल गया है। इसलिए नेकां और पीडीपी मिलकर ही चुनाव लड़ेंगे, यह तय माना जा रहा है। जो संकेत मिल रहे हैं वह सिर्फ सीटों के तालमेल पर पेंच फंसा हुआ है।

महबूबा के कई पुराने सिपहसालार इस समय अन्य दलों में :

कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि महबूबा के पास इस समय पीडीपी में अब्दुल रहमान वीरी और गुलाम नबी लोन हंजूरा के अलावा कोई ऐसा चेहरा नहीं जिसकी जीत पर दांव लगाया जा सकता हो। उनके जितने भी पुराने सिपहसालार थे, वे सभी इस समय नेकां, कांग्रेस और जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी में हैं। इसलिए नेकां के साथ मिलकर पीएजीडी के बैनर तले चुनाव लडऩा महबूबा की मजबूरी है। नेकां के लिए भी पीडीपी का साथ जरूरी है, तभी वह कश्मीर संभाग में जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, पीपुल्स कांफ्रेंस जैसे दलों की मौजूदगी में कुछ अच्छा करने की सोच सकती है। परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा की कुल 90 सीटें हो गई हैं। इनमें 47 कश्मीर और 43 जम्मू संभाग में हैं।

मुस्लिम वोट पर नजर :

नेकां के एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम न छापने पर कहा कि पांच अगस्त 2019 के बाद जम्मू संभाग में नेकां और पीडीपी के गैर मुस्लिम मतदाताओं में से अधिकांश भाजपा और कांग्रेस के तरफ खिसक चुके हैं। मुस्लिम वोट न बंटे, इसलिए नेकां-पीडीपी का मिलकर चुनाव लडऩा जरूरी है, अन्यथा भाजपा को रोकना मुश्किल होगा। 


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