Kashmir: चेरी से लाल हुए कश्मीर के बगीचे बस बाजार में जाने का है इंतजार
लालचौक से 20 किलोमीटर दूर दारा-हारवन में बाग के मालिक और चेरी उत्पादक नूर उल हसन ने कहा कि तीन-चार दिन में फल उतारने लायक हो जाएगा। इस समय कहां बेचूं। पूरे देश में लॉकडाउन है।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : कश्मीर के बाग लाल सुर्ख रसीली चेरी के गुच्छों से लदे हैं। पैदावार भी बंपर हुई है। यह वह फल है, जहां से कश्मीर में फलों के मौसम की शुरुआत होती है। यह यहां के बागवानों के लिए उम्मीद का फल है। हालांकि, इस बार कोरोना वायरस के चलते उपजे हालात ने इन्हें मायूस जरूर किया है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि जम्मू कश्मीर राज्य प्रशासन चेरी उत्पादकों की सुध जरूर लेगा। वह कुछ न कुछ ऐसा रास्ता जरूर निकालेगा, जिससे उन्हें चेरी की पैकिंग के लिए डिब्बे मिल जाएंगे। माल को बाहर भेजने के लिए कोई न कोई रास्ता जरूर निकाला जाएगा। दरअसल, चेरी उत्पादकों को लॉकडाउन के चलते फल तोड़ने के लिए न तो श्रमिक मिल रहे हैं और न ही चेरी को पैक करने के लिए डिब्बे और पेटियां। इससे उन्हें चेरी के खराब होने की चिंता सता रही है, क्योंकि दो-चार दिन में चेरी तोड़ने लायक हो जाएगी। ऐसा न हुआ तो खराब होना तय है। इससे उन्हें नुकसान उठाना होगा।
उत्पादन के ये इलाके हैं प्रमुख
- चेरी का उत्पादन श्रीनगर और साथ सटे इलाकों गांदरबल, बारामुला और शोपियां व कुलगाम के कुछ हिस्से।
कहां बेचें, इसकी सता रही चिंता: लालचौक से 20 किलोमीटर दूर दारा-हारवन में बाग के मालिक और चेरी उत्पादक नूर उल हसन ने कहा कि तीन-चार दिन में फल उतारने लायक हो जाएगा। इस समय कहां बेचूं। पूरे देश में लॉकडाउन है। चेरी उतारने के लिए स्थानीय श्रमिक होते हैं, लेकिनकोई नहीं मिल रहा है। डिब्बे और पेटियां भी नहीं मिल रही हैं। अगर यही हाल रहा तो पांच से छह लाख का नुकसान होगा। मैंने जो चेरी लगाई है, वही पहले तैयार होती है।
चेरी से ही फ्रूट सीजन की शुरुआत: एशिया की सबसे बड़ी फ्रूट मंडियों में सोपोर फ्रूट मंडी के प्रमुख व्यापारियों में शामिल नजीर अहमद ने कहा कि चेरी से ही कश्मीर के फ्रूट सीजन की शुरुआत होती है। इसके बाद ही खुबानी, स्ट्राबेरी, सेंटरोज, नाशपाती, सेब तैयार होता है। जुलाई के पहले सप्ताह में समाप्त हो जाता है।
हर साल 11 हजार मीट्रिक टन होता है उत्पादन: कश्मीर में चेरी का वार्षिक उत्पादन करीब 11 हजार मीट्रिक टन है। वर्ष 2019 में कश्मीर में चेरी का बंपर उत्पादन हुआ था। वर्ष 2017 में 11289 मीट्रिक टन और वर्ष 2018 में 11789 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था। वर्ष 2019 में उत्पादन गिरकर करीब 9500 मीट्रिक टन चला गया था। 2018 में बंपर फसल हुई थी, लेकिन बीते साल इसमें 30 प्रतिशत कमी थी। वर्ष 2017 में 11289 और 2018 में 11789 मीट्रिक टन चेरी पैदा हुई थी। फलोत्पादक और व्यापारी करीब 30 करोड़ कमाते हैं।
90 फीसद होती है निर्यात: कश्मीर में मुख्य तौर पर डबल, मखमली, मिश्री, इटली किस्म की चेरी उगाई जाती है। घाटी में चेरी की पैदावार कर 90 फीसद बाहर निर्यात होता है। इसके लिए रेफिजरेटिड वैन चाहिए। जम्मू से आगे हम रेल के जरिए या फिर श्रीनगर से हवाई मार्ग से बाहर भेजते हैं। फ्रूट ग्रोअर्ज एसोसिएशन परिंपोरा मंडी के चेयरमैन बशीर अहमद बशीर ने कहा कि चेरी जल्द खराब हो जाती है। इस मुद्दे को मंडलायुक्त पांडुरंग के पोले, उपराज्यपाल जीसी मुमरू के संज्ञान में भी लाया है। हमने प्रशसन से आग्रह किया है कि वह पैकिंग के आवश्यक डिब्बे हमें जम्मू या किसी अन्य शहर से मंगवाकर दें या फिर कश्मीर में पैकिंग इंडस्ट्रीज को शुरू कराएं।
किसानथ एप बन सकता है सहायक : निदेशक
बागवानी विभाग में योजना एंव विपणन विभाग के निदेशक इमामदीन ने कहा कि हमने किसानों को किसानथ एप डाउनलोड करने को कहा है ताकि उन्हें अपनी फसल के निर्यात के लिए ट्रक तलाशने में आसानी रहे। जम्मू में रेल प्रशासन से भी बातचीत कर रहे हैं। एयर इंडिया व कुछ अन्य विमान कंपनियों के प्रतिनिधियों से भी संपर्क किया है। हमने पैकिंग के लिए जम्मू स्थित एक फैक्टरी से संपर्क किया है। फैक्टरी मालिक ने डिब्बे, पेटियां उपलब्ध कराने का यकीन दिलाया है।