कुरेदा जो जख्म तो छलक पड़ा दर्द: कश्मीरी पंडितों ने कहा- जब किसी पेड़ को उखाड़कर दूसरी जगह लगाया जाए तो क्या होगा
कश्मीरी पंडितों ने राजनयिकों को सुनाई व्यथा- आप ही बताएं जब किसी पेड़ को उखाड़कर दूसरी जगह लगाया जाए तो क्या होगा। इसलिए हम अपनी जड़ों (कश्मीर) में लौटना चाहते हैं।
जगटी (जम्मू), नवीन नवाज। 'यह रैन बसेरा है, घर नहीं। हमारा सिर्फ कत्ल नहीं हुआ, हमारा वजूद मिटाया गया है। आप ही बताएं, जब किसी पेड़ को उखाड़कर दूसरी जगह लगाया जाए तो क्या होगा। इसलिए हम अपनी जड़ों (कश्मीर) में लौटना चाहते हैं। यह तभी होगा जब हमारी संस्कृति, हमारी मान्यताएं, हमारे रस्मो-रिवाज पर किसी की पाबंदी न हो। किसी के दिल में इस्लामिक आतंकवाद का खौफ न हो, रिवर्सल ऑफ जिनोसाइड हो। हमें रिलीफ नहीं चाहिए। सभी विस्थापित कश्मीरी पंडितों को वादी में किसी एक ही जगह बसाया जाए, ताकि हम सुरक्षा-शांति और विश्वास की सांस ले सकें।'
यह बात जम्मू कश्मीर के हालात का जायजा लेने आए 15 देशों के राजनयिकों के समक्ष एक विस्थापित कश्मीरी पंडित ने जरूर कही, लेकिन यह दर्द तीन दशकों से अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रह गए कश्मीरी पंडित समुदाय के प्रत्येक नागरिक का था, जो पुराने जख्म कुरेदने पर छलक पड़ा। दो दिवसीय दौरे पर आए राजनयिक शुक्रवार को दिल्ली लौटने से पहले जम्मू से करीब 17 किलोमीटर दूर जगटी माइग्रेंट कॉलोनी में पहुंचे। इस कॉलोनी में लगभग 4200 विस्थापित कश्मीरी पंडित और कुछ विस्थापित सिख परिवार रहते हैं।
फ्री कश्मीर के झूठे पोस्टर का पोस्टर से दिया जवाब :
राजनयिक कड़ी सुरक्षा के बीच करीब तीन बजे कड़ी जगटी पहुंचे, लेकिन सुबह सवेरे ही बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित जगटी स्कूल के पास बने एक सामुदायिक भवन में जमा होने लगे थे। इस बीच, दो आदमी हाथों में पोस्टर लिए सामुदायिक भवन के बाहर पहुंच गए। उन्हें अधिकारियों ने भीतर जाने को कहा, लेकिन उन्होंने कहा कि वह बाहर अपने पोस्टरों संग खड़े रहेंगे और बताएंगे कि जेएनयू या मुंबई में फ्री कश्मीर का पोस्टर झूठा है, असली पोस्टर हमारा है। पोस्टर लिए ये दोनों व्यक्ति बाप-बेटा थे। कौल ने कहा कि हम उसी त्राल के रहने वाले हैं, जिसे आतंकियों की नर्सरी कहते हैं। मेरे साथ मेरा बेटा प्रणव है। कश्मीर मसले और कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का कारण सिर्फ इस्लामिक आतंकवाद है। जब तक यह खत्म नहीं होगा, कश्मीरी पंडित कश्मीर में बेखौफ नहीं बस सकते। प्रणव ने कहा कि जो लोग जेएनयू और मुंबई में फ्री कश्मीर के पोस्टर लहरा रहे हैं, अगर वह सही मायनों में कश्मीरियों के हमदर्द हैं तो उनके पोस्टर पर लिखा होना चाहिए था फ्री कश्मीर फ्राम इस्लामिक टेरेरिज्म। हमें कश्मीर से निकालने वाले तत्व अल्लाह हो अकबर और निजाम ए मुस्तफा के नारे लगाते थे।35 मिनट तक चली बैठक :जगटी में लगभग 35 मिनट तक विस्थापित कश्मीरियों और विदेशी मेहमानों के बीच बैठक चली। इस दौरान किसी ने मेमोरेंडम सौंपा तो किसी ने पूछा कि आखिर आज तक कश्मीरी पंडितों को क्यों नहीं सुना गया। कश्मीर से उजड़े सिख समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे सरदार विरेंद्र ने कहा कि यह मसला इस्लामिक आतंकवाद का है। इसलिए आतंकवाद को समाप्त किया जाना जरूरी है।
हमारा जातीय नरसंहार हुआ :
पनुन कश्मीर के भूषण लाल ने राजनयिकों से कहा कि हमारा विस्थापन-पलायन नहीं हुआ है, हमारा जातीय नरसंहार, जिनोसाइड हुआ है। हमारी पूरी पहचान, संस्कृति को नष्ट किया गया है। हमारी हालत तभी सुधरेगी जब रिवर्सल ऑफ जिनोसाइड हो। यहां कोई नहीं रहना चाहता, सभी वापस कश्मीर जाना चाहते हैं, लेकिन एक ही जगह बसने की ख्वाहिश के साथ। इस्लामिक आतंकवाद को रोकना होगा।
राहत-सहायता नहीं, कश्मीर में घर चाहिए :
सुनील पंडिता ने बताया कि राजनयिकों ने मुझसे पूछा कि क्या मैं जम्मू कश्मीर का नागरिक हूं और मेरे साथियों को क्या चाहिए। मैंने कहा कि यह रोज-रोज की राहत-सहायता की परंपरा बंद होनी चाहिए। यहां हम अस्थायी तौर पर ही रह रहे हैं। हमें हमारा घर चाहिए और वह भी कश्मीर में, जहां हमारे पूर्वज रहते थे।
धर्मस्थलों के संरक्षण व अन्य मांगों का ज्ञापन सौंपा :
पूर्व एमएलसी अश्विनी कुमार चुरुंगु ने कहा कि मैंने अपने समुदाय की तरफ से राजनयिकों को ज्ञापन सौंपा है। इसमें कश्मीरी पंडितों के लिए एक सेटलाइट टाउनशिप बनाने पर जोर दिया है। हमने कश्मीरी पंडितों, सिखों व अन्य अल्पसंख्यकों पर कश्मीर में हुए अत्याचारों की जांच के लिए एक स्पेशल क्राइम ट्रिब्यूनल बनाने, पंडितों के सभी धर्मस्थलों के संरक्षण को यकीनी बनाने, जम्मू कश्मीर में पांच सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित रखने और कश्मीर को इस्लामिक आतंकवाद से मुक्त कराने की मांग की है।
पहली बार अहसास हुआ दुनिया को कश्मीरी पंडितों की फिक्र है :
बैठक स्थल से बाहर निकल रहे एल कौल ने कहा कि पहली बार अहसास हुआ है कि दुनिया को कश्मीरी पंडितों की कुछ फिक्र है। इससे लगता है कि अब कश्मीर मुद्दे पर होने वाली हर बातचीत में कश्मीरी पंडितों की आवाज भी शामिल होगी। पहले तो कश्मीर पर जब भी बात हुई, आजादी और जिहाद का नारा देने वालों की बात हुई, उन्हें ही कश्मीर का प्रतिनिधि समझा गया, जबकि हकीकत तो यह है कि असली कश्मीर तो कश्मीरी पंडितों से ही है। इस्लाम तो कश्मीरी में बहुत बाद में आया है।