Kashmir Situation: न जिहादी नारे, न राष्ट्रविरोधी जुलूस, 136 दिन बाद जामिया मस्जिद में हुई नमाज व अजान
हालात में सुधार के बावजूद जामिया मस्जिद में नमाज नहीं होने के कारण अलगाववादी तत्व अपने एजेंडे के तहत इसे लेकर कई तरह की बातें फैला रहे थे।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : वादी की सबसे पुरानी और एतिहासिक जामिया मस्जिद में बुधवार दोपहर को हुई नमाज व अजान के साथ ही आतंकियों और अलगाववादियों की हालात बिगाडऩे की साजिश की नाकामी का एलान भी हो गया। जामिया मस्जिद में 136 दिन बाद पहली बार लोग सामूहिक तौर पर नमाज-ए-जौहर के लिए जमा हुए। नमाज के दौरान या बाद में कोई जिहादी या कश्मीर की आजादी का नारा नहीं गूंजा। जुलूस भी नहीं निकला। पांच अगस्त से पहले जामिया में राष्ट्रविरोधी जुलूस व पत्थरबाजी की घटनाएं सामान्य मानी जाती रही हैं।
जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के बाद प्रशासन ने एहतियातन वादी में प्रशासनिक पाबंदियां लागू की थीं। हुर्रियत कांफ्रेंस समेत विभिन्न अलगाववादी दलों और मुख्यधारा के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं को भी हिरासत में लिया गया था। अलगाववादियों ने इसके साथ ही बंद भी लागू कराना शुरू कर दिया। इसका असर जामिया मस्जिद में नमाज-ए-जुमा पर भी हुआ। शुरू में दावा किया जाता रहा कि प्रशासनिक पाबंदियों के चलते लोग मस्जिद में नहीं पहुंच पा रहे हैं, लेकिन बीते एक माह के दौरान इस इलाके में किसी तरह की प्रशासनिक पाबंदी नहीं हैं। बावजूद इसके लोग जुमे की नमाज के लिए नहीं आ रहे थे।
अलगाववादियों की साजिश के तहत नहीं हो पा रही थी नमाज : हालात में सुधार के बावजूद जामिया मस्जिद में नमाज नहीं होने के कारण अलगाववादी तत्व अपने एजेंडे के तहत इसे लेकर कई तरह की बातें फैला रहे थे। प्रशासन ने इस बारे में जामिया मस्जिद प्रबंधन से भी बातचीत की। जामिया मस्जिद बाजार एसोसिएशन के पदाधिकारियों से भी चर्चा की। उदारवादी हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक जो पुश्तैनी तौर पर इस मस्जिद के प्रमुख हैं, उन्हें भी प्रशासन ने कथित तौर एक संदेश भेजा। मीरवाइज मौलवी ने तथाकथित तौर पर अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कहा था कि वह बीमार होने के कारण ही मस्जिद नहीं जा पा रहे हैं। वहीं, कुछ लोगों ने दावा किया कि मीरवाइज उमर फारूक समेत कुछ अलगाववादी नेताओं के इशारे पर ही जामिया मस्जिद में नमाज नहीं हो रही है, क्योंकि जामिया मस्जिद के बंद रहने से अलगाववादी एजेंडा लाभान्वित होता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार पर कश्मीर में मुस्लिमों को दबाने का आरोप लगाने का बहाना मिलता है। मीरवाइज इसी मस्जिद में शुक्रवार को नमाज-ए-जुम्मा से पूर्व अपना खुतबा देते हुए जिहाद, आजादी और खुदमुख्तारी के नारे की सियासत को आगे बढ़ाते थे। शुक्रवार को नमाज-ए-जुमा के बाद इसी मस्जिद के बाहर राष्ट्रविरोधी ङ्क्षहसक प्रदर्शनों के बीच शरारती तत्व आतंकियों के पोस्टर और पाकिस्तानी झंडे लहराते थे और हिंसक प्रदर्शनों की शुरुआत करते थे।
प्रमुख नागरिकों व बुद्धिजीवियों से बात करने की युक्ति काम आई : अलगाववादियों के इरादों को भांपते हुए प्रशासन ने एक बार फिर नौहट्टा और उसके साथ सटे इलाकों में रहने वाले प्रमुख नागरिकों, बुद्धिजीवियों, व्यापारिक संगठनों व कुछ मजहबी नेताओं के साथ बातचीत की। प्रशासन ने कहा कि पूरे कश्मीर में हालात सामान्य हो चुके हैं, हर जगह नमाज बिना किसी रुकावट होती है, ऐसे में जामिया मस्जिद जिसके आस-पास सभी दुकानें खुली रहती हैं, वहां नमाज अदा न होना पूरी तरह अनुचित है। इससे स्थानीय लोगों पर भी कई तरह के सवाल पैदा होते हैं और कश्मीर में हालात बिगाडऩे वालों को मौका मिलता है। इस पर कुछ लोगों ने कहा कि मस्जिद के आस-पास से पुलिस का बंदोबस्त घटाया जाए, क्योंकि नमाज के समय कई शरारती तत्व भी आ सकते हैं जो लोगों को पुलिस पर पथराव के लिए भड़का सकते हैं।
सुरक्षाबलों की संख्या घटाई गई : प्रशासन ने पूरे इलाके में शांति व्यवस्था बनाए रखने की एक कार्ययोजना को तैयार करते हुए जामिया मस्जिद के आस-पास के इलाकों में सुरक्षाकर्मियों की संख्या में कटौती की और उसके साथ ही बुधवार दोपहर को मस्जिद में नमाज-ए-जौहर की अजान गूंजी। स्थानीय लोगों के मुताबिक, करीब एक हजार लोग नमाज के लिए जमा हुए थे।
दुआ करता हूं कि जामिया का दरवाजा हमेशा खुला रहे : बिलाल अहमद नामक एक स्थानीय युवक ने कहा कि मैं आज अजान सुनकर ही मस्जिद में पहुंचा हूं। मेरा घर मस्जिद से करीब 500 मीटर की दूरी पर है और जब से मैंने होश संभाला है, इसी मस्जिद में नमाज अदा की है। करीब चार माह बाद आज मस्जिद का दरवाजा खुला है। दुआ करता हूं कि यह हमेशा खुला रहे। आज कोई ङ्क्षहसा नहीं हुई, पूरी तरह अमन बना रहा।
1402 में बनकर तैयार हुई थी मस्जिद : श्रीनगर के डाउन-टाउन में नौहट्टा स्थित एतिहासिक जामिया मस्जिद की कश्मीर की सियासत में शुरू से ही बहुत अहमियत रही है। सुल्तान सिकंदर द्वारा इसका निर्माण 1394 में शुरू कराया गया था और यह 1402 में बनकर तैयार हुई थी। इस मस्जिद के निर्माण में फारसी और बौद्ध वास्तुकला का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है।