Move to Jagran APP

मुख्यधारा से विमुखता के कारण तैयार होते रहेंगे जिहादी तत्व

इस तथ्य का खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर में सत्तासीन भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार के वित्तमंत्री सैयद अल्ताफ बुखारी ने किया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 21 Mar 2018 11:09 AM (IST)Updated: Wed, 21 Mar 2018 02:22 PM (IST)
मुख्यधारा से विमुखता के कारण तैयार होते रहेंगे जिहादी तत्व
मुख्यधारा से विमुखता के कारण तैयार होते रहेंगे जिहादी तत्व

जम्‍मू, नवीन नवाज। भारत-पाकिस्तान के बीच लगातार तल्खियां बढ़ती जा रही हैं। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को गुलाम कश्मीर में पाकिस्तानी ठिकानों पर एक और सर्जिकल स्ट्राइक की संभावना व्यक्त करते हुए कहा कि जरूरत पड़ी तो सेना नियंत्रण रेखा पार कर सकती है।

loksabha election banner

अगले दिन रविवार को पाकिस्तानी सेना ने पुंछ में भारतीय ठिकानों पर गोलाबारी कर दी, जिसमें तीन बच्चों समेत पांच लोग मारे गए। फिलहाल गोलबारी बंद है, लेकिन यह कब शुरू हो जाएगी। किस समय आतंकी कोई बड़ा हमला करेंगे, यह कहना मुश्किल है। सिर्फ अस्थिरता, डर और असमंजस की स्थिति है। इससे तभी पार पाया जा सकता है, जब कश्मीर समस्या का समाधान हो। इसमें पाकिस्तान की भूमिका जरूरी है, जिसे कश्मीर को भारत का अंदरूनी मामला कहकर केंद्र नकारता है।

इसके विपरीत जम्मू कश्मीर में चाहे नेशनल कांफ्रेंस हो या भाजपा के साथ सत्ता में साझीदार पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, हमेशा ही पाकिस्तान से सुलह पर जोर देते हुए कश्मीर समस्या के समाधान में उसकी भूमिका को हुर्रियत कांफ्रेंस के बैनर तले जमा विभिन्न अलगाववादी संगठनों की तरह ही सबसे महत्वपूर्ण मानती है। नेशनल कांफ्रेंस जिसके संस्थापक स्वर्गीय शेख मोहम्मद अब्दुल्ला, जिन्हें जवाहर लाल नेहरू ने जेल में डाला था, ने द्विराष्ट्र सिद्घांत को खारिज करते हुए भारत-पाक विभाजन के समय भारत में विलय को अपनाया था। यह विलय किन परिस्थितियों में हुआ था, सभी जानते हैं। इसी नेशनल कांफ्रेंस ने जनमत संग्रह फ्रंट खड़ा कर अलगाववादी भावनाओं के बीज को पानी देकर उसे पौधा बनाया।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जो जम्मू कश्मीर में लोगों को मुख्यधारा की सियासत में नेशनल कांफ्रेंस के राजनीतिक विकल्प के तौर पर हीलिंग टच के नारे के साथ उभरी है, हमेशा ही पाकिस्तान से बातचीत की वकालत करती है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जो पीडीपी की अध्यक्षा भी हैं, सीधे शब्दों में कहती हैं कि इस पूरे क्षेत्र में शांति व खुशहाली का सही तरीका पाकिस्तान से दोस्ती और बातचीत ही है। भारतीय जनता पार्टी जो केंद्र में सत्ता में है और राज्य में पीडीपी के साथ मिलकर गठबंधन सरकार चला रही है, पाकिस्तान के साथ सुलह करने के बजाय उसे सबक सिखाने की बात करती है। वह सेना को खुली छूट देने की वकालत करती है। पिछले सात दशकों में पूरी तरह जटिल हो चुकी कश्मीर समस्या का सैन्य समाधान नहीं हो सकता।

सभी मानते हैं कि कश्मीर में आतंकवाद और हिंसा को सुरक्षाबलों के जरिये किसी हद तक काबू किया जा सकता है, लेकिन समाप्त नहीं क्योंकि कश्मीर में मुख्यधारा से विमुखता की भावना बने रहने तक जिहादी तत्व तैयार होते रहेंगे। अलगाववाद के नारे लगते रहेंगे। बेशक इसके लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया जाता रहेगा, लेकिन जो नया खतरा सामने नजर आ रहा है, वह ज्यादा भयावह है। आइएसआइएस और अलकायदा जो कुछ साल पहले तक कश्मीर में दूरी की कौड़ी माने जाते थे, आज सच्चाई बन चुके हैं। सिर्फ कश्मीरी ही नहीं दक्षिण भारत के भी कुछ युवक इन संगठनों का हिस्सा बनकर जम्मू कश्मीर में सक्रिय हैं।

तेलंगाना के मोहम्मद तौफीक की सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मौत इसकी तस्दीक भी कर चुकी है। अलकायदा व आइएस को कश्मीर का दुश्मन बताने वाले कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी से लेकर उदारवादी हुर्रियत प्रमुख मीरवाइज मौलवी जैसे अलगाववादी अब आइएस के मरने वाले जिहादियों को श्रद्घांजलि देते हुए उन्हें इस्लाम का सिपाही, मजलूम कश्मीरियों का हमदर्द करार देने लगे हैं।

पाकिस्तान भी निकट भविष्य में आइएस व अलकायदा के आतंकियों को कश्मीर में अपने मंसूबों की खातिर संरक्षण दे सकता है। रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों की बढ़ती तादाद सुरक्षा के लिए खतरा रोहिंग्या और बांग्लादेशियों की लगातार बढ़ती तादाद न सिर्फ कानून व्यवस्था का संकट पैदा कर रही है बल्कि राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों को भी प्रभावित करने लगी है। हालात विस्फोटक होते जा रहे हैं। जम्मू कश्मीर की समस्या आतंकवाद, अलगाववाद की सरहद को पार करते हुए पूरी तरह इस्लामिक जिहादी मूवमेंट का हिस्सा बनती जा रही है।

इसलिए केंद्र को जल्द ही कड़वी सच्चाइयों के घूंट पीते हुए कश्मीर समस्या के आंतरिक और बाहरी पहलुओं के आधार पर न सिर्फ राज्य के भीतर बल्कि पाकिस्तान के साथ भी संवाद की प्रक्रिया को बहाल करना होगा नहीं तो श्री श्री रविशंकर की हिंदोस्तान में सीरिया जैसे हालात पैदा होने की आशंका किसी भी समय हकीकत में बदल सकती है।

सियासी हैसियत पर बहस की गुंजाइश कश्मीर का सबसे बड़ा नेता गिलानी, नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक स्व. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला या पीपुल्स डेमोक्रेटिक के संस्थापक स्व. मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौजूदा कश्मीर में सियासी हैसियत पर बहस हो सकती है, लेकिन कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी की हैसियत पर नहीं और न उन्हें लेकर कोई टिप्पणी की जा सकती है। इस तथ्य का खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर में सत्तासीन भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार के वित्तमंत्री सैयद अल्ताफ बुखारी ने किया है।

अल्ताफ बुखारी से जब पूछा गया कि कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी ने बातचीत से क्यों इन्कार किया है तो उन्होंने सीधे शब्दों में कहा कि गिलानी साहब बहुत बड़े नेता हैं। मेरी उनके सामने कोई हैसियत नहीं है। इसलिए मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता।

बुखारी का बयान शायद कई लोगों के लिए हैरानी भरा रहा होगा और कइयों को नागवार गुजरा होगा, लेकिन जम्मू कश्मीर की सियासत पर नजर रखने वालों के लिए यह सच्चाई है। गिलानी के नाती के लिए राज्य सरकार ने 1.5 लाख रुपये महीने की नौकरी का बंदोबस्त किया था और वह भी तब जब हिंसक प्रदर्शनों के चलते रियासत में प्रशासनिक मशीनरी ठप पड़ी थी। कई बड़े नौकरशाह और पुलिस अधिकारी अपने तबादले के लिए गिलानी से सिफारिश करवा चुके हैं। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.