कश्मीर में पूर्वजों को तर्पण देंगे माटी से बिछड़े पंडित, हरमुख-गंगबल यात्रा शुरू, आतंकवाद के कारण बंद हो गई थी यात्रा
यह झील हरमुख की पहाडिय़ों के बीच समुद्रतल से 14500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। झील तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 36 किलोमीटर पैदल चलना है।
श्रीनगर, नवीन नवाज। अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में व्याप्त अनिश्ििचतता के माहौल और धर्मांध जिहादियों के डर को कश्मीरी पंडितों ने आखिरकार ठेंगा दिखाया। आतंकवाद के गढ़ रहे जिला शोपियां के हरमुख-गंगबल झील में पूर्वजों को तर्पण देने कश्मीरी पंडित कश्मीर पहुंच गए हैं। तीन दशक पहले पंडित अपनी माटी से बिछड़े और अब यहां पहुंच कद यह संदेश दे रहे हैं कि उनके पूर्वज इसी माटी में रचे बसे थे। वे उनके तन मन में है। वार्षिक यात्रा तीन दिन तक चलेगी।
4500 फीट ऊंचाई पर स्थित है झील
यह झील हरमुख की पहाडिय़ों के बीच समुद्रतल से 14500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। झील तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 36 किलोमीटर पैदल चलना है। श्रद्धालुओं की सुरक्षा को यकीनी बनाने के लिए प्रशासन ने पूरे मार्ग पर सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त किया है। राज्य पुलिस के अधिकारी के नेतृत्व में सुरक्षाबलों का दस्ता साथ ही चलेगा। पुलिस उपाधीक्षक एस ताहिर अमीन ने श्रद्धालुओं को हरी झंडी दिखा गंगबल यात्रा के लिए रवाना किया।
छड़ी पूजा का अनुष्ठान संपन्न
गंगबल झील को कश्मीरी पंडितों के लिए बहुत पवित्र माना जाता है। पंडित इस झील पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा और श्राद्ध तर्पण करते हैं। यात्रा को शुरू करने से पूर्व श्रद्धालुओं ने वैदिक मान्यताओं के मुताबिक, कंगन स्थित नारनाग शिव मंदिर में छड़ी पूजा का अनुष्ठान संपन्न किया।
आठवीं शताब्दी में बनवाया था मंदिर
इतिहासकारों का दावा है कि यह मंदिर कायस्थ नाग वंश के सम्राट ललितादित्य ने आठवीं शताब्दी में बनवाया था। कश्मीरी पंडितों के मुताबिक, यह मंदिर पौराणिक काल से है।
तीर्थयात्रा में 36 श्रद्धालु शामिल
हरमुख गंगा(गंगबल) ट्रस्ट (एचजीजीटी) और आल पार्टी माइग्रेंट कोऑर्डिनेशन कमेटी (एपीएमसीसी) के बैनर तले शुरू हुई तीर्थयात्रा में 36 श्रद्धालु शामिल हैं। यह यात्रा तीन दिन तक चलेगी। एपीएमसीसी के अध्यक्ष विनोद पंडित ने बताया कि हरमुख गंगबल यात्रा पंडितों की परंपरा और धार्मिक मान्यताओं का सदियों से एक अभिन्न अंग रही है। बाद में किन्हीं कारणों से यह परंपरा भंग हो गई। गंगबल के लिए श्रद्धालुओं का समूह के रूप में जाना बंद हो गया था। हम लोगों ने वर्ष 2009 में इस तीर्थयात्रा को लगभग सदी बाद पुन : बहाल किया है। उसके बाद से यह यात्रा हर साल हो रही है। जिला गांदरबल प्रशासन और पुलिस इस यात्रा को सुरक्षित और विश्वासपूर्ण माहौल में संपन्न कराने के लिए हर संभव सहयोग प्रदान कर रहा है। हरमुख की पहाडिय़ों के बीच स्थित गंगबल झील को हम भगवान शिव का निवास मानते हैं। झील पर हम भगवान शिव की पूजा करेंगे, कश्मीर और पूरे राष्ट में शांति,सुरक्षा, सौहार्द और खुशहाली की बहाली की कामना करेंगे।
3.5 किलोमीटर लंबी है झील
गंगबल झील करीब 3.5 किलोमीटर लंबी, करीब 500 मीटर चौड़ी और 80 मीटर गहरी है। कश्मीरी पंडित इसी झील में अपने दिवंगत परिजनों की अस्थियों को