Move to Jagran APP

मोहम्मद सुबहान को उम्मीद है, यह बुरा समय बीतेगा और कश्मीर में उनके अरमानों के दीये फिर जगमगा उठेंगे

लोग हमारे बनाए दीये जलाकर कश्मीर में अमन की दुआ मांगते और मेरा परिवार खुदा का शुक्र अदा करता कि अगले साल तक घर पर चूल्हा जलाने का प्रबंध हो गया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 29 May 2020 11:52 AM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 11:52 AM (IST)
मोहम्मद सुबहान को उम्मीद है, यह बुरा समय बीतेगा और कश्मीर में उनके अरमानों के दीये फिर जगमगा उठेंगे
मोहम्मद सुबहान को उम्मीद है, यह बुरा समय बीतेगा और कश्मीर में उनके अरमानों के दीये फिर जगमगा उठेंगे

श्रीनगर, रजिया नूर। अपने घर के प्रांगण में बैठे 76 वर्षीय कुम्हार मोहम्मद सुबहान चक्की पर चढ़ाई गीली मिट्टी को धीरे-धीरे एक गुल्लक का आकार दे रहे हैं। मोहम्मद सुबहान के बूढ़े हाथों में वह जोश नजर नहीं आ रहा, जो पहले नजर आता था। खास कर तब जब वह इन दिनों दीये को आकार दिया करते थे। दरअसल, मोहम्मद सुबहान और उनका पूरा परिवार हर साल कश्मीरी पंडितों के सबसे बड़े माता क्षीर भवानी के मेले के लिए दीये तैयार करता है। इसकी तैयारी दो महीने पहले शुरू हो जाती थी और इससे होने वाली आमदनी से पूरे साल परिवार की गुजर-बसर होती थी। लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते जारी लॉकडाउन के कारण इस बार 30 मई को गांदरबल के तुलमुला इलाके में स्थिति माता क्षीर भवानी के मंदिर में लगने वाला मेला स्थगित हो चुका है। बावजूद इसके मोहम्मद सुबहान ने कहा कि मेला स्थगित होने से मुझे नुकसान तो बहुत हुआ, लेकिन मुझे उम्मीद है कि संकट का यह समय बीत जाएगा। सब कुछ फिर से सामान्य हो जाएगा और अगले साल मेरे अरमानों के बुझे दिये फिर जगमगा उठेंगे।

loksabha election banner

गांदरबल के तुलमुला इलाके में स्थित मंदिर से आठ किलोमीटर दूर वाकूरा गांव के रहने वाले बुजुर्ग मोहम्मद सुबहान ने कहा कि मैं हर साल मेले पर 10 से लेकर 15 हजार मिट्टी के दीये तैयार करता था। मेले से दो महीने पहले ही मेरा परिवार दीये बनाने में जुट जाता था। हम दीये तैयार कर दुकानदारों को बेचते थे। अच्छा मुनाफा भी हो जाता था। उन्होंने कहा कि मिट्टी के बर्तन बनाना हमारा खानदानी पेशा है। हालांकि मिट्टी के चीजों की मांग कम होने से इस पेशे से जुड़े लोगों ने यह काम छोड़ दिया, लेकिन मेरा परिवार इस पेशे से जुड़ा रहा। यह हमारी आमदन का एक मात्र जरिया है। पूरे साल में बस क्षीर भावामी मेले के मौके पर ही मेरे काम का सीजन होता है और मेरे घर की आमदन की 70 प्रतिशत कमाई इस मेले पर निर्भर है। हमें हर साल इस मेला का बेसब्री का इंतजार रहता है।

लोग हमारे बनाए दीये जलाकर कश्मीर में अमन की दुआ मांगते और मेरा परिवार खुदा का शुक्र अदा करता कि अगले साल तक घर पर चूल्हा जलाने का प्रबंध हो गया। लेकिन इस साल तो कोरोना वायरस ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इस बार भी हमने दो महीने पहले दीये बनाने की तैयारी शुरू कर दी थी। मार्च के पहले हफ्ते में मैंने दीओं के लिए मिट्टी गोंदनी शुरू कर दी थी, लेकिन एक-एक कर कोरोना के बढ़ते मरीजों की संख्या ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब मैं और मेरा परिवार घोली हुई मिट्टी से दीओं के बजाए मिट्टी के बर्तन गुल्लक, थाली, हांडी, करोटी आदि बना रहा है, ताकि चार पैसों का बंदोबस्त हो सके।

विस्थापित कश्मीरी पंडित जलाते हैं हजारों दीपकः क्षीर भवानी मेले में हर साल देश-विदेश से हजारों विस्थापित कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग गांदरबल में माता के मंदिर में जुटते हैं। यहां कश्मीरी पंडित हजारों दीये जलाकर कश्मीर से अपने जुड़ाव को महसूस कर वापसी की कामना करते हैं। इस मेले से कई स्थानीय लोगों का भी रोजगार जुड़ा है। मेला नहीं होने से उनमें मायूसी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.