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Kargil Food Festival: कारगिल में शुरू हुआ पारंपरिक फूड फेस्टिवल मामानी, जानिए क्या है इसकी खास बात!

Kargil Food Festival Mamani इनायत अली स्तुप ने वर्ष 2016 में इस फेस्टीवल को सार्वजनिक तौर पर मनाना शुरू किया। इसके बेहतर परिणाम सामने आए हैं हर साल मनाने वाले इस फेस्टीवल में लोगों की शिरकत बढ़ती जा रही है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2021 03:18 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2021 05:13 PM (IST)
Kargil Food Festival: कारगिल में शुरू हुआ पारंपरिक फूड फेस्टिवल मामानी, जानिए क्या है इसकी खास बात!
लद्​दाख के पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार, 21 जनवरी मामानी महीने का अंत है।

श्रीनगर, जेएनएन। किसी भी राज्य व क्षेत्र के पारंपरिक रीति-रिवाज, त्यौहार ही लोगों को एक-दूसरे के साथ जोड़ते हैं। यही क्षेत्र की अलग पहचान भी बनाते हैं। कारगिल के लोगों ने इसी मकसद केे साथ अपने विशेष खान-पान व उससे जुड़ी परंपरा की पहचान को जिंदा रखने के लिए हर साल की तरह इस साल भी मामानी फूड फेस्टिवल का आयोजन किया है। अच्छी बात यह है कि लद्​दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार प्रशासन ने भी इस पारंपरिक फेस्टीवल में अपना पूर्ण योगदान दिया। लद्​दाख उपराज्यपाल आरकेे माथुर स्वयं कारगिल के शार्गोले इलाके में पहुंचे। उन्होंने न सिर्फ इस फेस्टीवल का विधिवत ढंग से शुभारंभ किया बल्कि पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद भी चखा।

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फेस्टीवल के जरिए समुदाय को जोड़े रखना है मकसद: कारगिल के रहने वाले सज्जाद हुसैन ने बताया कि यह फेस्टीवल पुरीग पा समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह समुदाय गुलाम कश्मीर में स्थित बाल्टीस्तान और गिलगित की परंपरा से जुड़ा है। वहां भी यह फेस्टीवल धूमधाम से मनाया जाता है। समाज में तेजी से हो रहे बदलाव के कारण कारगिल में रहने वाला यह समुदाय अपनी परंपराओं व त्यौहारों से दूर होता जा रहा था। कुछ परिवार थे जो घरों में इस परंपरा का निर्वाह करते थे परंतु वह भी धीरे-धीरे इससे दूर होते जा रहे थे। ऐसे में इनायत अली स्तुप ने वर्ष 2016 में इस फेस्टीवल को सार्वजनिक तौर पर मनाना शुरू किया। इसके बेहतर परिणाम सामने आए हैं, हर साल मनाने वाले इस फेस्टीवल में लोगों की शिरकत बढ़ती जा रही है।

क्या है पारंपरिक फूड फेस्टीवल मामानी का इतिहास : लद्​दाख के पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार, 21 जनवरी मामानी महीने का अंत है। इसे तेज सर्दियों के समापन के रूप में माना जाता है। इस दिन को पारंपरिक व्यंजनों की तैयारी के साथ एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। लद्दाख में इस त्योहार के उत्सव का इतिहास यहां बौद्ध धर्म के आगमन से पहले का है। उस समय, लोग लाह नामक कुल देवता की पूजा करते थे। परंपरा यह थी कि जो भी पकवान घर पर तैयार किया जाता था, उन्हें इस दिन प्रत्येक वस्तु की एक मात्रा लाह के नाम से लानी होती थी। जैसा कि परंपरा अभी भी कुछ संशोधनों के साथ मौजूद है। बौद्ध और मुस्लिम दोनों समुदाय इस फेस्टीवल में शामिल होकर व्यंजनों का दान करते हैं। यह आपसी एकता को भी बढ़ावा देता है। व्यंजनों से सजाए गए इन विभिन्न स्टाल पर हर कोई खाना खा सकता है। इस अवसर पर मृत पूर्वजों के लिए विशेष प्रार्थनाओं का आयोजन भी किया जाता है।

फेस्टीवल में यह व्यंजन थे आकर्षण का केंद्र: विभिन्न स्टालों पर सजाए गए पारंपरिक व्यंजन हर किसी के लिए आकर्षण का केंद्र से। इस फेस्टीवल की खास बात यह है कि इससे में सारे व्यंजन पारंपरिक व शाकाहारी होते हैं। पारंपरिक व्यंजनों में थुकपा, पोपट (अनाज का सूप), हर्ट्रैप खुर (खमीर की रोटी), मरखुर, अज़ोक (स्किन और कबची) (पूड़ी), पोली (बक की गेहूं की पूड़ी), दही, सुगगो समेत ऐसे कई व्यंजन शामिल थे, जो स्थानीय लोगों ने स्वयं तैयार किए थे। स्टाल के साथ पारंपरिक पोषाकों में खड़ी महिलाएं लोगों को व्यंजनों के बारे में जानकारी भी दे रही थी।  


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