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Target Killing In Kashmir : आतंकियों ने मजदूरों को नहीं कश्मीर की तरक्की को गोली मारी

Target Killing In Kashmir गैर कश्मीरी श्रमिकों के घाटी छोड़ने से कश्मीर के लोग भी खासे चिंतित हैं। वे इस बात को लेकर परेशान हैं कि कुशल श्रमिकों के कश्मीर छोड़ने से यहां जारी निर्माण कार्य से लेकर बढ़ई आदि के काम पर भी खासा असर पड़ेगा।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 19 Oct 2021 07:49 AM (IST)Updated: Tue, 19 Oct 2021 12:16 PM (IST)
Target Killing In Kashmir : आतंकियों ने मजदूरों को नहीं कश्मीर की तरक्की को गोली मारी
अक्टूबर में अब तक आतंकी कश्मीर में पांच श्रमिकों की हत्या कर चुके हैं।

जम्मू/श्रीनगर, जागरण टीम : श्रीनगर के टीआरसी चौक में एक सूमो टैक्सी में गैर कश्मीरी श्रमिकों के एक दल को बैठाने के बाद पेशे से ठेकेदार गुलजार अहमद ने कहा, आतंकियों ने सिर्फ मजदूरों को गोली नहीं मारी है, उन्होंने कश्मीर की तरक्की को गोली मारी है। मैं लोक निर्माण विभाग के कामों का ठेका लेता हूं। मैं हमेशा उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के श्रमिकों की सेवाएं लेता हूं। मेरे पास काम करने वाले 25 में से 17 मजदूर चले गए हैं। आठ को बड़ी मुश्किल से रोका है। अगर सभी श्रमिक चले गए और वापस नहीं आए तो कश्मीर में लगभग 90 फीसद निर्माण कार्य ठप हो जाएंगे।

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वहीं एक अन्य व्यवसायी निसार नक्शबंदी ने भी दुख भरे स्वर में कहा कि यहां आरा मिलों में करीब दो हजार गैर कश्मीरी श्रमिक काम करते हैं। इससे आप समझ सकते हैं, कितना असर होगा। इसके अलावा यहां 95 प्रतिशत नाई अन्य राज्यों के ही हैं। मोटर मैकेनिक, पेंटर, डेंटर और खेतों में काम करने वाले मजदूरों में भी लगभग गैर कश्मीरी हैं। कश्मीर में विभिन्न फैक्टरियों में भी बिहार, यूपी के श्रमिक हैं। इनके जाने का मतलब कश्मीर में कुशल मानवश्रम की कमी होना है।

आपको जानकारी हो कि घाटी में गैर कश्मीरियों को चुन-चुन कर निशाना बनाए जाने की बढ़ती वारदात से डरे-सहमे श्रमिकों का कश्मीर छोड़ना जारी है। कश्मीर से जम्मू आने वाली गाड़ियों में अधिकतर गैर कश्मीरी श्रमिक ही हैं। अक्टूबर में अब तक आतंकी कश्मीर में पांच श्रमिकों की हत्या कर चुके हैं।

वहीं, गैर कश्मीरी श्रमिकों के घाटी छोड़ने से कश्मीर के लोग भी खासे चिंतित हैं। वे इस बात को लेकर परेशान हैं कि कुशल श्रमिकों के कश्मीर छोड़ने से यहां जारी निर्माण कार्य से लेकर बढ़ई आदि के काम पर भी खासा असर पड़ेगा। कुछ व्यवसायियों ने तो कई मजदूरों को अपनी मजबूरी का हवाला देकर रोक भी रखा है।

श्रीनगर से जम्मू पहुंचे छत्तीसगढ़ के अजीत साहू ने बताया कि वह वहां ईंट भट्ठे पर काम करता था। उसके साथ उसकी पत्नी व दो छोटे बच्चे भी वहां पर रह रहे थे। जैसे ही हमें रात में बिहार के दो युवकों के मारे जाने की सूचना मिली, तो हमने उसी समय कश्मीर छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी। हालांकि, भट्ठा मालिक ने उन्हें वहां सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया, लेकिन परिवार की सुरक्षा को देखते हुए उसने घाटी को छोड़ना ही बेहतर समझा। साहू ने बताया कि उसके साथ काम कर रहे चार अन्य परिवार भी जम्मू पहुंच गए हैं।

जम्मू कश्मीर सरकार घर भेजने की व्यवस्था करे : छत्तीसगढ़ के ही एक अन्य श्रमिक लक्ष्मण ने बताया कि वह पांच वर्षों से कश्मीर में काम कर रहा था। हालात पहले भी वहां खराब होते थे, लेकिन उन्हें वहां कभी डर नहीं लगा, लेकिन अब आतंकी चुन-चुन कर गैर कश्मीरियों को निशाना बना रहे हैं। अब कश्मीर में रहना सुरक्षित नहीं है। वे सात लोग एक साथ कश्मीर से आए हैं। घर से भी उन्हें फोन आ रहे हैं। हम सरकार से मांग करते हैं कि उन्हें उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था की जाए। उनके पास पैसे भी नहीं हैं। जम्मू बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर लगातार श्रमिकों का पहुंचना जारी है। यहां रुकने के बजाए अधिकतर श्रमिक अपने घरों की ओर रवाना हो रहे हैं।

हर साल गर्मियों में करीब सात लाख श्रमिक आते रहे हैं कश्मीर : सामान्य परिस्थितियों में गर्मियों में करीब सात लाख गैर कश्मीरी रोजी रोटी कमाने घाटी आते रहे हैं। बाद में हालात और कोविड-19 के संक्रमण से पैदा हालात के बाद इनकी संख्या में कमी आई। 


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