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कश्मीरी पंडितों ने मांगा विधानसभा में चार सीटों का कोटा, सीटें आरक्षित नहीं होने पर नाराजगी

संजय गंजू ने परिसीमन आयोग द्वारा हाल पेश प्रस्तावित ड्राफ्ट का स्वागत किया जिसमें सात सीटें बढ़ाने की बात की गई है लेकिन कश्मीरी समाज को धक्का यह लगा है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा की एक भी सीट कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित नहीं की गई।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Fri, 24 Dec 2021 08:28 PM (IST)Updated: Fri, 24 Dec 2021 08:28 PM (IST)
कश्मीरी पंडितों ने मांगा विधानसभा में चार सीटों का कोटा, सीटें आरक्षित नहीं होने पर नाराजगी
30 साल से कश्मीरी पंडितों का अपना कोई प्रतिनिधि विधानसभा में नही होने से समाज को नुकसान हुआ है।

जम्मू, जागरण संवाददाता : यूथ आल इंडिया कश्मीरी समाज ने केंद्र सरकार से मांग की है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विस्थापित कश्मीरी पंडितों को चार सीटें दी जाएं और लोकसभा की एक सीट भी कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित की जाए। शुक्रवार को संवाददाता सम्मेलन में महासचिव संजय गंजू ने परिसीमन आयोग द्वारा हाल पेश प्रस्तावित ड्राफ्ट का स्वागत किया, जिसमें सात सीटें बढ़ाने की बात की गई है, लेकिन कश्मीरी समाज को धक्का यह लगा है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा की एक भी सीट कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित नहीं की गई।

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यह कश्मीरी पंडित पिछले 32 बरसों से दर बदर हो रहे हैं और विधानसभा में कश्मीरी पंडित समाज से आवाज उठाने वाला कोई प्रतिनिधि नही है। चूंकि परिसीमन आयोग ने अभी फाइनल रिपोर्ट भेजनी है, इसलिए कश्मीरी पंडितों की गुजारिश है कि इस रिपोर्ट में कश्मीरी पंडितों के लिए विधानसभा व लोकसभा सीटें आरक्षित की जाएं। जम्मू कश्मीर विधानसभा में कश्मीरी पंडितों को चार सीटें मिलनी चाहिए। संजय गंजू ने कहा कि 30 साल से कश्मीरी पंडितों का अपना कोई प्रतिनिधि विधानसभा में नही होने से समाज को नुकसान हुआ है। कश्मीरी पंडितों के कई मसलों का हल नही निकल पाया है।

कश्मीरी पंडितों की विधानसभा में आवाज गूंज नहीं पाई है। इसलिए विधानसभा व लोग सभा में कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व होना ही चाहिए। संजय गंजू ने वहीं केंद्र सरकार से कहा कि कश्मीरी पंडितों की दिक्कतों को हल करने की दिशा में भी प्रयास होने चाहिए। 1990 में घाटी से पलायन को मजबूर हुए कश्मीरी पंडित आज भी दर बदर हाे रहे हैं, लेकिन इन लोगों की आज भी घर वापसी नहीं हो पाई। जो कश्मीरी पंडित आज विस्थापित बनकर शरणार्थी कालोनियों में रह रहे हैं, उनकी दिक्कतों को दूर नहीं किया जा रहा। कश्मीरी युवा पंंडितों के पास आज रोजगार नहीं है। इन सब बातों के हल के लिए विधानसभा में कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधि होना आज के समय की जरूरत है।


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