पिता को कोरोना के जबड़े से खींच लाया कश्मीर का बेटा, डॉक्टर भी बोले- नजीर पेश कर गया पिता-पुत्र का प्यार
अब्दुल खालिक ने कहा बार बार पॉजिटिव आने के बाद मैंने जीने की उम्मीद छोड़ दी थी। बेटे और डॉक्टरों ने हौसला बढ़ाया। डॉक्टरों की हमदर्दी और बेटे के प्यार ने हिम्मत पैदा की।
श्रीनगर, रजिया नूर। कोरोना से जारी जंग के बीच कश्मीर के एक पिता-पुत्र का अटूट प्यार और के लिए भी प्रेरणा बना है। रिश्ता ऐसा कि बेटा अपने पिता को कोरोना जैसे दानव’ के जबड़े से बाहर खींच लाया है। कश्मीर का हर आम और खास पिता-पुत्र के प्रेम को सलाम कर रहा है। दरअसल सऊदी अरब में उमरा करके लौटने पर दोनों किसी के संपर्क में आने से संक्रमित पाए गए। एक ही अस्पताल में इलाज होने लगा। बेटा स्वस्थ हो गया, लेकिन वह घर तब तक नहीं गया जब तक पिता ठीक नहीं हुए। जान दांव पर लगा अस्पताल में पिता की देखभाल में जुटा रहा। पिता की रिपोर्ट चार बार पॉजीटिव आ चुकी थी। रमजान माह में दुआ, डॉक्टरों और बेटे की देखभाल ने ऐसा चमत्कार किया कि अगली रिपोर्टे नेगेटिव आने लगी। छुट्टी मिलने पर अस्पताल प्रशासन ने भव्य तरीके से दोनों की विदाई की।
पिता-पुत्र श्रीनगर के बेमिना इलाके के हैं। सऊदी अरब से उमरा करने के बाद दोनों उसी फ्लाइट से श्रीनगर आए थे जिसमें श्रीनगर के खानयार की 65 वर्षीय महिला (वादी में कोरोना का पहला शिकार) थी। पिता-पुत्र की जांच के बाद टेस्ट पॉजिटिव आए। श्रीनगर के जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल अस्पताल में 25 मार्च को भर्ती कराया। जांच में बेटे का टेस्ट नगेटिव आया। किडनी की बीमारी से पहले ग्रस्त पिता का टेस्ट चार बार पॉजिटिव आता रहा। कुछ दिन और रखने के बाद अस्पताल प्रशासन ने बेटे को छुट्टी दे दी, लेकिन वह घर जाने के बजाए पिता की देखभाल करने पर अड़ा रहा। पुत्र के पिता के प्रति प्यार ने प्रशासन को झुका दिया।
रोते हुए मां कहती थीं, अब्बा को बचा लेनाः 30 वर्षीय वासिक (बदला हुआ नाम) ने कहा कि मां सहित परिवार के अन्य सदस्य भी क्वारंटाइन किए गए थे। रोज मां से बात होती। वह रोकर कहती थी अब्बा का ख्याल रखना। वह पहले ही किडनी की बीमारी से परेशान हैं। मैंने उसी दिन तय कर दिया कि घर आएंगे तो दोनों साथ आएंगे। अस्पताल में भर्ती होने के बाद पहले 15 दिन बाद दोबारा टेस्ट हुए। मेरा टेस्ट नेगेटिव और अब्बा का पॉजिटिव आया। 48 घंटे बाद टेस्ट फिर रिपीट हुए। मेरा ओके, पर अब्बा का पॉजिटव आया। डॉक्टरों ने मुङो अस्पताल से डिस्चार्ज किया। मैं मायूस था कि बार बार टेस्ट पॉजिटव क्यों आ रहा है। मैंने डॉक्टरों से आग्रह किया कि वे मुङो अस्पताल में ही रहने दें ताकि मैं अब्बा के साथ रहूं। डॉक्टर नहीं माने। यह खतरनाक है। मैं फिर से संक्रमित हो सकता हूं। मैंने उन्हें यकीन दिलाया कि मैं दिशा निर्देशों का पालन करूं। मुङो अब्बा की खिदमत करने का मौका भी। अब्बा की देखभाल में डॉक्टर कोई कसर नही उठा रहे थे लेकिन उनकी आंखें अपनों की तलाश में रहती। जब मुङो देखते तो थोड़ा और हौसला मिलता। अब्बा ने मायूस होकर मुझसे कहा, वासिक मैं शायद इसी कोरोना से मरूंगा। मेरे बाद घर की जिम्मेदारी उठाना। मां को संभाल लेना। उस दिन मेरी आंखों में आंसू आ गए। पांचवी टेस्ट की रिपोर्ट आनी थी। उस पूरी रात मैंने अस्पताल के कारीडोर में अल्लाह से अब्बा के ठीक होने की दुआ मांगी। पांचवां टेस्ट नगेटिव आ गया। डॉक्टरों ने चमत्कार माना। लगातार टेस्ट होते रहे। सभी ठीक निकले। अब्दुल खालिक ने कहा, बार बार पॉजिटिव आने के बाद मैंने जीने की उम्मीद छोड़ दी थी। बेटे और डॉक्टरों ने हौसला बढ़ाया। डॉक्टरों की हमदर्दी और बेटे के प्यार ने हिम्मत पैदा की। सवा माह बाद अस्पताल से स्वस्थ हो घर वापस पहुंच गए हैं।
डॉक्टर बोले, नजीर पेश कर गया प्यारः डॉ. बिलकीस शाह कहती हैं कि पिता-पुत्र का प्यार एक नजीर पेश कर गया है। पांचवीं बार टेस्ट नगेटिव आने के बाद उन्हें छुट्टी मिल गई। उन्होंने कहा कि संक्रमित मरीज को अच्छी देखभाल और प्यार की जरूरत होती है जिससे उनका आत्म विश्वास और इच्छा शक्ति बढ़ जाती है जो इन्हें इस बीमारी से लडऩे के काबिल बनाती है।