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Jammu Kashmir: GI Tag से फूले-फलेगा किश्तवाड़ का लोई कंबल कारोबार, जानें क्‍या हैं खासियत

किश्‍तवाड़ के कंबल की खासियत है कि आप बर्फ के बीच खड़े हो जाओ और यह तिरपाल की तरह काम करेगा और पानी अंदर नहीं जाएगा। ठंड को रोकने के लिए यह कंबल काफी कारगर सिद्ध होता था लेकिन धीरे-धीरे पशमीना के कंबल ने इसके बाजार को कम कर दिया।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 07:35 AM (IST)
Jammu Kashmir: GI Tag से फूले-फलेगा किश्तवाड़ का लोई कंबल कारोबार, जानें क्‍या हैं खासियत
किश्‍तवाड़ के पाडर क्षेत्र में लोई बुनता एक कारीगर।

किश्तवाड़, बलबीर सिंह जम्वाल : किश्तवाड़ के लोई कंबल को जीआइ टैग दिलाने के फैसले से जिले के लोगों में खुशी की लहर है। पिछले कई वर्ष से ठप पड़े पाडर इलाके के लोई कंबल का कारोबार फिर बढऩे की उम्मीद है। अपने साइज और विशेष बनावट के कारण पाडर इलाके का यह देसी कंबल दूर-दूर तक मशहूर है।

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इस कंबल की खासियत है कि अगर एक कंबल लेकर आप बर्फ के बीच खड़े हो जाओ तो तिरपाल की तरह काम करेगा और पानी अंदर नहीं जाएगा। ठंड को रोकने के लिए यह कंबल काफी कारगर सिद्ध होता था, लेकिन धीरे-धीरे इलाके के कंबल कम और पशमीना के ज्यादा कंबल बढऩे लगे। लोगों की लोई कंबल में दिलचस्पी कम होने लगी। अन्य राज्यों से रेडीमेड कंबल इलाके में पहुंचने लगे, जो कि बहुत ही मुलायम और गर्म भी साबित होने लगे। इसके चलते इलाके में लोई कंबल का कारोबार धीरे-धीरे कम होने लगा।

किश्तवाड़ के पाडर क्षेत्र में जिस घर में ज्यादा कंबल होते थे, उसे इलाके का सबसे अमीर व्यक्ति समझा जाता था। लगभग हर घर में यह देसी कंबल होता था। सर्दियों में बर्फबारी के बीच यह कंबल काफी राहत प्रदान करता था। यहां बता दें कि सर्दियों में पाडर क्षेत्र लगभग बर्फ से ढका रहता है। ऐसे में यह कंबल लोगों को बर्फबारी में काफी राहत उपलब्‍ध करवाता था।

यह कंबल कम से कम 6 या 7 मीटर लंबा बनाया जाता है। इसमें रेशमी धागे के साथ ऊन का भी इस्तेमाल किया जाता था। इस कंबल को दोहरा करके ओढ़ा जाता है। कंबल बनाने के लिए खड्डी (हथकरघा) आज भी बहुत से घरों में हैं और अभी भी कई लोग कंबल का काम कर रहे हैं। किसी जमाने में जब कोई दुल्हन घर से विदा होती थी, उसे दहेज में ज्यादा से ज्यादा कंबल दिए जाते थे, लेकिन वह चलन भी धीरे-धीरे समाप्त होने लगा है। इसके बावजूद किश्तवाड़ जिले के हैंडीक्राफ्ट विभाग ने इस कारोबार को चलाने के लिए अपनी जद्दोजहद जारी रखी है।

विभाग ने किया है जीआइ टैग के लिए आवेदन

अभी हाल ही में किश्तवाड़ के लोई कंबल को जीआइ टैग मिलने की संभावना बनी है। हैंडीक्राफ्ट विभाग की ओर से आवेदन किया गया है। अगर किश्तवाड़ को लोई कंबल बनाने का जीआइ टैग मिल जाता है तो यहां का लोई कंबल दूर-दूर तक प्रदर्शनी में शामिल किया जाएगा और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसको उतारा जाएगा। ऐसा करने से हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा। इसका प्रचार न होने के कारण किश्‍तवाड़ी कंबल और लोई का कारोबार लगभग ठप हो गया।

इस बारे में जानकारी मिलते ही पाडर के लोग उत्‍साहित हैं। सोल निवासी रंजीत कुमार का कहना है कि हमारे इलाके में आज भी कंबल बनाने का कारोबार कई घरों में चल रहा है। उनकी रोजी-रोटी भी इसी पर निर्भर है। अगर इसे कहीं राष्ट्रीय बाजार में बेचा जाए तो यहां के लोगों को अच्छा सहारा मिलेगा और इलाके का नाम भी रोशन होगा। इसके अलावा युवा भी इस पेशे से जुड़ेंगे।

लोगों को कर रहे प्रेरित
हम पाडर के लोई और कंबल को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय कर रहे हैं। इस कार्य में लगे कारीगरों को ऋण देने की योजना है। इस पर सब्सिडी का भी प्रावधान है। विभाग की टीमें गांव-गांव जाकर प्रचार कर रही हैं कि आप ऊन को लेकर लोई कंबल बनाने का कारोबार करें, जिसे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार में ले जाने की विभाग कोशिश करेगा। जीआइ टैग के लिए जो भी औपचारिकताएं होंगी, वह हमारे विभाग द्वारा पूरी की जाएंगी। -सतीश राणा, जिलाधिकारी, हैंडीक्राफ्ट विभाग


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