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जिद से जीता जहां: कामिला का जज्‍बा और गाजी का संघर्ष दे रहा कश्मीरी युवाओं को बदलाव की सीख

गाजी ने बताया कि मैं कॉलेज में पढ़ता था तो अपना खर्च निकालने के लिए शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगा। निजी स्कूल में भी पढ़ाया। इस तरह से जिंदगी की गाड़ी आगे बढऩे लगी। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 05 Oct 2020 05:57 PM (IST)Updated: Mon, 05 Oct 2020 06:00 PM (IST)
जिद से जीता जहां: कामिला का जज्‍बा और गाजी का संघर्ष दे रहा कश्मीरी युवाओं को बदलाव की सीख
यकीन था कि सफल रहूंगी, लेकिन पहला स्थान मिलेगा, यह नहीं सोचा था।

श्रीनगर, नवीन नवाज: आतंकियों और पत्‍थरबाजों की करतूतों से बदनाम जम्‍मू कश्‍मीर की गलियों में अब उम्‍मीदों के अंकुर फूट रहे हैं। यहां के युवा न केवल अब खुली आंखों से कुछ नया करने के सपने देख रहे हैं बल्कि अपने जज्‍बे और हौसले से उन्‍हें पूरे करने का दमखम भी दिखाते हैं। कश्‍मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) के परिणामों से एक उम्‍मीदों की लहर सी फूटी है और युवा पीढ़ी तमाम चुनौतियों को सीढ़ी बनाकर बेहतर भविष्‍य को चुनती दिख रही है।

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यह नया सुनहरा कश्‍मीर है। बेटियाें की बुद्धिमता का कायल अब जमाना हो रहा है और युवा पुरानी पीढ़ी की गलतियों को पीछे छोड़ आगे बढ़ना चाह रहे हैं। कश्‍मीर के मध्‍यवर्गीय परिवार में जन्‍मी कामिला मुश्‍ताक पहली बार सिविल सेवा परीक्षा देने उतरी और प्रदेश में टॉप कर गई। कश्‍मीर की इस बेटी की कहानी वादी में अब महिलाओं के सपनों को उड़ान दे रही हैं। वहीं, मां के सपनों ने बेटे को उम्‍मीदों की राह में लड़खड़ाने से बचाए रखा और बाल आश्रम में रहकर भी अब्‍दुल्‍ला तमाम चुनौतियों से लड़कर गाजी बनकर निकला। डोडा जिले के इस युवा ने पिता की भूल के दर्द को धो दिया और मां की आंखों में खुशियों की रोशनी भर दी। उसका संघर्ष जम्‍मू कश्‍मीर के युवाओं के लिए नजीर बन रहा है। नए जमाने के यह हीरो अब नई पीढ़ी में बदलाव की कहानी सुना रहे हैं।

इंजीनियरिंग के पढ़ाई के बाद शिक्षक की नौकरी और फिर सिविल सेवा, कामिला का यह सफर काफी घुमावदार लगता है। पर कामिला काे अपनी मंजिल का पहले से अहसास था। वह कहती हैं कि नौकरशाह बनकर आप लाेगाें की बेहतर तरीके से मदद कर सकते हैं और इसलिए सिविल सेवा को चुना। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं अपने इस मकसद के लिए जुट गई और नतीजा आपके सामने है। इसी दौरान शिक्षक की नौकरी भी ज्‍वाइन कर ली। राज्‍य प्रशासनिक सेवा के लिए परीक्षा नौकरी करते हुए दी। वह कहती हैं कि हड़ताल और बंद सभी के लिए होते हैं, पर यह आप पर निर्भर है कि आप कौन सा वक्त कैसे इस्तेमाल करते हैं।

वह युवाओं को समझ और नई सोच के साथ आगे बढ़ने को प्रेरित करती हैं। कामिला मुश्ताक ने कहा कि मैं स्‍कूल में टीचर हूं। यहीं जैनकूट स्थित सरकारी स्कूल में नौवीं-दसवीं के छात्रों को गणित पढ़ा रही हूं। पहेलियां सुलझाने की शौकीन कामिला मुश्ताक ने कहा कि बस आपका इरादा मजबूत होना चाहिए, कोई भी लक्ष्‍य असंभव नहीं है। मुझे अपनी सफलता का यकीन था और मैं इसमें सफल भी रही। अगर जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने की चाहत है तो आवश्‍यक है कि परंपरागत तरीकाें से आगे सोचें। नया करने को प्रेरित हों।

वह कहती हैं कि यकीन था कि सफल रहूंगी, लेकिन पहला स्थान मिलेगा, यह नहीं सोचा था। यह कोई रातों-रात अर्जित उपलब्धि नहीं है, यह सिर्फ एक प्रश्नपत्र नहीं था, यह एक सफर है, एक मुहिम थी और इसकी खुशी उन सबके साथ बांटना चाहूंगी जो हर परिस्थिति में हमारे साथ खड़े रहे।

मां के संघर्ष ने हर मोर्चे पर बना दिया गाजी: एक तरफ आतंकवाद का साया और उस पर विपरीत हालात की मार। पिता के आतंकी का दाग मिटाने के लिए मां ने लाडले को ममता के आंचल से दूर बाल आश्रम में भेज दिया। अब मां के संघर्ष काे अब मुकाम मिल गया है। गाजी अब्‍दुल्‍ला का कश्मीर प्रशासनिक सेवा परीक्षा में चयन से सिर्फ मां के सपने ही पूरे नहीं हुए, जम्‍मू कश्‍मीर की पूरी युवा पीढ़ी को नई राह दिखा रहा है। जम्मू संभाग के डोडा के पिछड़े गांव गुंदना के गाजी को अफसर बनते देख मां खुशी से फूली नहीं समा रही है।

जब महज दो साल के थे और पिता 1998 में आतंकवादी वारदात में संलिप्त होने पर मुठभेड़ में मारे गए। मां के लिए चुनौती बेटे के लालन -पालन से लेकर उसे बेहतर जिंदगी देने की भी थी। बड़ी मुश्किल से गाजी को पांचवीं तक स्थानीय स्कूल में पढ़ाया। आंगनबाड़ी में मददगार मां नगीना बेगम ने उसे श्रीनगर के बाल आश्रम में भेज दिया। गाजी ने 12वीं तक पढ़ाई वहीं पूरी की। 18 साल के बाद आश्रम में रहने की इजाजत नहीं थी। काम धंधा भी कोई नहीं था। गाजी ने डोडा लौटने का फैसला किया और डोडा स्थित सरकारी कॉलेज में दाखिला ले लिया।

मां की मेहनत और दुआ की बदौलत मिली सफलता : गाजी

गाजी ने बताया कि मैं कॉलेज में पढ़ता था तो अपना खर्च निकालने के लिए शाम को स्थानीय बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगा। निजी स्कूल में भी पढ़ाया। इस तरह से जिंदगी की गाड़ी आगे बढऩे लगी। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। वहां से मैंने बॉटनी में स्नातकोत्तर की उपाधी प्राप्त की है। मैं शुरू से सिविल सर्विसेज में जाना चाहता था। कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद इसके लिए तैयारी शुरू कर दी थी। सच पूछो तो मेरी मां की मेहनत और दुआ का नतीजा है। उसकी मेहनत और दुआओं ने हमेशा मुझे ईमानदारी और सब्र के साथ आगे बढऩे का हौसला दिया है। 


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