Jammu Kashmir: कश्मीरी पंडितों ने घाटी की पांच विधानसभा सीटों के लिए मांगा आरक्षण
घाटी से पलायन कर पिछले 30 वर्षों से विस्थापित बने कश्मीरी पंडितों अब राजनीति में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते हैं। इन कश्मीरी पंडितों का कहना है कि कश्मीरी पंडितों की आवाज इसलिए नहीं सुनी जा रही क्योंकि उनको कोई प्रतिनिधि विधानसभा या लोकसभा में नहीं है।
जम्मू, जागरण संवाददाता । घाटी से पलायन कर पिछले 30 वर्षों से विस्थापित बने कश्मीरी पंडितों अब राजनीति में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते हैं। इन कश्मीरी पंडितों का कहना है कि कश्मीरी पंडितों की आवाज इसलिए नहीं सुनी जा रही क्योंकि उनको कोई प्रतिनिधि विधानसभा या लोकसभा में नहीं है। इसलिए अब कश्मीरी पंडित राजनीति में अपनी भागीदारी पक्की करने में जुट गए हैं। यह लोग अब केंद्र सरकार से घाटी की पांच विधानसभा सीटों को कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित किए जाने की मांग कर रहे हैं। खासकर उन विधानसभा सीटों को आरक्षित करने की बात कर रहे हैं, जहां कश्मीरी पंडितों अधिकतम वास रहा है। वहीं जम्मू कश्मीर की लोकसभा व विधानसभा की भी एक एक सीट कश्मीरी पंडितों के लिए रखने के लिए कहा है।
कश्मीरी पंडितों का कहना है कि पिछले 30 वर्षों से कश्मीरी पंडितों की घाटी वापसी नहीं हो पाई। हालांकि कश्मीरी पंडित अपने दूर दराज के विधानसभा क्षेत्र के लिए जम्मू, ऊधमपुर विस्थापित शिविरों में बनाए गए मतदान केंद्रों पर जाकर वोट डालते हैं। मगर उनको मलाल यह है कि उनको पता ही नहीं रहता कि कौन-कौन उम्मीदवार चुनाव में हैं और कश्मीरी पंडितों के लिए उनके दिमाग में क्या है।
पनुन कश्मीर के प्रधान विरेंद्र रैना का कहना है कि कश्मीरी पंडित जिसे वोट डालते हैं, वह बाद में उनकी आवाज ही नही उठाता। लेकिन अब हम चाहते हैं कि कश्मीरी पंडितों के लिए विधानसभा की कुछ सीटें आरक्षित की जाए। ताकि यहां से जीतने वाले कश्मीरी पंडित प्रतिनिधि कम से कम कश्मीरी पंडितों की विधानसभा में आवाज तो बुलंद कर सकें। इसलिए कश्मीरी पंडित अब राजनीति में आरक्षण चाहते हैं। वहीं कुछ कश्मीरी पंडितों ने मांग की है कि परिसीमन सही तरीके से कराया जाए, इससे भी भेदभाव की राजनीति खत्म होगी। जम्मू क्षेत्र अपने क्षेत्रफल व आबादी के हिसाब से बड़ा है लेकिन विधानसभा सीटें घाटी में ज्यादा है। इसलिए सही तरीके से परिसीमन होगा तो भेदभाव भी खत्म होगा।