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कोरोना काल में तनावग्रस्त लोगों को जूही के डोगरी संगीत की औषधि

जागरण संवाददाता जम्मू पिता की आंखों में गंभीर दिक्कत समेत चुनौतियों का सामना करते हुए कला

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 06:23 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 06:23 AM (IST)
कोरोना काल में तनावग्रस्त लोगों को जूही के डोगरी संगीत की औषधि
कोरोना काल में तनावग्रस्त लोगों को जूही के डोगरी संगीत की औषधि

जागरण संवाददाता, जम्मू :

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पिता की आंखों में गंभीर दिक्कत समेत चुनौतियों का सामना करते हुए कला के क्षेत्र में हाथ-पांव मार रहीं जूही सिंह ने कोरोना काल में अवसर मिला तो लोगों का तनाव दूर करने के लिए डोगरी गानों का एल्बम बनाया। गानों के माध्यम से लोगों को कोरोना से लड़ने के लिए प्रेरित किया। उनके गाए गीत 'कदूं जान तू कोरोनया' को प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह और कपड़ा मंत्री स्मृति इरानी ने भी शेयर किया। इन गानों को उत्तर भारत या डोगरी बोलने वालों ने ही नहीं, बल्कि दक्षिण भारत और दूसरे कई राज्यों के लोगों ने भी पसंद किया। जूही मानती हैं कि कोरोना काल में उन्होंने जो काम किया है, उससे अवसादग्रस्त लोगों में उत्साह जागा ही, डोगरी का भी मान बढ़ा है। कला क्षेत्र में बेटियों को आगे लाने के लिए जूही शिविर भी लगाती रही है।

जूही के पिता सूरज सिंह इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक एंड फाइन आ‌र्ट्स में शिक्षक हैं। उनकी आंखों में गंभीर दिक्कत है। उन्हें सहारे की जरूरत पड़ती है। पिता के कला क्षेत्र में काम करने से जूही को भी बचपन से गीत-संगीत का शौक है। कोरोना महामारी से बचाव के लिए लॉकडाउन में जब सभी लोग घरों में कैद से थे। कई लोग अवसादग्रस्त हो गए। ऐसे में जूही सिंह ने डोगरी लोक संगीत के माध्यम से लोगों का तनाव दूर करने का काम किया। छोटे भाई रूही सिंह ने भी उनका साथ दिया।

मुबंई से थियेटर में मास्टर्स की पढ़ाई कर रहीं जुही सिंह को कोरोना संक्रमण शुरू के कारण दो महीने पहले ही जम्मू आना पड़ा था। जूही कहती हैं कि यहां आने के बाद लॉकडाउन से कई लोगों में निराशा थी। इस दौरान पापा ने प्रेरित किया कि हार मानना जीवन नहीं है। चलते रहोगे तो ही सफलता मिलेगी। ऐसे में जूही ने छोटे भाई रुही सिंह के साथ डोगरी के प्रसिद्ध गानों का तीन मिनट का एलबम तैयार किया। उसे फेसबुक, यू-ट्यूब पर इतना पसंद किया गया कि उन्हें कोरोना काल में ही कुछ कर दिखाने का रास्ता मिल गया। उन्होंने डोगरा लोक संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने का जिम्मा लिया और गानों के जरिये लोगों को कोरोना से लड़ने के लिए प्रेरित किया। जुही सिंह ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा पिता सूरज सिंह से ही प्राप्त की। करीब 14 वर्ष तक नटरंग से जुड़ी रहीं। उसके बाद समूह थियेटर के साथ काम किया। उन्होंने कई बाल नाट्योत्सवों से लेकर राष्ट्रीय नाट्योत्सवों तक में जम्मू का गौरव बढ़ाया। खासकर नाटक बाबा जित्तो में बुआ गौरी की भूमिका में उनको एक विशेष पहचान मिली। कटड़ा में होने वाले अखिल भारतीय भेंट प्रतियोगिता में वर्ष 2004 में दूसरे स्थान पर रही। वहीं, जम्मू यूनिवर्सिटी की ओर से आयोजित डिस्प्ले योर टेलेंट प्रतियोगिता में उन्होंने संगीत, अभिनय में कई पुरस्कार जीते। इन दिनों मुंबई से थियेटर में मास्टर्स डिग्री कर रही हैं। कला क्षेत्र में बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए शिविर

जूही का मानना है कि बेटियां आज हर क्षेत्र में तरक्की कर रही हैं। कला क्षेत्र में भी नाम कमा रही हैं। जम्मू क्षेत्र की बेटियों में भी प्रतिभा है। उन्हें आगे बढ़ाने के लिए शिविर भी लगा चुकी हैं।


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