निष्कासन दिवस पर छलका घाटी से निष्कासन का दर्द
निष्कासन दिवस कश्मीरी पंडितों ने राज्यपाल भवन के बाहर दिया धरना
जागरण संवाददाता, जम्मू : घाटी से पलायन कर जम्मू क्षेत्र में गुजर-बसर कर रहे कश्मीरी पंडितों ने 30वां निष्कासन दिवस काला दिवस के तौर पर मनाया। उन्होंने घाटी वापसी के लिए केंद्र सरकार से जल्द से जल्द नीति बनाने पर बल दिया। आल स्टेट कश्मीरी पंडित कांफेंस के बैनर तले विभिन्न कश्मीरी पंडित संगठन के कार्यकर्ताओं ने रविवार को राज्यपाल भवन के बाहर धरना-प्रदर्शन किया और अपनी पीड़ा को उजागर किया। उन्होंने उन तत्वों के खिलाफ नारेबाजी की, जिनके कारण उनको घाटी से निकलना पड़ा था।
कश्मीरी पंडितों ने कहा कि आज ही के दिन 1990 में कश्मीरी पंडितों का घाटी से बड़े तौर पर पलायन हुआ था, लेकिन लंबे समय बाद भी पंडितों की घाटी वापसी नहीं हो पाई है। धरने में विभिन्न पोस्टर, बैनर लिए कश्मीरी पंडितों ने घाटी में एक ही जगह होम लैंड बनाने की मांग की। उन्होंने कहा कि कश्मीरी सम्मान के साथ घाटी जाना चाहता है। जिन कश्मीरी पंडितों की घाटी की जमीनें हड़प ली गई हैं, उसे उनको वापस दिलाया जाए। घाटी में स्थित मंदिरों के संरक्षण के लिए मंदिर बिल पारित कराया जाए। प्रदर्शन के दौरान कश्मीरी पंडितों ने आज ही के दिन घाटी में घटे वाक्य को याद कर शहादत प्राप्त करने वाले कश्मीरी पंडितों को श्रद्धांजलि दी। नारे लगाते हुए कश्मीरी पंडितों ने रोजगार देने, उनकी मासिक राहत राशि बढ़ाने की भी मांग की। प्रदर्शन में कुलदीप रैना, बीएल भट्ट, एमके जलाली, आरएल भट्ट,आरके भट्ट, रवि रैना, सुनील पंडित भी उपस्थित थे। बाद में कश्मीरी पंडितों के शिष्टमंडल ने ज्ञापन पत्र की एक प्रति उपराज्यपाल को भी भेजी।
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छह साल से मोदी सत्ता में, फिर क्यों नहीं हो रही घाटी वापसी
आल स्टेट कश्मीरी पंडित कांफ्रैंस के प्रधान एडवोकेट रविद्र रैना ने कहा कि पलायन के तीस साल पूरे हो चुके हैं, अनुच्छेद 370 भी जा चुका है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता पिछले छह साल से बरकरार हैं, मगर इसके बाद भी अभी तक कश्मीरी पंडितों की घाटी वापसी की नीति आज तक नही बन पाई है। अब तो सरकार को कश्मीरी पंडितों की घाटी वापसी को अंतिम रूप देना चाहिए। इसमें देरी किसी भी हाल से स्वीकार नहीं की जा सकती। इन कश्मीरी पंडितों के साथ आज इंसाफ किए जाने की जरूरत है।